पटना: विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारी में जुटा राजद इस बार अपने बलबुते सरकार बनाने लायक सीटों पर उम्मीदवार उतारेगा. एनडीए से आमने -सामने की लड़ाई के लिए सामाजिक गोलबंदी को भी आधार बनाया जायेगा. बिरादरी आधारित महागठबंधन के छोटे घटक दलों को उनकी उपजातियों से ही उम्मीदवार बनाने की शर्त पर सीटें दी जायेंगी. महाठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद के रणनीतिकार ऐसी ही योजनाओं पर अमल कर रहे हैं. महागठबंधन की दूसरी बड़ी घटक दल कांग्रेस होगी. घटक दलों के सभी सीटिंग सीटों पर कोई समझौता नहीं किया जायेगा, पर तालमेल में अधिकतम सीटों की संख्या लोकसभा में दी गयी सीटों के भीतर आये विधानसभा क्षेत्र से अधिक नहीं होगा.
सूत्र बताते हैं कि 2015 में राजद ने 101 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जबकि सहयोगी दल जदयू को 101 और कांग्रेस को 41 सीटें दी गयी थीं. तीनों के बीच कोई एक दल के बाहर निकल जाने से सरकार गिर जाने की स्थिति रही. इस कारण जब 2017 में जदयू महागठबंधन से बाहर निकला ,तो राजद-कांग्रेस की भागीदारी वाली सरकार तत्काल गिर गयी. इस अनुभव से गुजरे राजद ने इस बार सीटों के तालमेल में अपने पास कम- से- कम 160 सीटें रखने के संकेत दे रहा है. बिहार विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 243 है. जिसमें सरकार बनाने के लिए कम से कम 122 विधायकों के समर्थन की जरूरत होती है. पार्टी सूत्रों का मानना है कि सरकार बनने की स्थिति में इतने विधायकों की संख्या दल के पास हो, जिससे दूसरे किसी दल के बाहर छिटकने से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़े, इसी गणित से सहयोगी दलों के बीच सीटें तय की जायेगी.
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सूत्र बताते हैं कि गठबंधन में कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होगी. कांग्रेस की सीटिंग सीटों पर राजद कोई दावा नहीं करेगा. दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व मिल कर सीटों की संख्या पर अंतिम निर्णय लेंगे. वीआइपी और रालोसपा जैसी पार्टियों को दी गयी सीटों पर उनकी बिरादरी के उम्मीदवारों को तरजीह देने को कहा जायेगा. गठबंधन में मिली सीटों पर बाहरी उम्मीदवारों को उतारे जाने पर राजद विरोध करेगा. तालमेल में जो सीटें वीआइपी को दी जायेंगी, राजद की उम्मीद होगी कि उन सीटों पर निषाद, मल्लाह और केवट जाति के ही उम्मीदवार उतारे जायें. यही उम्मीद रालोसपा से भी की जा रही है. लोकसभा चुनाव में रालोसपा को पांच और वीआइपी को तीन सीटें दी गयी थीं,लेकिन अधिकतर सीटों पर दूसरे उम्मीदवार ही उतारे गये थे. राजद नेताओं का मानना है कि इससे गठबंधन को नुकसान होता है. अरसे बाद महागठबंधन की छतरी के नीचे वाम दल भी साथ होंगे.
Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya