पटना: आगामी विधानसभा चुनाव में जदयू की सोशल इंजीनियरिंग में सवर्ण, दलित और अति पिछड़ा शामिल हो सकते हैं. इस फाॅर्मूले को राजद के माय समीकरण की बेहतर काट माना जाता रहा है. 2010 के विधानसभा चुनाव में भी जदयू और भाजपा गठबंधन को सवर्ण, दलित और अति पिछड़ा समीकरण पर भारी जीत मिली थी.
एक अनुमान के मुताबिक राज्य में सवर्ण मतदाताओं की आबादी 17 से 20 फीसदी, दलित मतदाताओं की 16 फीसदी और अति पिछड़ों की 33 फीसदी है. वहीं, करीब 17 फीसदी मुस्लिम और 14 फीसदी यादव मतदाता हैं.
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2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू के साथ महागठबंधन में शामिल राजद ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस दौरान भी राजद ने माय समीकरण को ध्यान में रखकर 48 यादव और 16 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. ऐसे में माय समीकरण को तरजीह देते हुए 64 सीटें दी गयी थीं. वहीं इसी चुनाव में जदयू ने 14 यादव और सात मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. वहीं, अन्य 80 सीटों पर जदयू ने अतिपिछड़ा सहित सभी जातियों से उम्मीदवार बनाया था.
2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा ने एनडीए गठबंधन के तहत लड़ा था. इस चुनाव में भी जदयू ने सवर्ण, दलित और अति पिछड़ा के सोशल इंजीनियरिंग को आधार बनाकर 141 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये थे इसमें से पार्टी को 115 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.वहीं, भाजपा भी 91 सीटें जीतने में सफल रही थी.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2005 में नीतीश कुमार ने करीब 113 जातियों वाले अतिपिछड़ों को हर स्तर पर आरक्षण दिलवाकर उनके बीच पैठ बनायी थी. इन जातियों के वोटों का फायदा पूर्व में किसी समय राजद उठाया करता था. इनके लिए आरक्षण में विशेष प्रावधान करवाने का लाभ जदयू को मिला. भले ही 2005 और 2010 का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा गया हो, लेकिन अतिपिछड़ों का अधिकतम वोट जदयू को मिलता रहा.
Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya