अफगानिस्तान में तनाव और युद्ध जैसे हालात होने के चलते अब तक कोई इंटरनेशनल मुकाबला नहीं हो पाया. इस वजह से अफगानिस्तान की टीम अपना सभी घरेलू मैच दूसरे देशों में ही खेलती रही है. अफगानिस्तान ने हाल में क्रिकेट में अच्छा नाम कमाया है. टीम टेस्ट खेलने का दर्जा तक हासिल कर चुकी है. टी-20 क्रिकेट में उसके खिलाड़ी दुनियाभर की लीग में खेलते हैं. इस विकास में भारत का बड़ा योगदान रहा है. 19 अप्रैल, 2009 को स्कॉटलैंड के खिलाफ अपना पहला वनडे खेलने वाली अफगनिस्तान टीम ने 2015 में भारत में ही अपना होम ग्राउंड बनाया था. ग्रेटर नोएडा, देहरादून और लखनऊ में कई देशों से मुकाबले खेले.
अफगानिस्तान में क्रिकेट का इतिहास 1839 से माना जाता है, जब काबुल में ब्रिटिश सैनिकों ने कुछ मैच खेले थे. मगर 1990 के दशक तक देश में अशांति का माहौल था. ऐसे में क्रिकेट खेलना आसान नहीं था. इसी बीच पाकिस्तान पहुंचे अफगान शरणार्थियों ने हिम्मत दिखायी और 1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड का गठन किया. 2013 में अफगान टीम आइसीसी का एसोसिएट सदस्य भी बन गयी
2011 वर्ल्ड कप में अफगान टीम क्वालिफाइ नहीं कर सकी, लेकिन उसने अगले यानी 2015 वर्ल्ड कप से पहले वनडे का दर्जा हासिल किया और फिर वर्ल्ड कप में भी एंट्री कर ली.
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विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ जीत की योजना दक्षिण अफ्रीका में जन्मे और इंग्लैंड की ओर से इंटरनेशनल क्रिकेट खेलनेवाले जोनाथन ट्रॉट ने रखी थी. वह अफगानिस्तान टीम के कोच हैं. कोच ट्रॉट इंग्लैंड से ही खेलने के कारण टीम बटलर के स्पिन के खिलाफ कमजोरी से वाकिफ थे इसी के जरिये जीत दर्ज करने की रणनीति बुनी..
भारत ने अफगानिस्तान में दो क्रिकेट स्टेडियम बनाने की तरफ भी कदम बढ़ाये थे. ये स्टेडियम कंधार और मजार ए शरीफ में बन रहे थे. भारत सरकार ने 2014 में 10 लाख डॉलर की मदद की मंजूरी दी थी. अब तालिबान की वापसी हुई है, तो भविष्य में वहां क्रिकेट मुकाबले होने की कम ही संभावना है.
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अफगानिस्तान के पास भारतीय टीम जैसी ही बेस्ट स्पिन अटैक है. इस टीम में राशिद खान, नूर अहमद, मोहम्मद नबी और मूजीब जैसे स्पिनर्स हैं, टीम के गुरबाज जैसे अच्छे बल्लेबाज भी हैं. इंग्लैंड से पहले अफगानिस्तान टीम श्रीलंका को तीन, बांग्लादेश को छह और वेस्टइंडीज को तीन बार हरा चुकी है.