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Tokyo Olympics: गोल्ड जीतने के लिए नीरज चोपड़ा ने मोबाइल से भी बना ली थी दूरी, दो साल सोशल मीडिया से रहे दूर

टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) में 125 साल में भारत को एथलेटिक्स में पहला पदक दिलाने वाले नीरज चोपड़ा (Gold Medalist Neeraj Chopra) ने इसके लिए जी तोड़ मेहनत की थी. गोल्ड जीतने के लिए नीरज दो साल मोबाइल से भी दूर रहे थें.

Tokyo Olympics 2020: नीरज चोपड़ा (Gold Medalist Neeraj Chopra) ने तोक्यो ओलिंपिक में शनिवार को भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रच दिया है. नीरज ने अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर भाला फेंका, जो स्वर्ण पदक हासिल करने के लिए निर्णायक साबित हुआ. तोक्यो में भारत का यह अंतिम इवेंट था. यह ओलिंपिक एथलेटिक्स में भारत का पहला स्वर्ण पदक है. इस ऐतिहासिक जीत के बाद नीरज चोपड़ा से प्रभात खबर के सुनील कुमार ने विशेष बातचीत की. पेश है खास अंश.

  • नीरज जी, आपको इस ऐतिहासिक जीत के लिए बहुत-बहुत बधाई.

धन्यवाद.

  • इस जीत को लेकर आप कितने आश्वस्त थे?

जीत को लेकर मैं आश्वस्त जरूर था, लेकिन जर्मनी के योहानेस वेटर को लेकर मैं थोड़ा आशंकित भी था. वेटर का पर्सनल बेस्ट 97.76 मीटर जेवलिन थ्रो करने का है.

  • आपने दूसरे ही प्रयास में बड़ी बढ़त ले ली थी, उसके बाद भी?

जी, मैंने दूसरे प्रयास में ही 87.58 मीटर जेवलिन फेंका, मगर इसके बाद सभी की निगाहें वेटर की ओर थीं, लेकिन वह पहले प्रयास (82.52 मीटर) को छोड़ कर बाकी दो प्रयासों में फाउल हो गये. इसके बाद मैं अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हो गया.

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  • अन्य किसी खिलाड़ी को भी आप अपना चैलेंज मान रहे थे?

जी हां, चेक गणराज्य के याकूब वादलेच (86.67) और वितेज्लाव वेसेली (85.44) से थोड़ी चुनौती मिली, लेकिन दोनों पीछे ही रहे.

  • इस मुकाम को हासिल करने के लिए कितनी कठिन मेहनत आपने की?

देखिए, पिछले दो सालों से मैं सोशल मीडिया से दूर रहा. यहां तक कि इन दो सालों में मैंने अपने पास फोन भी नहीं रखा. बाहर की दुनिया की खबरों से दूर रहा. मैंने पूरा फोकस तोक्योे ओलिंपिक की तैयारी पर किया. इसकी तैयारी मैंने विदेश में की. इसके लिए मैं भारत सरकार और एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया को धन्यवाद देता हूं.

  • जेवलिन के प्रति रुचि कैसे जगी, कुछ बताना चाहेंगे?

देखिए, मैं पहले जिम जाता था. पास में ही स्टेडियम था. वहां टहलने जाया करता था. वहीं देखा कि कुछ बच्चे जेवलिन फेंक रहे हैं. यहीं से मुझे इसकी प्रेरणा मिली.

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