25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Agriculture News: कम बारिश में धान की खेती के लिए अपनाएं ये उपाय, खर्चा भी होगी कम

जीरो टिलेज से धान उत्पादन में कम बारिश किसानों के लिए फायदेमंद है. कम सिंचाई में धान की खेती के लिए किसानों को तकनीकी खेती अपनानी होगी.कृषि विभाग किसानों में जागरूकता फैला रहा है

Agriculture News: पिछले छह वर्षों से असमय बारिश धान उत्पादक किसानों के लिए परेशानी बन रही है. इसमें समय के साथ-साथ दोहरी आर्थिक क्षति हो रही है. इसे देखते हुए कृषि विभाग की ओर से किसानों को धान की खेती के लिए जीरो-टिलेज या बौग की तकनीकी खेती को बढ़ावा मिल रहा है. भागलपुर प्रमंडल अंतर्गत भागलपुर-बांका क्षेत्र का बड़ा हिस्सा धान की खेती वाली भूमि है. केवल भागलपुर जिले में जिला कृषि कार्यालय की ओर से धान की खेती का लक्ष्य 52 हजार हेक्टेयर जमीन में निर्धारित की गयी है, जबकि बांका जिला धान खेती प्रधान क्षेत्र हैं.

बारिश पर निर्भर है 80 फीसदी खेती

जिले में 80 फीसदी से अधिक खेती बारिश पर निर्भर है. पूरे साल जितनी बारिश होती है, उसमें औसतन 70 फीसदी पानी केवल मानसून में बरसता है. ऐसे में यदि किसान जीरो टिलेज व बौग विधि से खेती का विकल्प नहीं चुनेंगे तो धान का उत्पादन घट जायेगा. कृषि विभाग दे रहा है बढ़ावा एक ओर जहां सिंचाई के अभाव में धान की खेती कैसे हो, इसके लिए किसानों में चिंता दिख रही है. वहीं दूसरी ओर कृषि विभाग बेमौसम बारिश, मानसून में कम बारिश होने से जीरो टिलेज जैसे तकनीकी खेती को बढ़ावा दे रहा है.

क्या है बौग व जीरो टिलेज खेती की विधि

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि बौग में सीधे-सीधे गेहूं की तरह खेत में धान की बुनाई कर दी जाती है. इसमें रोपा नहीं किया जाता है. इस कारण कम पानी लगता है. रोपा करने के लिए खेत में कम से कम 40 एमएम पानी की जरूरत है, जबकि बौग में ऐसी परेशानी नहीं है. बौग का ही आधुनिक व वैज्ञानिक विधि जीरो टिलेज है. जीरो टिलेज विधि में धान को जीरो टिलेज मशीन से पंक्ति में बुआई की जाती है. इसमें भी रोपा की जरूरत नहीं है.

बौग या जीरो टिलेज विधि के लाभ

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि बौग या जीरो टिलेज विधि से किसानों को कई प्रकार के लाभ हैं. इसमें सिंचाई के लिए 30 से 40 फीसदी कम पानी की जरूरत पड़ती है. रोपा की अपेक्षा मजदूर खर्च, जुताई खर्च आदि 50 प्रतिशत कम पड़ता है. खर-पतवार को नियंत्रित करने में दिक्कत नहीं होती है.

सहभागी किस्म उपयुक्त

कम पानी के लिए सहभागी किस्म के धान अधिक उपयुक्त हैं, जबकि अधिक पानी के लिए स्वर्णा सब वन धान उपयुक्त है. जिला कृषि कार्यालय की ओर से जिले में 2024 के लिए धान आच्छादन का लक्ष्य कुल 52 हजार हेक्टेयर रखा गया है.

Also Read: मां को अंतिम विदाई देने का गम लेकर चले थे, पुल घाट ने कष्ट दोगुना कर दिया

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें