सुजीत कुमार सिंह, औरंगाबाद: कारगिल विजय दिवस (kargil vijay diwas 2024) के दिन बिहार के भी वीरों की भूमिका को याद किया जाता है. 26 जुलाई वह तिथि है, जब देश की सरहद की रक्षा करने वाले वीर जवानों ने कारगिल में पाकिस्तान को धूल चटाकर देश को जीत का तोहफा दिया था. इस भीषण युद्ध में हिंदुस्तान के कई योद्धाओं ने अपनी शहादत भी दी थी. इन्ही मे शुमार हैं औरंगाबाद के वीर शिव शंकर गुप्ता. छह जून, 1999 को जब उनकी शहादत की खबर जिले में पहुंची तो हर किसी का सीना फक्र से ऊंचा हो गया था. भारतीय सेवा के वीर सपूत शिव शंकर गुप्ता अपने साथियों के पार्थिव शरीर को लाने के लिए दुश्मनों की मांद में जा घुसे थे और इसी दौरान शहीद हुए.
एक साल की बेटी, पत्नी के गर्भ में था बेटा, युद्ध लड़ने निकल पड़े वीर
रफीगंज प्रखंड के बगड़ा बंचर गांव निवासी नंदलाल गुप्ता और पूनम देवी के बेटे शिव शंकर प्रसाद गुप्ता बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन में सिपाही थे. बहाली के ढाई साल ही हुए थे कि सरहद से उन्हें बुलावा आ गया. उस वक्त उनकी बेटी निशा कुमारी एक वर्ष की थी और बेटा राहुल मां के गर्भ मे था. करगिल युद्ध पूरे उफान पर था. युद्ध में उनके कंपनी कमांडर मेजर एम सरवनन और सेक्शन कमांडर नायक गणेश प्रसाद यादव शहीद हो चुके थे. उनके पार्थिव शरीर दुश्मनों के दायरे में थे.
साथियों का शव लेने जब दुश्मनों की मांद में घुसे, शहीद हुए
शिव शंकर साथी सैनिकों के साथ चार जून की सुबह शव लाने के लिए आगे बढ़े और 14230 फुट ऊंची पथरीली व बर्फीली पहाड़ी पर पहुंच गये. वहां कंपनी कमांडर का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था. रेंगते हुए वे शव के पास पड़े हथियार और गोला-बारूद नीचे ले आये. पार्थिव शरीर लाने के लिए दोबारा ऊपर चढ़े और उसे लेकर 50 मीटर की ही दूरी तय की थी कि उन्हें दुश्मन की गोली लग गयी. लेकिन बिना घबराये उन्होंने मोर्चा संभाले रखा और दुश्मन पर फायरिंग करते हुए उन्हें आगे बढने से रोक दिया. दो घंटे तक गोलीबारी होती रही. अंतत: सीने मे एक गोली लगी और महज 20 साल आठ माह की उम्र मे शिव शंकर अपने देश के लिए शहीद हो गए.
मेजर एम सरवनन समेत पूरे बिहार रेजिमेंट की रही बड़ी भूमिका
बिहार रेजिमेंट के योगदान की बात जब भी होगी कंपनी कमांडर मेजर एम सरवनन की जांबाजी का भी जिक्र जरूर किया जाएगा. जब मेजर एम सरवनन अपनी टुकड़ी के साथ रेकी पर निकले थे तो 14 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों ने गोलियां दागनी शुरू कर दी. तब मेजर सरवनन ने ही अपने कंधे पर रॉकेट लांचर रखकर दुश्मन पर हमला बोलना शुरू किया और पाकिस्तानी घुसपैठियों को ढेर किया. यहीं से कारगिल युद्ध की शुरुआत हुई थी. युद्ध के दौरान मेजर सरवनन समेत अन्य जवानों ने अग्रिम पंक्ति में बलिदान दिया था.