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CPI नेता अतुल कुमार अंजान का बांका से था गहरा लगाव, अंतिम बार अगस्त 2023 में आये थे अपने पैतृक गांव

सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान का निधन शनिवार को लखनऊ में हो गया. वो काफी वक्त से कैंसर से जूझ रहे थे. आइए जानते हैं बिहार से उनके कनेक्शन के बारे में

(दीपक राव, सुभाष वैद्य, भागलपुर/बांका)

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान के निधन से बांका-भागलपुर में भी शोक की लहर है. अंग क्षेत्र की धरती से उनका गहरा लगाव था. बांका उनका पैतृक घर था. अतुल कुमार अंजान परिजन बांका में भी रहते हैं. शहर के नयाटोला स्थित आज भी इनका भरा-पूरा परिवार निवास करता है. अतुल कुमार अंजान के पिता डा. अयोध्या प्रसाद सिंह  स्वतंत्रता सेनानी थे. अतुल कुमार अंजान की पुत्री विदुषी सिंह है. इनके दादा का नाम शशि भूषण सिंह उर्फ लाॅड सिन्हा था. इन्हें बनैली स्टेट ने बांका व भागलपुर में काफी जमीन दी थी. भागलपुर में भी अतुल अंजान के परिवार की संपत्ति है.

बहुत पहले अतुल कुमार अंजान के पिता ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ में अपनी गृहस्थी बसा ली थी. उनके बड़े चाचा कृष्ण कुमार सिंह का बांका में मकान है, जिनका परिवार यहां रहता है. कृष्ण कुमार सिंह के पुत्र यानी अतुल कुमार अंजान के चचेरे भाई का नाम राजू सिंह उर्फ राजीव कुमार सिंह व शिव कुमार सिंह उर्फ शिवू सिंह हैं. उनके चचेरे भाई व अन्य पारिवारिक सदस्यों के बीच मातम पसर गया है.

उनके निधन की खबर सुनने के बाद बांका स्थित परिवार के कई सदस्य लखनऊ के लिए प्रस्थान कर गये. अक्सर कई पारिवारिक व राजनीतिक आयोजन में अतुल कुमार अंजान का बांका में आना-जाना लगा रहता था. बताया जाता है कि अतुल कुमार अंजान की शादी बेगुसराय निवासी कामरेड इंद्रजीत सिंह की पुत्री से हुई थी. इनके ससुर को एक घड़ी तत्कालीन संयुक्त रूस के राष्ट्रपति ने गिफ्ट में दी थी और वह घड़ी बाद में ससुर ने इन्हें दे दी. अक्सर वह उस घड़ी को पहने नजर आते थे.

धोरैया में अंतिम बार राज्य सम्मेलन को किया था संबोधित

19 सितंबर 2022 को धोरैया में पार्टी का राज्य सम्मेलन आयोजित हुआ था. जहां वे दो दिन रुक कर राज्य सम्मेलन को संबोधित किया था. इसमें किसान, मजदूर आंदोलन को वृहद रूप देने की हुंकार भरी थी. जिला में उनका यह अंतिम राजनीतिक संबोधन था. इसके पूर्व वह दर्जनों बार पार्टी व चुनावी कार्यक्रम में शिरकत करने आते-जाते रहें. 2012-13 के आस पास उन्होंने आरएमके मैदान में एक बड़ी सभा को संबोधित किया था.

बांका के विकास के लिए सदा रहते थे चिंतित

बांका से पारिवारिक लगाव के कारण उन्हें बांका के विकास की हमेशा चिंता रहती थी. राष्ट्रीय स्तर पर प्रखर वक्ता होने के बावजूद बांका के विकास की चिंता हमेशा करते रहते थे. यहां के मजदूरों, गरीबों, शोषितों-वंचितों के उत्थान के लिए हमेशा आवाज उठाते रहे. 2005 में बांका स्थित ककवारा की एक सभा में अतुल कुमार अंजान अपने माता-पिता के साथ आये थे. 29 अगस्त 2023 को अंतिम बार अपने निजी काम के लिए बांका आये थे.

2013 में भागलपुर में अतुल अंजान ने प्रभात खबर से बातचीत के दौरान फासीवादी ताकतों के उभार पर चिंता जतायी थी. साथ मजदूर-किसानों की आवाज को आयाम देने के लिए लगातार संघर्ष करने की बात कही. वे जब-तब किसी तरह की राजनीतिक गतिविधि से अवगत होने के लिए भागलपुर व बांका के सजग नागरिकों से बातचीत करते रहते थे.

लखनऊ यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष के रूप में 1977 के राजनीति की शुरुआत करने वाले अतुल अंजान को वामपंथी राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता था. अतुल कुमार अंजान 20 साल की उम्र में नेशनल कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष के रूप में चुने गये. छात्रों की चिंताओं को उठाने के लिए लोकप्रिय अंजान ने लगातार चार बार लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष पद चुनाव भी जीता.

अतुल कुमार एक प्रभावशाली व्यक्ति थे, जिनको करीब आधा दर्जन भाषाओं की जानकारी थी. अंजान अपने विश्वविद्यालय के दिनों के दौरान ही वामपंथी पार्टी में शामिल हो गये. अतुल कुमार अंजान, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध पुलिस-पीएसी विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक थे. अंजान ने अपने राजनीतिक सफर के दौरान चार साल नौ महीने जेल में भी बिताये.

बांका शहर स्थित नयाटोला में चचेरे भाई का मकान
बांका शहर स्थित नयाटोला में अतुल कुमार अंजान के चचेरे भाई का मकान

याद कर भावुक हो जाते हैं बांका-भागलपुर निवासी साथी

पूर्व एमएलसी व धोरैया निवासी कामरेड संजय कुमार बताते हैं कि 1997 में उनके पिता व कामरेड वासुदेव यादव की प्रतिमा का अनावरण अतुल कुमार अंजान ने ही किया था. अतुल कुमार अंजान बेहद ईमानदार और स्पष्टवादी व्यक्ति थे. उन्हें करीब से जानने वाले बांके बिहारी बताते हैं कि प्रखर वक्ता और पार्टी के लिए उनके ऐसा समर्पित व्यक्ति विरले ही नजर आते हैं.

भाकपा के राज्य परिषद सदस्य डॉ सुधीर शर्मा ने कहा कि उनके पिता डॉ एपी सिंह को ब्रिटिश हुकूमत ने कालापानी की सजा दी. उनकी छाप पुत्र अतुल अंजान पर पड़ी. हिंदी व अंग्रेजी के प्रखर व ओजस्वी वक्ता की आवाज आज सदा के लिए बंद हो गयी. छात्र जीवन में 1978 में ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के लुधियाना राष्ट्रीय अधिवेशन में अध्यक्ष चुने जाने से लेकर आज तक का उनका लंबा राजनीतिक जीवन सफर थम गया.  उनके निधन से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,वामपंथी आंदोलन और किसान आंदोलन के लिए अपूरणीय क्षति हुई. 

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