दीपक राव, भागलपुर
इंसान में बौनापन अभिशाप है, लेकिन आम के पौधों को बौना करने का रुझान बढ़ने लगा है. दरअसल कम से कम जगह में आम उगाकर उसका स्वाद लेने की चाह लोगों की बढ़ती जा रही है. लोग बौने वेराइटी के आम के पौधे ढूढ़ रहे हैं. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर भागलपुर में भी बौने किस्म के आम के पौधे उपलब्ध हैं.
स्वाद के साथ शोभा के लिए भी है फेमस
आम विशेषज्ञ मृगेंद्र सिंह ने बताया कि सबौर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में आम्रपाली के अलावा इरबिन, सेशेसन, मल्लिका, सुभाष, प्रभाशंकर, अरुणिमा, सूर्या के पौधे उपलब्ध हैं. इसके साथ ही प्रीतम, प्रतिभा, लालिमा, श्रेष्ठ, सूर्या आदि वेराइटी के बौने आम के पौधे उपलब्ध हैं, जो स्वाद के साथ शोभा के लिए भी लोगों को आकर्षित करता है.
छोटे वेरायटी के कई फायदे..
आम किसान कृष्णानंद सिंह ने बताया कि लखनऊ में विकसित अंबिका और अरूणिका के प्रति किसानों में रुझान बढ़ रहा है. आम के इन छोटी वैरायटी के कई फायदे हैं. इससे सघन वृक्षारोपण में कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगने के कारण कुछ ही सालों में बहुत अधिक उपज मिलना संभव है. छोटे पौधों से फलों को तोड़ना आसान है. देखरेख में भी कम खर्च होता है. अभी तक आम्रपाली किस्म अपने छोटे आकार के लिए काफी प्रचलित हुई हैं, लेकिन आम्रपाली के फल बाजार में आने में 30 वर्ष लग गये. इसके पौधे भी अन्य किस्मों की तरह विशाल रूप धारण कर लेते हैं.
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शोध किया गया..
इसी दिशा में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ में बौनी प्रजातियों के विकास के लिए शोध किया गया और अरूणिका एवं अंबिका नाम की संकर किस्में विकसित की गयी. अरूणिका अपनी मां आम्रपाली से पौधों के आकार में लगभग 40 प्रतिशत छोटी है. लाल रंग के आकर्षक फलों के कारण बौना पेड़ और आकर्षक लगता है.
कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगा सकते हैं..
दक्षिण भारतीय किस्म नीलम, उत्तर भारत में अपने छोटे आकार के पौधों के लिए जानी जाती है. आम्रपाली में नीलम ने पिता का रोल अदा किया और इसी कारण आम्रपाली से अरूणिका में नियमित फलन और बौनेपन का गुण विद्यमान है. हर साल फल देने वाली बौनी किस्में सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है. कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगाकर ज्यादा फल उत्पादन आज बागवानी के क्षेत्र में एक सफल तकनीक के रूप में अपनाया जा रहा है.