-काली मां के उपासक व महान तांत्रिक बामाखेपा का महाशय ड्याेढ़ी परिवार के आमंत्रण पर 1902 में हुआ था आगमन, अब भी माघ माह में होती है तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चनाकाली पूजा विशेष
दीपक राव, भागलपुर
वार्ड एक अंतर्गत चंपानगर बंगाली टोला स्थित वह सिद्धि स्थान लोगों को तंत्र-मंत्र सिद्धि की याद दिलाता है, जो आज भी महाशय ड्योढ़ी के दायरे में महान तांत्रिक बामाखेपा की ओर से स्थापित पंच नरमुंड आसन और 17 काली स्थानके रूप में अवस्थित है. यहां कभी सुदूर क्षेत्र बंगाल और ओडिशा के तांत्रिक अपनी सिद्धि के लिए आते थे. काली पूजा में सिद्धि प्राप्त कर लौटते थे. यह क्षेत्र तांत्रिकों का गढ़ था. अब इस क्षेत्र में इक्का-दुक्का ही तांत्रिक दिखते हैं.आसपास के क्षेत्रों में है 17 काली स्थान
क्षेत्र के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता देवाशीष बनर्जी ने बताया कि चंपानगर बंगाली टोला का यह क्षेत्र खास कर वार्ड एक शुरू से तांत्रिक पीठ के नाम से प्रसिद्ध है. जमींदारी प्रथा के समय सूफी संतों का इस क्षेत्र में जमावड़ा लगता था. इसका साक्ष्य प्रमाण है एक सूफी संत विदेशी बाबा की मजार, जो आज भी अवस्थित है. तारापीठ के संस्थापक बामाखेपा ने इस क्षेत्र में पंचमूंड आसन माघी काली मंदिर की स्थापना की थी.महाशय तारकनाथ घोष ने किया था आमंत्रित, बामाखेपा के आशीर्वाद से महाशय ड्योढ़ी का बढ़ा वंश
सौ साल पहले महाशय तारक नाथ घोष को पंडितों व पुरोहितों ने सलाह दी थी कि क्षेत्र में फैल रही अशांति को दूर करने व वंश बढ़ाने के लिए तंत्र विद्या से पूजा करायें. उस समय तारापीठ के संस्थापक व देश के बड़े तांत्रिकों एक थे बामाखेपा, जिसे बुलाने वह गये और विनती कर ससम्मान यहां लाया. ड्योढ़ी में प्रवेश करने के बाद बामाखेपा बाबा बटुक भैरव नाथ का दर्शन कर उस जगह अपनी धूनी जमा दी. दिनभर इसी स्थिति में रहने के बाद भी जब उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, तो महाशय तारक नाथ की माता रानी कृष्णा सुंदरी ने पूछा क्या चाहिए, बाबा. उन्होंने रानी मां को बताया कि यहां से 200 गज पश्चिम एक परती जमीन है, उसको साफ करवाओ. इसके बाद रात्रि में बामाखेपा ने महाशय को पांच नरमूंड भूतनाथ श्मशान घाट से लाने को कहा. पांच नरमूंड पर वेदी बना कर पूजा की, जो आज भी नरमूंड आसन व माघी काली स्थान के रूप में अवस्थित है. वह यहां पर दो दिन भी नहीं ठहरे. इन दो दिनों में उन्होंने कुछ भी भोजन ग्रहण नहीं किया, तब रानी माता ने आग्रह किया कुछ ग्रहण किये बिना यहां से जाने पर महाशय का अपराध माना जायेगा. तब उन्होंने दूध व लावा ग्रहण किया. इसके बाद माता से कहा कि कुछ मांग लो माता रानी मां ने क्षेत्र में सुख-समृद्धि और महाशय परिवार की वंश वृद्धि के लिए पौत्र की मांग की. उनके आशीर्वाद से ही तीन पुत्री के बाद एक पुत्र का जन्म हुआ जिनका नाम अमरनाथ घोष रखा गया.छोटे दायरे में है 17 काली मंदिर
इस क्षेत्र को घुमने से ही पता चलता है कि यह कभी तांत्रिकों का गढ़ रहा होगा. छोटे से दायरे में 17 काली मंदिर सशान काली, रटंती (माघी) काली, फुदकी काली, ठाकुर काली, चक्रवर्ती काली, सरखेल काली, बुढ़िया काली, रक्षा काली, उपाध्याय काली, सिन्हा काली, हाड़ी टोला काली, एमटीएन घोष काली, श्यामा काली, रास काली, कार्तिक काली आदि अवस्थित है. इसमें कुछ स्थानों पर अब भी तंत्र-मंत्र विधि से मां की पूजा की जाती है.
दो तरह की होती है मां काली, वाममार्गी व दक्षिण मार्गी
आज भी इस क्षेत्र में तांत्रिक सिद्धि के लिए आते हैं. तांत्रिक वीरेंद्र आचार्य उर्फ घोलू बाबा कामख्या पीठ व बरारी श्मशान घाट से सिद्धि प्राप्त की थी. अब तो उनका भी निधन हो गया. मां काली के उपासकों का मानना है कि काली मां दो प्रकार की होती है. एक वाममार्गी और दूसरा दक्षिण मार्गी. वाममार्गी काली मां वह है जिसका बायां पैर आगे होता है, दक्षिण मार्गी काली मां का दायां पैर आगे होता है. बंगाली टोला गंगा तट पर पूरे क्षेत्र में इकलौती वाममार्गी काली मां है. अधिकतर काली मां दक्षिण मार्गी ही होती है. शहर में भूतनाथ और बरारी श्मशान घाट में अब भी तंत्र सिद्धि होती है.कहते हैं महाशय ड्योढ़ी ट्रस्ट के अध्यक्ष
1902 में बामाखेपा का आगमन हुआ और उन्होंने पंचमुंड आसन से इस काली स्थान की स्थापना की. तभी से काली पूजा माघ में होती है. यह महाशय ड्योढ़ी ट्रस्ट से संचालित है. पूरे भागलपुर में बामाखेपा द्वारा स्थापित मां काली का स्थान है. बांग्ला तांत्रिक विधि से पूजा होती है. अभी भी सिद्धि करने के लिए तांत्रिक पहुचते हैं. खासकर अमावस्या के दिन.ओरोबिंदो घोष, अध्यक्ष, महाशय ड्योढ़ी ट्रस्ट
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