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हड़ियाही सिंचाई परियोजना पांच दशक से अधूरी, किसानों में निराशा

अब बेकार होने के कगार पर है परियोजना

औरंगाबाद. जिले के दक्षिणी क्षेत्र में हजारों एकड़ भूमि को सिंचित करने वाली बटाने जलाशय हडियाही सिंचाई परियोजना विगत्त पांच दशक से अधूरी पड़ी है. राजनेताओं के अथक प्रयास के बावजूद भी परियोजना का कार्य अब तक अधर में झूल रहा है. ऐसे में यह सिंचाई परियोजना बेकार साबित हो रही है. आज भी उक्त क्षेत्र किसान कृषि कार्य भगवान भरोसे करते हैं. परियोजना की शुरुआत 49 वर्ष पहले 1975 में हुई थी. उस समय योजना पूरा करने का स्टीमेट कॉस्ट मात्र चार करोड़ 77 लाख रुपये था. इसके बाद जैसे-जैसे समय बढ़ता गया स्टीमेट भी बढता गया. वर्ष 1981 में स्टीमेट कॉस्ट बढ़कर नौ करोड़ 74लाख किया गया. इसी तरह से वर्ष 1996 में 33करोड़, 2010 में 116 करोड़ तथा 2015 में बढकर 203 करोड़ 64 लाख हो गया है. वर्ष के अनुसार लगातार लागत एस्टीमेट भले ही बढ़ गया हो पर बटाने जलाशय का कार्य पूर्ण होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है. वैसे औरंगाबाद के पूर्व सांसद सुशील कुमार सिंह ने अधूरे योजना के कार्य पूर्ण कराने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है. वहीं स्थानीय विधायक राजेश कुमार ने भी बटाने नहर के जीर्णोद्धार के लिए विधान सभा में आवाज उठायी. परता गांव के बुजुर्ग मिथिलेश पांडेय, झखरी के राधेश्याम सिंह व करमडीह के राजा पांडेय आदि बताते हैं कि जब परियोजना शुरू हुई थी तो झारखंड भी बिहार का हिस्सा था. दोनों राज्यों के बीच विभाजन के बाद समस्या और जटिल हो गयी है. उन्होंने बताया कि निमार्ण कार्य शुरू होने के समय ऐसा लगा रहा था कि अब किसानों को सिंचाई की समस्या से निजात मिलेगी. लक्षमीपुर व गुलाबझरी के बीच स्थित है डैम झारखंड के पलामू जिलातंगर्त नवडीहा प्रखंड के लक्ष्मीपुर गुलाबझरी गांव के बीच हड़ियाही डैम बनकर तैयार है. ठीक वहां से तीन किलोमीटर नीचे लोदिया गांव के समीप बटाने नहर का बराज बना है. उक्त बराज से दोनों तरफ लेफ्ट व राइट कैनाल निकाला गया है. लेफ्ट कैनाल का कार्य पूर्ण है व राइट कैनाल का कार्य झारखंड पोरसन में अब तक अधूरा पड़ा है. इसकी सारी संरचनाएं तहस-नहस होती चली जा रही है. वहीं, मुआवजे को लेकर डूब क्षेत्र के विस्थापितों ने पूरे गेट का फाटक उठाकर वेल्डिंग कर दिया है. उनका कहना है कि जबतक भरपाई राशि नहीं प्राप्त होगी तब तक गेट गिरने नहीं देंगे. हालांकि, इससे दोनों राज्य का नुकसान है. किसान से लेकर आम नागरिक तबाह है. डैम में पानी के भंडारण नहीं होने व बहाव जारी रहने से बिहार के नवीनगर देव और कुटुंबा प्रखंड क्षेत्र में सिंचाई नहीं हो पा रही है. किसान लगातार अकाल-सुखाड़ से जूझ रहे है. दूसरे तरफ छतरपुर और नवडीहा प्रखंड क्षेत्र में भूजल स्तर पाताल में चला गया है. पेयजल के लिए हाहाकार मचा हुआ है. पीढ़ी दर पीढ़ी को चाहिए मुआवजा उक्त क्षेत्र के विस्थापित निजी स्वार्थ में पड़कर कुछ ज्यादा परेशान है और डैम का गेट डाउन नहीं होने दे रहे है. उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी का मुआवजा चाहिए. एकही खाता, प्लॉट व रकबा पर परदादे के बाद परपोते और उनके वंशज को भी मुआवजा चाहिए. निर्माण कार्य शुरू होने से लेकर अब तक विस्थापितों कई बार सरकार से मुआवजे की राशि लेते रहें है. सच में कहा जाये, तो हड़ियाही सिंचाई परियोजना उनके लिए कामधेनु साबित हो रही है. ऐसे अगर हकीकत की जांच कराई जाये, तो उस समय के राजस्व अधिकारी, अमीन व कई कर्मी जेल में मिलेंगे. नाम नहीं छापने की शर्त पर विस्थापित के परिजन बताते हैं कि जिस समय डूब क्षेत्र का सर्वे हो रहा था. उस समय वहां के विस्थापितों ने अपने दूर-दराज के रिस्तेदारों से झोंपड़ी लगवाकर उसमें चूल्हे जलवाये. इसके बाद पारिवारिक सूची में नाम जोड़कर उन्हें लाभ पहुंचाने का प्रयास किया है. इसके वजह से भी मुआवजा अभी तक अधर में है. 12,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि में पटवन करने का लक्ष्य बटाने हडियाही सिंचाई परियोजना की शुरुआत बिहार व झारखंड के करीब 12126 हेक्टेयर भूमि सिंचित किये जाने का लक्ष्य से किया गया था. इसमें बिहार के 10720 हेक्टेयर एवं झारखंड के 1406 हेक्टेयर भूमि है. बिहार व झारखंड में बंटवारे हो जाने के बाद योजना अधर में लटका है. प्रारंभ में योजना की राशि महज चार करोड़ रुपये थी, जो आज बढ़कर 125 करोड़ हो गयी है. इसके बाद भी परियोजना पूर्ण नहीं हो सका है. 17 मीटर है डैम की ऊंचाई बटाने जलाशय परियोजना का डैम झारखंड के पलामू जिले में अवस्थित है. जानकारी के अनुसार डैम की ऊंचाई 17 मीटर है. बराज में सात गेट लगाये गये हैं. बराज से करीब 26 किलोमीटर लंबी नहर की खुदाई की गयी है, जिसके छह किलोमीटर लंबाई झारखंड में तथा 20 किलोमीटर लंबाई बिहार क्षेत्र में पड़ता है. क्या बताते हैं एग्जीक्यूटिव इंजीनियर बटाने शीर्ष कार्य प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता गजेंद्र कुमार चौधरी ने बताया कि बटाने नहर के हड़ियाही डैम का सारा कार्य कंप्लीट है. डूब के क्षेत्र के विस्थापित गेट ऊपर उठाकर उसे वेल्डिंग कर दिया है. ऐसे में वर्षो से जल भंडारण नहीं हो पा रहा है. इधर, बटाने नदी के पठारी भाग में वर्षा होने पर बराज से लेफ्ट साईड कैनाल में पानी डिस्चार्य कर अधिनस्थ क्षेत्रो में सिंचाई कराई जाती है. वहीं राइट साइड का कार्य बिल्कुल अपूर्ण है. बटाने नहर का जीर्णोद्धार से लेकर मेंटेनेंस झारखंड को करना है. बिहार की सरकार अनुपात में राशि आवंटित करती है.

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