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Durga Puja 2022: भागलपुर का भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर, पूरी होती है मनोकामना, जानें 350 साल पुराना इतिहास

Durga Puja 2022: भागलपुर के नवगछिया अनुमंडल के नारायणपुर प्रखंड अंतर्गत भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर का इतिहास करीब 350 साल पुराना है. इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ और मंत्रोच्चारण से वातावरण गुंजायमान रहता है.

अंजनी कुमार कश्यप, भागलपुर: दुर्गा पूजा 2022 (Durga Puja 2022) का शुभारंभ हो गया है. दो साल कोरोना के ग्रहण के बाद इस बार त्योहार की रौनक देखने को मिल रही है. बिहार के सभी जिलों में मां भगवती की अराधना हो रही है. भागलपुर में भी लोग माता की अराधना में लीन हो गये हैं. जगह-जगह पर पूजा पंडाल बनने लगे हैं. भागलपुर के प्रसिद्ध मंदिरों में एक है नवगछिया अनुमंडल के नारायणपुर प्रखंड अंतर्गत भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर. जहां दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने की लालसा लेकर माता का पूजन करते हैं.

करीब 350 वर्ष पुराना मंदिर का इतिहास

भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर का इतिहास करीब 350 वर्ष पुराना बताया जाता है. इस मंदिर को सिद्धपीठ मणिद्वीप के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर पूजा कमेटी के अध्यक्ष डॉ. हिमांशु मोहन मिश्र दीपक बताते हैं कि इस मंदिर की महत्ता कुछ विशेष है. बताते हैं कि जिस तरह भगवान श्रीराम का निवास स्थान साकेत है. श्रीकृष्ण गोलोक में और भगवान शंकर कैलाश में विराजमान हैं ठीक उसी तरह मैय्या का निवास स्थन मणिद्वीप ही है. और भ्रमरपुर मंदिर में मां अपने सहगामिनियों के साथ निरंतर निवास करती हैं इसलिए इसे मणिद्वीप का दर्जा दिया जाता है.

गंगा की मिट्टी से हजारों ब्राह्मणों ने पिंड बनाया

इस मंदिर का इतिहास करीब 350 वर्ष पुराना है. बताया जाता है कि बिरबन्ना ड्योढ़ी के क्षत्रिय परिवार और भगीरथ दत्ता झा के परिवार ने इस मंदिर की स्थापना की थी. जिस स्थान पर अभी मंदिर है वहां ठीक पास में कभी गंगा की धारा बहा करती थी. एकबार करीब हजार की संख्या में ब्राहमणों ने गंगा स्नान किया और गंगा की मिट्टी हाथ में लेकर वर्तमान दुर्गा मंदिर की जगह पर लाकर रख दिया. धारा प्रवाह मंत्र उच्चारण के जरिये मां की प्राण प्रतिष्ठा हुई और पिंड अस्तित्व में आया.

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मंदिर में दुर्गा सप्तशती का पाठ

आज मंदिर प्रांगण में नवरात्रि के मौके पर अधिक भक्तिमय माहौल रहता है. प्रांगण में दुर्गा मंदिर में सभी ब्राह्मण बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं.महाशय ड्योढ़ी चंपानगर से प्रतिमा बनानेवाले कारीगर चार पीढ़ियों से प्रतिमा बना रहे हैं. पंडित शशिकांत झा मां दुर्गा की यहां पूजा करते हैं, जबकि प्रधान पुजारी अभिमन्द स्वामी पूजन पर बैठते हैं. भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर में तांत्रिक पद्धति से पूजा होती है. निशा पूजा के दिन देवी की प्राण प्रतिष्ठा होती है. नवमी के दिन 1200 बलि दी जाती है. लोग दूर-दराज से आते हैं और अपनी मन्नत मां से मांगते हैं.

Published By: Thakur Shaktilochan

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