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Birsa Munda Death Anniversary: बंदगांव का संकरा गांव,जहां से अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को किया था गिरफ्तार

पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत बंदगांव प्रखंड का संकरा गांव. यह गांव कभी भगवान बिरसा मुंडा का कार्य स्थल हुआ करता था. इसी गांव से अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया था. अब ये गांव वीरान नजर आ रहा है. अब ग्रामीण इसे आदर्श गांव का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं.

Birsa Munda Death Anniversary: पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय से रांची की ओर जाने वाली मुख्य सड़क के अंतिम छोर पर अवस्थित है बंदगांव प्रखंड. खूंटी जिला से सटा यह प्रखंड बीहड़ जंगलों से घिरा है. आज यह प्रखंड नक्सल प्रभावित है, लेकिन कभी यही प्रखंड अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाले बिरसा मुंडा का कार्य स्थल हुआ करता था.

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घोर नक्सल प्रभावित गांव है संकरा

चाईबासा से 65 किलोमीटर और चक्रधरपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर बंदगांव प्रखंड के टेबो पंचायत अंतर्गत संकरा गांव अवस्थित है. एनएच-75 (ई) मुख्य सड़क से पश्चिम की ओर 15 किलोमीटर संकरा गांव घने जंगलों के बीच बसा है. गांव के चारों तरफ पहाड़ हैं. यह गांव आज घोर नक्सल प्रभावित है. गांव में तकरीबन 350 लोग निवास करते हैं. सभी अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्य हैं. भगवान बिरसा के अनुयाइयों में बिरसा धर्म को मानने वाले इस गांव में 50 प्रतिशत लोग हैं. गांव में 40 परिवार है, जहां 217 मतदाता हैं.

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अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए बिरसा ने संकरा गांव को चुना

इतिहास गवाह है कि बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान छेड़ा था. तीन-धनुष को हथियार बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा के खिलाफ गिरफ्तारी का ऐलान किया और जब उनकी तलाश बहुत तेजी से होनी लगी, तो वो संकरा गांव में रहकर अंग्रेजों की साजिश के खिलाफ रणनीति बनाने लगे. यहीं पर दो फरवरी, 1900 को उन्हें गिरफ्तार किया गया था. बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के बाद संकरा गांव ऐतिहासिक बन गया.

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साहू मुंडा के घर रहकर बिरसा मुंडा ने अभियान को रखा जारी

गिरफ्तारी से पहले संकरा गांव में बिरसा मुंडा एक लकड़हारे के साथ मिलकर मुंशी का काम कर रहे थे. संकरा के ग्रामीण साहू मुंडा के घर पर ही रहकर बिरसा अपने अभियान को जारी रखे हुए थे. साहू मुंडा के भाई जावरा मुंडा के साथ मिलकर बिरसा अंग्रेजों की साजिशों को नाकाम करने में लगे थे. घर के बरामदे में ही दोनों रात गुजारते थे. जावरा मुंडा की छोटी बहन कैरी मुंडा उसे भोजन पका कर खिलाती थी. भाइयों समेत बिरसा का ख्याल भी कैरी रखती थी.

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अंग्रेजों ने बिरसा से ही बिरसा मुंडा के बारे में पूछा

इसी बीच अंग्रेजी फौज संकरा गांव आ धमकी और बिरसा मुंडा से ही बिरसा के बारे में पूछताछ करने लगी. बिरसा मुंडा गांव के विशालकाय इमली वृक्ष के नीचे लगे अखाड़ा में मांदर बजा रहे थे. बिरसा ने पुलिस वालों से साफ-साफ डटकर कहा कि इस गांव में बिरसा नाम का कोई व्यक्ति नहीं रहता है. अंग्रेज सिपाही उसे पहचानते नहीं थे. इसलिए बैरंग लौटना पड़ा. इसके बाद भी अंग्रेज फौज और सिपाही बार-बार संकरा गांव आकर ग्रामीणों को धमकी देते. उनके घरों को उजाड़ देते. धान की फसल को नष्ट कर देते. यातनाएं देकर बिरसा मुंडा की सूचना मांगते. मजबूरन गांव के लोग अपनी फसल को गांव के ऊपर पहाड़ में ले जाकर रखते थे. वहीं, ओखली पर धान की कुटाई करते थे. आज उस स्थान को सेलकुटी नाम से जाना जाता है. ये उस जमाने में नाम पड़ा था और आज भी गांव के खतियान में वही नाम दर्ज है.

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अंग्रेजों ने संकरा जंगल से किया गिरफ्तार

अंग्रेजों को शक था कि बिरसा संकरा गांव में ही है. लेकिन ग्रामीण उसकी जानकारी नहीं दे रहे है. फिर कूटनीति का तरीका अपना कर बिरसा के बारे में जानकारी हासिल की गई और संकरा के जंगल से उसे गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद उसे बंदगांव डाकबंगला में एक रात रखने के बाद दूसरे दिन खूंटी ले जाया गया. उस समय खूंटी, रांची जिला में पड़ता था. बिरसा की गिरफ्तारी से ग्रामीण काफी मायूस हो गये.

