Bihar Vidhan Sabha Chunav 2020, Dalit politics, ST, SC in Bihar Election : पटना (राजदेव पांडेय) : बिहार में दलित राजनीति करवट ले रही है. इसके बदलाव का ट्रेंड मध्यमार्गी कांग्रेस से समाजवादी दलों और भाजपा जैसे दलों के बीच झूल रहा है. कभी दलितों के वोट बैंक से सत्ता की सीढ़ी पर चढ़ने वाली कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा नुकसान वाम दलों को हुआ है. दलित मतों पर उनकी पकड़ ढीली होती जा रही है. यह आकलन प्रदेश की अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीटों के आकलन के बाद सामने आया है.
1985 के विधानसभा चुनावों तक कांग्रेस की सुरक्षित सीटों पर करीब-करीब एकाधिकार- सा था. 1985 में प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 48 सीटों में उसके कब्जे में 33 सीटें थीं. वर्तमान हालात यह हैं कि इस पार्टी को 2015 के विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 38 सीटों में से केवल पांच सीटें मिली हैं.
हालांकि, यह प्रदर्शन भी पिछले चुनावों के मद्देनजर अच्छा ही कहा जायेगा,यह देखते हुए कि बीच के चुनावों में इसके लिए निराशाजनक परिदृश्य रहा था. भाजपा के पास 1985 में अविभाजित बिहार में तीन विधानसभा सीटें जीती थीं. 2015 में उसके पास तत्कालीन राजनीतिक समीकरणों की वजह से केवल पांच सीटें हैं.
इससे पहले 2010 के विधानसभा चुनाव में उसका 38 में से 18 सुरक्षित सीटों पर कब्जा था. हालांकि, दोनों समाजवादी दलों की पकड़ दलित वोटों पर करीब-करीब बराबर की पकड़ है. जानकारों के मुताबिक गठबंधन की राजनीति ने दलित वोट बैंक को उलझन में डाल दिया है क्योंकि उनकी नाममात्र की बची लीडरशिप करीब-करीब हाशिये पर है.
जानकारी के मुताबिक बिहार में अनुसूचित जाति का करीब 16 फीसदी वोट बैंक है. यह वोट कई मायने में निर्णायक माना जाता है. कभी इसी वोट बैंक के प्रभाव से कांग्रेस सत्ता में हुआ करती थी. फिलहाल वोट बैंक के लिए तमाम दल लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे कर रहे हैं. अलबत्ता यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रदेश में दलितों की स्थिति अभी भी सोचनीय बनी हुई है.
बिहार में दलितों की राजनीति गलत लोगोें के हाथ में है. वे पॉवर,पैसा और परिवार में फंस जाते हैं. दरअसल दलित उनके लिए वोट बैंक है. उनके लिए दलित समाज का वह हिस्सा नहीं, जिसका सामाजिक और आर्थिक उत्थान करना होता है. दरअसल दलितों को शिक्षित न करने की साजिश चल रही है. उन्हें जागरूक करने की दिशा में लीडरशिप ने कुछ नहीं किया है.
डाॅ विद्यार्थी विकास, प्राध्यापक, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज
Posted By : Sumit Kumar Verma