सुमित कुमार पटना : पटना साहिब संसदीय क्षेत्र में आने वाले बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र में पिछले तीन दशक से दो प्रमुख दलों भाजपा व राजद (जनता दल) के बीच आमने-सामने का मुकाबला होता रहा है.
1951 में ही बनी इस सीट पर पहले साढ़े चार दशक (वर्ष 1995 तक) एक बार छोड़ कर कांग्रेस पार्टी का ही कब्जा रहा. इस बीच सिर्फ एक बार वर्ष 1972 में सोशलिस्ट पार्टी के भोला प्रसाद सिंह ने जीत हासिल की. इस बीच कांग्रेस के राम जयपाल सिंह यादव तीन बार, धरमबीर सिंह दो बार, जबकि रामलखन सिंह यादव और भूदेव सिंह एक-एक बार जीते. वर्ष 1995 के बाद से यह सीट राजद-भाजपा के बीच ही घूमती रही है. कांग्रेस को फिर सफलता नहीं मिल सकी.
इस सीट पर वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2015 तक हुए पांच विधानसभा चुनाव में एक बार भाजपा तो दूसरी बार राजद उम्मीदवार विजेता बनते रहे हैं. वर्ष 1995 में तत्कालीन जनता दल के ब्रजनंदन यादव विजयी हुए. उसके बाद वर्ष 2000 में भाजपा के विनोद यादव, वर्ष 2005 फरवरी में राजद के अनिरुद्ध यादव ने जीत हासिल की.
वर्ष 2005 के अक्तूबर में भाजपा के विनोद यादव, वर्ष 2010 में फिर राजद के अनिरुद्ध कुमार और वर्ष 2015 में भाजपा के रणविजय सिंह लल्लू मुखिया ने जीत हासिल की. खास बात रही कि हर चुनाव में जीत-हार का अंतर काफी कम रहा. पिछले चुनाव में रणविजय सिंह यादव को 61 हजार से अधिक और अनिरुद्ध को 53 हजार के करीब ही वोट मिल पाये थे.
बख्तियारपुर में पिछले चुनाव तक करीब ढाई लाख वोटर थे. इनमें 1.26 लाख पुरुष और 1.07 लाख महिला वोटर रहीं. क्षेत्र के अंदर खुसरूपुर, दनियावां और बख्तियारपुर ब्लॉक आते हैं, जहां ग्रामीण वोटरों का सबसे अधिक प्रभाव है. इस पूरे क्षेत्र में यादव वोटरों का दबदबा है. दोनों पार्टियों की नजर करीब 80 हजार के इस वोट बैंक पर रहती है. इसके साथ ही करीब 40 हजार राजपूत, 30 हजार भूमिहार, 20 हजार मुस्लिम, 15 हजार कुर्मी सहित वैश्य व अन्य अति पिछड़ा समुदाय के वोटर भी निर्णायक हैं.
अपने क्षेत्र में लल्लू मुखिया के नाम से चर्चित वर्तमान विधायक रणविजय सिंह यादव बख्तियापुर के ही टेकाबिघा गांव के रहने वाले हैं. पिछले चुनाव में भाजपा ने पूर्व प्रत्याशी विनोद यादव का टिकट काटकर उनको मौका दिया था. वहीं, राजद फिर से अपने पुराने उम्मीदवार अनिरुद्ध यादव पर ही भरोसा जता सकती है. हालांकि, 2020 चुनाव के लिए दोनों प्रमुख पार्टियों की ओर से अब तक उम्मीदवारों का नाम फाइनल नहीं होने से वोटरों में ऊहापोह है.
Posted by Ashish Jha