श्री चंपापुर दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र मे दशलक्षण महापर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म की आराधना श्रद्धा व भक्तिपूर्वक हुई. सिद्ध क्षेत्र के पूर्वी भारत के सबसे ऊंचे 71 फुट ऊंचा मान स्तंभ के समीप राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र के श्रद्धालुओं ने भगवान वासुपूज्य की पूजा-अर्चना की. जबलपुर के पंडित जागेश शास्त्री ने कहा की आकिंचन्य अर्थात परिग्रह छोड़ो. अति महत्वकांक्षा व्यक्ति को गलत रास्ते पर पहुंचा देती है. बुरा कर्म पछतावा के अलावा कुछ नहीं देता है. निष्ठावान व्यक्ति ही पद प्रतिष्ठा पाता है. जितना परिग्रह उतना तनाव.
वहीं कोतवाली स्थित जैन मंदिर में मध्यप्रदेश से पधारे पंडित मुकेश शास्त्री ने कहा कि पाप हमें बुरा ना लगे तो हम कैसे धर्मात्मा हैं. सेवा अपेक्षा रख कर नहीं की जाती है. विरोध से घबराए नहीं. समन्वय सौभाग्य को आमंत्रण देता है. संस्कारों की असली परीक्षा कब होती है, जब परिस्थितियां बुरी हों. सार्वजनिक रूप से आपकी आलोचना करने वाले आपके शुभचिंतक नहीं हैं. शुभचिंतक अकेले में कमियां बताते हैं. सार्वजनिक आलोचना करने वाले अपने मन की भड़ास निकालते हैं. परिग्रह मनुष्य की शांति छीन लेता है.
सिद्धक्षेत्र मंत्री सुनील जैन ने बताया कि 17 सितंबर को संध्या 4.30 बजे अंग प्रदेश के गौरव भगवान वासुपूज्य निर्वाण महोत्सव सह दशलक्षण महापर्व का समापन समारोह मनाया जायेगा. अभिषेक पूजन निर्वाण उत्सव के साथ 1008 कलशों से महामस्तकाभिषेक पूजा एवं निर्वाण लाडू अर्पण किया जायेगा. इस मौके पर विजय रारा, पदम पाटनी, जयकुमार काला, अशोक पाटनी, पवन बड़जात्या, सुमंत पाटनी, संजय जैन, सुमित जैन, अमित बड़जात्या, कमलेश पाटनी, संदीप कुर्मावाला, शंकर जैन, सरोज जैजानि, आलोक जैन, अजय जैन, राम जैन आदि उपस्थित थे.
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