वाल्मिकिनगर. राम कथा वाचन के आठवें दिन संत मोरारी बापू ने व्यास पीठ से मां जानकी, महर्षि वाल्मीकि, दिव्य बालक लव कुश और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चैतन्य को प्रणाम कर कथा की शुरुआत की. इससे पूर्व हमेशा की तरह भांति हनुमान चालीसा, राम वंदना, हनुमान वंदना और जग कल्याण हेतु मंत्र उच्चारण किया गया. राम कथा को आगे बढ़ाते हुए संत शिरोमणि मोरारी बापू ने कहा कि श्रद्धा और विश्वास से राम कथा को सुनना चाहिए. राम चरित्र मानस में आश्रम का कई जगह जिक्र है. जिसमें सबसे पहले भारद्वाज ऋषि का आश्रम, खंबुजा ऋषि का आश्रम, गुरु वशिष्ठ का आश्रम, वाल्मीकि मुनि का आश्रम, महर्षि विश्वामित्र जी का आश्रम, चित्रकूट का आश्रम, महर्षि अत्रि का आश्रम, पंचवटी आश्रम, शबरी आश्रम, स्वयं प्रभा आश्रम, बाबा कागभुसुंडि आश्रम, मुनि लोभस आश्रम सहित कई और हैं. आश्रम किसे कहते हैं. जहां सबों का आवकार मिले, स्वीकार मिले, आहार मिले, जहां आदम मिले, शास्त्र मिले, आरोग्य मिले, दिन दुखियों को आश्वासन से भर दे, आनंद मिले, आश्रय मिले, जो ब्रह्म को बेचे नहीं बांटे वो आश्रम है. आश्रम स्वाभाविक होता है प्रभावी नहीं. बापू ने बताया कि महर्षियों ने रामायण को काव्य और महामंत्र कहा है. गुरु की सेवा भाग्यवान लोगों को मिलता है. गुरु की चरण की सेवा करें, जो साधक श्रनस्थ और चरण स्थ होते हैं उन्हें कभी न कभी शीर्षस्थ की प्राप्ति होती है. सब कुछ करें परंतु कथा को न छोड़े. निस्वार्थ भाव से गुरु का भजन करें. प्रेम जगत में चार प्रकार के होते हैं जो आंखों में दिखाता है. जो करुणा नैन, मारक नैन, कमल नैन और नवजात बच्चों का नैन है. प्रेम में कोई कामना नहीं होती. गाय का पूजन जरूर करें. परमात्मा गाय का सेवा करने का आदेश देता है. मानव बंदर का विकसित रूप है. परंतु आंख, गाय का है. गुरु का वचन जीवन को धन्य करता है. बापू ने बताया कि क्रोध का निवारण क्षमा है, लोभ का निवारण दान है, काम का निवारण भजन है. जिसके नाम से आराम मिले, विश्राम मिले, विश्व का भरण पोषण हो वही राम हैं. जिसका नाम जपने से शत्रु का नाश हो वो राम हैं. श्रद्धालुओं को पूरा पंडाल भरा होने के कारण पंडाल के बाहर बैठकर राम धुन करते और कथा श्रवण करते देखा गया. भारी संख्या में पंडाल के बाहर भी श्रद्धालु राम धुन और राधे राधे धुन पर झूमते रहे. राम कथा वाचन के दौरान संत मोरारी बापू ने कहा कि *हरि अनंत हरि कथा अनंता*. साधना के विषय पर बापू ने बताया कि जहां पर्वत की स्थिरता मिले वहीं साधना हो सकती है. उद्वेग के भाव के साथ साधना नहीं की जा सकती. यह तो प्रेम नगर है. जिसको उद्वेग,भय नहीं होता वहीं स्थिर है. जीन जीवों की डावांडोल स्थिति है वह स्थिरता नहीं होने का प्रमाण है. साधना के लिए वीरता, निर्भयता, स्थिरता नितांत आवश्यक और जरूरी है. बापू ने वर्षी दान के महत्व पर भी चर्चा के दौरान बताया कि एक वर्ष में महावीर ने सब कुछ जरूरतमंदों को दान कर दिया. यह कहा गया है कि महावीर स्वामी अन्तर्यामी साधना के लिए वीरता की दरकार है. क्योंकि माना गया है कि वन वीरता का प्रतीक है. जबकि पहाड़ स्थिरता का. जलाशय का जल पावन होता है. आश्रम वह है जहां हरि भजन, हरि चर्चा होती है. वहां डर का कोई स्थान नहीं होता. प्रभु के सुमिरन से सभी दुखों का नाश हो जाता है. प्रभु राम की तरह सुबह उठकर सबसे पहले माता, पिता और गुरु को नमन के उपरांत दिनचर्या शुरू करें. साधु मधुकर के समान होता है जहां जो उत्तम मिला ले लिया.
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