Banka News : संजीव पाठक, बौंसी. बढ़ती गर्मी के साथ-साथ नगर व प्रखंड क्षेत्र में भूमिगत जल का स्तर गिरता जा रहा है. लोग पेयजल के लिए त्राहिमाम हैं. लेकिन पानी के अवैध कारोबारी मालामाल हो रहे हैं. नगर पंचायत के साथ-साथ प्रखंड क्षेत्र में पानी का अवैध कारोबार लगातार बढ़ जा रहा है. लेकिन इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है. बिना लाइसेंस और तय मानक को ठेंगा दिखाकर लगातार वाटर प्लांट लगाये जा रहे हैं. रोजाना हजारों क्यूबिक पानी जमीन के अंदर से निकालकर बेचा जा रहा है. इसकी शुद्धता की जांच करने वाला कोई नहीं है. इलाके में पीने के पानी की किल्लत होने की वजह से यह कारोबार तेजी से बढ़ता जा रहा है. क्षेत्र में बेचे जाने वाले पानी की जांच ना तो खाद्य सुरक्षा अधिकारी ही कर रहे और ना ही पीएचईडी विभाग के द्वारा ही इसकी जांच हो रही है. नतीजा यह है कि गली-गली में आम आदमी के पानी पर डाका डालने वाले बढ़ते जा रहे हैं. जिसकी वजह से भूमिगत जल का स्तर नीचे जा रहा है. पानी के जार का कारोबार फैलता ही जा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक प्रखंड क्षेत्र में दो दर्जन से ज्यादा जगह पर पानी का कारोबार चल रहा है.
शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में है वाटर प्लांट
बांका जिले के बौंसी के शहरी से लेकर ग्रामीण इलाकों में वाटर प्लांट लगे हैं. जहां से अवैध तरीके से पानी का कारोबार किया जा रहा है. छोटे- छोटे वाहन पानी लेकर सड़कों पर दौड़तेहैं. लेकिन जिला प्रशासन से लेकर पीएचईडी विभाग तक बेसुध है. नगर पंचायत का भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है. 20 लीटर वाले कंटेनर में बिकने वाला यह पानी 20 से 30 रुपये प्रति जार की दर से बिक रहा है. पानी की शुद्धता के तय मानक की जानकारी और जागरूकता के अभाव में लोग इस पानी का जमकर इस्तेमाल भी कर रहे हैं. गर्मी के दिनों में इसकी मांग बढ़ जाती है. घरों से लेकर होटल-रेस्टोरेंट और पार्टी-फंक्शन में पीने के लिए इस पानी की खूब खपत है.
आधा पानी हो जाता है बर्बाद
जानकारों की मानें, तो वाटर प्लांट में पानी शुद्ध करने के लिए ऑस्मोसिस प्रक्रिया अपनायी जाती है. इस प्रक्रिया में 100 लीटर पानी में सिर्फ 50 लीटर पानी ही शुद्ध होता है. 50 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है. एक अनुमान के मुताबिक नगर व प्रखंड क्षेत्र में प्रतिदिन 30 से 40 हजार लीटर पानी की सप्लाई की जाती है और उतना ही पानी प्रतिदिन बर्बाद हो जाता है. हालांकि गायत्री जल पावर प्लांट के मालिक विजय का कहना है कि शुद्धता के बाद बचे हुए पानी को वह सिंचाई के लिए प्रयोग कर लेते हैं. ऐसे में सरकारी उदासीनता की वजह से भूगर्भ जल का जमकर दोहन हो रहा है. सूत्रों की माने तो पानी में स्वाद लाने के लिए इसमें सोडा और कई तरह के केमिकल भी मिलाए जाते हैं, जो सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं. ऐसे में आम लोग पैसे लगाकर भी अशुद्ध पानी पीते हैं. इतना ही नहीं जिस जार से पानी सप्लाई की जाती है उसकी बेहतर तरीके से सफाई भी नहीं की जाती है. दूर से ही जार देखने में काफी गंदा दिखता है. इतना ही नहीं भूमिगत जल के लगातार दोहन होने से पानी के टीडीएस में भी तेजी से कमी आ रही है.
लेना पड़ता है लाइसेंस
100 लीटर से अधिक पानी के दोहन और बिक्री पर लाइसेंस लेना अनिवार्य है. पानी के जार का कारोबार करने के लिए पांच विभागों से अनुमति लेनी होती है. जिनमें मुख्य रूप से नगर पंचायत, स्वास्थ्य, उद्योग, फूड विभाग, पीएचईडी के साथ-साथ ट्रेड (आई एस आई मार्का) का भी लाइसेंस लेना पड़ताहै. इसके अलावा अन्य कई तरह के प्रमाण पत्र लेने होते हैं.
नगर और प्रखंड क्षेत्र में लगे वाटर प्लांट
- मधुसूदन जल पाठक टोला
- आकाश जल थाना गेट के पास
- मून जल पंडा टोला
- गायत्री जल भागलपुर रोड
- मंदार जल अचारज
- नवनीर जल अचारज
- प्रिंस जल गुड़ियामोड़
- मां संतोषी जल मारवाड़ी गली
- शीतल जल मारवाड़ी गली
- सरोज जल सीएनडी खेल मैदान
- मंगलम जल सीएनडी खेल मैदान
- अंकुश जल
- शीतल जल गुरुधाम समीप
- पार्वती जल श्याम बाजार
- मां दुर्गा जल श्याम बाजार
- कृष्णा जल सरुआ
- इसके अलावा कई अन्य जगहों पर नये-नये वाटर प्लांट और खुल रहे हैं.