बिहार के भागलपुर सीट कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. कांग्रेस का भागलपुर विधानसभा पर तो कब्जा है लेकिन लोकसभा में आज भी कांग्रेस वापसी के लिए जद्दोजहद ही कर रही है. कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा से इसबार पार्टी को उम्मीद बनी थी कांग्रेस के खाते में फिर एकबार यह सीट आएगी लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम सामने आया तो कांग्रेस के हाथ में निराशा ही मिली. कांग्रेस प्रत्याशी अजीत शर्मा को एनडीए के जदयू प्रत्याशी अजय मंडल ने 1,04,868 मतों से हरा दिया. इस तरह अजीत शर्मा का सांसद बनने का भी सपना टूटा और कांग्रेस की वापसी भी इस सीट पर नहीं हो सकी.
22 राउंड अजय मंडल ने दी पटखनी..
मंगलवार को भागलपुर के बरारी अंतर्गत राजकीय पॉलिटेक्निक में बने मतगणना केंद्र पर वोटों की गिनती शुरू हुई तो पोस्टल बैलेट की गिनती में अजीत शर्मा आगे रहे. लेकिन ईवीएम के वोटों की गिनती जब शुरू हुई तो जदयू के अजय मंडल आगे निकलने लगे. 26 राउंड की गिनती में 22 राउंड जदयू के अजय मंडल तो 4 राउंड अजीत शर्मा को बढ़त मिली. वहीं 6 विधानसभा में 5 में अजय मंडल तो महज एक विधानसभा से अजीत शर्मा को लीड मिली. अंतत: शाम होते-होते स्थिति स्पष्ट होने लगी और अजीत शर्मा समेत कांग्रेस खेमे के चेहरे पर मायूसी साफ नजर आने लगी थी.
मायूस होकर निकले अजीत शर्मा तो बोले..
बता दें कि कांग्रेस और जदयू दोनों अपने उम्मीदवारों की जीत को लेकर आश्वस्त थे. मतगणना के दौरान जब लगातार अजय मंडल आगे बढ़ते रहे तो कांग्रेस प्रत्याशी अजीत शर्मा का मनोबल टूटता हुआ दिखने लगा था. वोटों की गिनती के बीच ही वो काउंटिंग सेंटर से मायूस होकर बाहर निकल आए थे और उन्होंने अपनी हार को तब ही स्वीकार कर लिया था. मतगणना के दौरान करीब 4 बजकर 30 मिनट पर कांग्रेस प्रत्याशी अजीत शर्मा मतगणना हॉल से बाहर निकल गए. उन्होंने पत्रकारों के सामने मायूस होकर अपनी हार मान ली थी. उन्होंने कहा कि वे अब मान चुके हैं कि वो हार गए हैं. उस समय अजीत शर्मा करीब 80 हजार वोट से पीछे चल रहे थे. उन्होंने कहा कि पांच किलो अनाज के चक्कर में अजय मंडल जीत गए.
भागलपुर में कांग्रेस के पास वापसी का था मौका
बता दें कि भागलपुर एकसमय कांग्रेस का गढ़ रहा है. 1957 से बनारसी प्र. झुनझुनवाला और भागवत झा आजाद जैसे दिग्गत कांग्रेसी नेता सांसद यहां से चुने गए हैं. 1984 तक हुए 9 बार के आम चुनाव में 7 बार कांग्रेस को ही यहां से जीत मिली थी. पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद यहां से 5 बार जीते थे.लेकिन 1989 से यहां कांग्रेस का सूर्य अस्त होना शुरू हो गया और धीरे-धीरे कांग्रेस का यह किला ढहता गया. कांग्रेस ने अंतिम बार उम्मीदवार भी यहां सदानंद सिंह के रूप में 2009 में उतारा था. लंबे अरसे के बाद जब गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में आयी तो पार्टी को जीत की उम्मीद थी.