Bihar Election Exit Poll: राजदेव पांडेय, पटना. सामान्य तौर पर कहा जाता है कि मतदान में इजाफा सत्ता विरोध का सूचक होता है. देश के कई राज्यों में जब भी ऐसा हुआ है तो सत्ता बदल जाती है. जबकि बिहार (Bihar) में इस प्रचलित धारणा से बिल्कुल अलग ट्रेंड है. यहां मतदान प्रतिशत घटता है तो सत्ता में बदलाव होता है. पिछले तीस सालों के आंकड़े इसी बात का गवाह हैं.
उदाहरण के लिए सन 2000 की तुलना में 2005 में वोट कम हुए थे तो सत्ता में बदलाव हो गया था. इसके बाद मतदान प्रतिशत बढ़ा तो सत्ता में बदलाव नहीं हुआ. इसके बाद 2015 में 56.66 और उससे पहले 2010 में मतदान प्रतिशत 52.67 फीसदी रहा था. जाहिर है कि यह 2000 से अधिक ही रहा. सत्ता के नेचर में कोई खास बदलाव नहीं हुआ.
फिलहाल विधानसभा चुनाव 2020 में मतदान प्रतिशत पिछले तीन चुनावों के कमोबेश बराबर ही रहा है. इस बार मतदान 56 से 57 फीसदी के बीच में ही रहा है. सियासी जानकारों के मुताबिक आंकड़ों के हिसाब से मतदान का यह प्रतिशत बताता है कि दोनों महागठबंधन एवं एनडीए में कांटे की की टक्कर होगी . हालांकि अगर किसी दल को बहुमत मिलता है तो यह एकदम अप्रत्याशित स्थिति होगी.
सियासी जानकारों के मुताबिक 1990 में मंडल और दूसरी सियासी बयारों के बीच जब लालू प्रसाद सत्ता में आये तो उस समय मतदान का प्रतिशत 62.04 फीसदी था. 1995 में मतदान प्रतिशत कमोबेश उतना ही 61. 79 और 2000 में मतदान प्रतिशत बढ़ कर 62़ 57 फीसदी रहा. इस तरह राजद बढ़े हुए मतदान प्रतिशत के बाद भी सत्ता में बनी रही थी.
जैसे ही 2005 में मतदान प्रतिशत घटा राजद सत्ता से बेदखल हो गयी. 2005 फरवरी के विधानसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 46.50 फीसदी और इसी साल अक्तूबर में 45.85 प्रतिशत वोट पड़े थे. फिलहाल राजनीति में आंकड़े कई बार गलत पूर्वानुमान भी देते हैं. यह बात और है कि तीस साल में बढ़ता या स्थिर मतदान प्रतिशत बड़े बदलाव का प्रतीक नहीं देखा गया है.
Posted by Ashish Jha