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बिरसाइयत धर्म को मानने वाले हर रविवार करते हैं विशेष प्रार्थना सभा

बिरसा धर्म को मानने वाले लोग आज भी स्वयं भोजन तैयार कर ग्रहण करते हैं. दूसरों के हाथों से तैयार भोजन नहीं खाते. उस जमाने में बिरसा भगवान को लोग सीधे जोहार नहीं करते थे, बल्कि जिस स्थान पर वह बैठते या जहां ध्यान करते. लोग उस स्थान को प्रणाम करते और चूमते थे. भगवान बिरसा की एक खासियत यह थी कि वो जिस जानवर को आवाज देते, वह पास आ जाता था. कोटागाड़ा, जोंकोपाई, रोगोद, हलमद, बांडुकोचा आदि गांवों में आज भी हजारों लोग बिरसाईयत धर्म को अपना रखे हैं. प्रत्येक रविवार को इनकी प्रार्थना सभा होती है, जिसमें अपनी गलतियों की माफी मांगते हैं.

संकरा गांव में आज भी नहीं है मूलभूत सुविधाएं, 2013 से है स्कूल बंद

जिस संकरा गांव में अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनती थी, जहां अंग्रेजों के दांत खट्टे किये जाते थे, आज वह गांव अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. संकरा गांव में 40 आदिवासी परिवार निवास करते हैं. यहां एक उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय था. जो 2013 से बंद है. कारण यह है कि यहां के शिक्षक को नक्सली गतिविधि में शामिल होने का आरोप लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया था. तब से स्कूल शिक्षक विहीन है. बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही है. तीन किलोमीटर दूर कोटागाड़ा में अगला स्कूल है. जहां कोई जाना नहीं चाहता. दिनभर बच्चे मवेशियों को जंगल में चराते रहते हैं.

संकरा में नहीं आते हैं सरकारी पदाधिकारी

अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण संकरा गांव में कोई सरकारी अफसर या जनप्रतिनिधि नहीं जाते हैं. जिस कारण यहां विकास नहीं होता है. ग्रामीणों की मानें, तो पंचायत के मुखिया भी कभी-कभी ही गांव आते हैं. गांव में एक भी सरकारी योजना नहीं चल रही है. संकरा के लोग आज भी नदी के किनारे चुआं खोद कर पानी पीते हैं. नलकूप खराब है. कोई मरम्मत करने वाला भी नहीं है. गांव में लगा सोलर जलमीनार 15 दिनों में ही खराब हो चुका है. आंगनबाड़ी केंद्र भवनहीन है. सोलर आधारित बिजली की व्यवस्था पांच साल पहले की गई थी. एक साल चलने के बाद वह भी खराब हो गया. पिछले चार सालों से गांव में बिजली नहीं है. स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने के कारण बीमार पड़ने वाले लोगों को इलाज के लिए 40 किलोमीटर दूर चक्रधरपुर जाना पड़ता है. एक भी प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभुक यहां नहीं है. बकरी शेड भी नहीं बना है. मिट्टी के घर में ही लोग रह रहे है. सड़क निर्माण का कार्य टेबो-संकरा अभी शुरू हुआ है.

विधायक सुखराम ने लगाया प्रतिमा

चक्रधरपुर के विधायक सुखराम उरांव ने गांव में बिरसा मुंडा आदमकद एक प्रतिमा स्थापित किया है. वर्ष 2021 में यह प्रतिमा गांव में लगाई गई थी. इसी प्रतिमा स्थल के करीब प्रत्येक वर्ष दो फरवरी को बिरसा गिरफ्तारी दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन होता है. जिसमें ग्रामीण मेला और पूजा अर्चना की जाती है.

संकरा को आदर्श ग्राम बनायें : ग्रामीण मुंडा

संकरा गांव के ग्रामीण मुंडा सुखराम मुंडा ने कहा है कि संकरा एक ऐतिहासिक गांव है. जिसे आदर्श ग्राम का दर्जा दिया जाना चाहिए. पेयजल, सड़क, प्रारंभिक शिक्षा, स्वास्थ्य, सामुदायिक भवन और आवास योजना का लाभ अविलंब उपलब्ध कराया जाना चाहिए. विधवा, विकलांग और बुजुर्ग लोग बड़ी संख्या में हैं. जिन्हें पेंशन तक नहीं मिलती. गांव में कैंप लगाकर गांव वालों की सुधी ली जानी चाहिए. सबसे पहले बंद स्कूल को खोला जाए.

Posted By: Samir Ranjan.

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