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हिमालय पार कर गोगाबिल पहुंचे राजहंस

ठंड की दस्तक के साथ ही भागलपुर व आसपास के सरोवर,

-ठंड की दस्तक के साथ प्रवासी पक्षियों के कलरव से गूंज रहे हैं कई जलाशय ठंड की दस्तक के साथ ही भागलपुर व आसपास के सरोवर, झील व कहीं-कहीं गंगा तटों पर प्रवासी पक्षियों का कलरव शुरू हो गया. भागलपुर से जुड़े पक्षी विशेषज्ञों की टीम ने बाइपास रोड, बिहपुर के घटोरा झील समेत कटिहार के गोगाबिल पक्षी अभयारण्य का दौरा किया. हिमालय पार करके गोगाबिल राजहंस पहुंचे हैं, तो बिहपुर, नवगछिया, बाइपास समेत गंगा के किनारे बुटेड ईगल, हिमालयन बजर्ड, ब्राउन श्राइक, लांग टेल्ड श्राइक, यूराशियाई कूट, कॉमन सैंडपाइपर, ग्रीन सैंडपाइपर, वुड सैंडपाइपर, टैगा फ्लाईकैचर, सिट्रिन वैगटेल, वाइट वैगटेल, पलास गल, वेस्टर्न येलो वैगटेल, रोजी पीपीट, ब्लैक हेडड गल प्रवासी पक्षी दिखने लगे हैं. रविवार को पक्षी विशेषज्ञों की टीम में शामिल एशियाई वाटरबर्ड सेंसस के कोऑर्डिनेटर राहुल रोहिताश्व ने कहा कि उत्तर बिहार के क्षेत्रों में प्रवासी पक्षियों का जमघट शुरू हो गया है. ये हिमालय क्षेत्र को पार कर बिहार के तराई क्षेत्रों में अस्थायी ठिकाना बना रहे हैं. गोगाबिल झील राज्य का पहला सामुदायिक रिजर्व भी है. वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर तथा ए डब्लू सी, बिहार के समन्वयक ज्ञानचंद्र ज्ञानी ने बताया की गोगाबिल झील लगभग 74 एकड़ सरकारी एवं 145 एकड़ गैरसरकारी भूमि पर फैला हुआ हैं. यहां सालो भर पर्याप्त पानी रहता है. पक्षियों को पर्याप्त भोजन तथा सुरक्षा मिल जाता है. राहुल ने बताया कि दल को नवंबर माह में पहली बार हेडड गुज या राजहंस दिखा. साथ ही कहा कि अगले दो चार दिनों में तापमान में और गिरावट के साथ प्रवासी पक्षियों की संख्या में वृद्धि देखी जा सकेगी. ज्ञान चंद्र ज्ञानी ने बताया कि ये प्रवासी पक्षी रूस,साइबेरिया अलास्का, मंगोलिया, तिब्बत, सेंट्रल एशिया जैसे ठंडे मुल्कों से यहां पहुंचते हैं. तीन-चार महीनों तक यहां रहकर फिर मार्च के अंत में अपने मूल निवास स्थान की ओर लौटने लगते हैं. अध्ययन दल में राहुल रोहिताशव, ज्ञान चंद्र ज्ञानी, दीपक कुमार झून्नू, रिसर्च स्कॉलर जय कुमार जय, बर्ड गाइड चंदन, दिव्यांशु आदि शामिल थे. 34 हथिया नालों का पानी गिरता है गंगा में पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा नदी में प्रदूषण अधिक होने की वजह से प्रवासी पक्षियों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में कुछ कमी देखी जा रही है. शहरी क्षेत्र में गंगा में 34 हथिया नाला का प्रदूषित पानी गिरता है. यहां नमामि गंगे योजना विफल साबित हो रहा है. बूढ़ानाथ घाट पर नगर निगम का बड़ा नाला हाल के दिनों में गंगा में मिला दिया गया, जो किसी न किसी तरह गंगा के मुख्य धार में मिलता है. गंगा के किनारे मृत जानवरों को फेंका जा रहा है. यदि नमामि गंगे योजना धरातल पर आ जाये, तो जैव विविधता एक बार फिर दिखने लगेगी.

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