बेतिया. प्रतिकूल जलवायु को देखते हुए कृषि विभाग ने जिलों में श्री अन्न यानी मोटे अनाज की खेती की अनुशंसा की है. मोटे अनाज की खेती किसानों के बीच अधिक से अधिक हो सके इसके लिए जिले में किसानों के बीच प्रत्यक्षण (फ्रांटलाइन डिमोंस्ट्रेशन) को बढ़ावा दिया है. जिले में 1075 एकड़ में इसकी खेती का लक्ष्य रखा गया है. इसमें जौ के दो, बाजरा के 16, मड़ुआ के 10 एवं चीना के 15 की संख्या में क्लस्टर का चयन किया गया है. प्रत्येक क्लस्टर 25 एकड़ का होगा. जिला कृषि पदाधिकारी प्रवीण कुमार राय के अनुसार मोटे अनाज की खेती के लिए विभाग की ओर से समूह में बीज देने के साथ-साथ अन्य तकनीकी जानकारी दी जएगी. ताकि वें श्री अन्न की खेती बेहतर ढंग से कर सकें. श्री अन्न की खेती वैसी जगहों पर की जानी है, जहां पानी के अभाव में धान की खेती नहीं होती हो. ऐसा इसलिए कि इसकी खेती में कम नमी की आवश्यकता होती है. पारंपरिक फसलों की तुलना में इसकी लागत भी कम आएगी. दूसरी ओर श्री अन्न के सेवन से डायबिटिज एवं बीपी जेसी बीमारी से भी राहत मिलेगी. अचानक हो रहे जलवायु परिवर्तन शष्य प्रणालि को भी प्रभावित कर सकता है. हम जो पारंपरिक फसल यानी धान, गेहूं आदि की खेती, जो खेती करते हैं, उसमें भी परेशानी आ सकती हैं। ऐसी स्थिति में हमारे बीच जरूरत है, वैसी फसलों के चयन की, जो प्रतिकूल जलवायु की स्थिति एवं कम खर्च में खेती हो सके. साथ इस यह कृषि उपज हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर हो सके. डीएओ के अनुसार श्री अन्न वाली फसलों का उपयोग आज के जलवायु परिवर्तन के दौर में काफी अहम योगदान है. उन्होंने बताया कि आहार में कुपोषण की घटनाओं पर काबू पाने के लिए काफी अच्छा स्रोत है. मोटे अनाजों में मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, समा, कंगनी और चीना आते हैं, जो कम पानी एवं कम उपजाऊ जमीन में भी आसानी से उगाया जा सकता है. इसे उगाने में बहुत कम खर्च किसानों को होगा. इन फसलों में पौष्टिक गुणों की भरमार है. प्रोटीन सूक्ष्म पोषक तत्व और फाइटोकेमिकल्स उच्च मात्रा में पाया जाता है. साथ ही साथ उच्च अमीनो एसिड प्रोफाइल भी है. जबकि को बाजार में गेहूं और मक्का से तीन गुणा और चावल से 10 गुना आहार फाइबर शामिल होता है, जो हृदय रोग, अल्सर, हाइपरग्लाईसेमिया से बचाव में सहायक होता है.
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