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जिले में योजना से वंचित हो रहे श्रम मुक्त बच्चे

जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड स्तरीय बाजार में अक्सर बाल श्रमिक काम करते दिखे जाते हैं. होटल से लेकर चाय-नाश्ता की अस्थायी दुकानों से लेकर गैरेज में बाल श्रमिकों से काम लिया जाता है.

बिहारशरीफ. जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड स्तरीय बाजार में अक्सर बाल श्रमिक काम करते दिखे जाते हैं. होटल से लेकर चाय-नाश्ता की अस्थायी दुकानों से लेकर गैरेज में बाल श्रमिकों से काम लिया जाता है. बाल श्रमिक कम राशि में अधिक समय में बिना कोई शिकायत किये काम करते हैं. इसलिए बाल श्रमिकों से व्यवसायी काम देते हैं. ऐसे बाल श्रमिक को नियोजक से मुक्त कराकर उन्हें मुख्यमंत्री राहत कोष से जोड़ना होता है, जो श्रम विभाग के माध्यम से किया जाता है. ताकि कोई भी गरीबी के कारण कोई भी परिवार अपने बच्चों से बाल श्रम नहीं करा सके और तत्काल श्रम मुक्त बालक का स्कूल में नामांकन हो सके. अहले सुबह से शहर के नईसराय, रामचंद्रपुर, एतवारी बाजार, सोहसराय, स्टेशन रोड, खंदकपर, रांची रोड, मंगलास्थान आदि मोहल्लों में कचरा चुनने से लेकर चाय-नास्ता, वाहन मरम्मत, होटल आदि दुकानों में बाल श्रमिक काम करते देखे जाते हैं. फिर भी प्रशासनिक सिस्टम बाल श्रम मुक्त कराने के प्रति गंभीरता नहीं दिखा रही है. लगातार बाल श्रम को मुक्त कराने में प्रशासनिक सिस्टम का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. गत साढ़े आठ वर्षों में जिले के कुल 434 बाल श्रमिकों को मुक्त कराने की सरकारी आंकड़ा विभाग के सीएलटीएस (चिल्ड्रेन लेबर ट्रैकिंग सिस्टम) पोर्टल पर अंकित हैं. इसमें महज 225 बाल श्रमिकों को जिले के अलग-अलग धावा दल और 209 बाल श्रमिकों को राजस्थान, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश जैसे प्रदेशों के चाइल्ड हेल्प लाइन के द्वारा मुक्त कराया गया है. इतना ही नहीं बाल श्रम मुक्त बालिकों को सरकारी योजना से जोड़ने में भी श्रम विभाग रुचि नहीं दिख रहा है. वर्ष 2014-15 से अब तक कुल 434 में से 356 मुक्त बाल श्रमिकों को श्रम विभाग ने जिले के सीएलटीएस (चिल्ड्रेन लेबर ट्रेनिंग सिस्टम) पोर्टल पर सिर्फ बैंक खाता या आधार नंबर नहीं होने का कारण बता कर उन्हें मुख्यमंत्री राहत कोष से वंचित कर दिया है. कुल 434 में से 417 श्रममुक्त बालकों को श्रम विभाग की टीम ने उनके घर जाकर भौतिक सत्यापन की है. 61 को भौतिक सत्यापन के बाद मुख्यमंत्री राहत कोष से अब तक विभाग ने जोड़ पाया है. वर्ष 2014-15 से अब तक विभाग की ओर से 356 श्रम मुक्त बालकों को योजना के योग नहीं करार किया गया है. अधिकांश बाल श्रमिक के परिवार गरीब और अशिक्षित होते हैं. इस कारण उन्हें योजनाओं की जानकारी और कागजी प्रक्रिया पूरा करना मुश्किल हो जाता है. जिसे पूरा कराने में प्रशासनिक सिस्टम को मदद करना होता है, जो नहीं मिल पाता है. बाल श्रम करवाना है दंडनी अपराध- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी व्यवसाय या संस्था में किशोर-किशोरियां, जिनका उम्र 14 वर्ष एवं 14 वर्ष से अधिक और 18 वर्ष से कम हैं. इनसे खतरनाक व्यवसाय एवं प्रक्रियों में काम लेना दंडनीय अपराध है. इसके लिए पांच हजार रुपये तक का जुर्माना, जुर्माना के साथ दो वर्ष तक का करावास का प्रावधान है. इसके अतिरिक्त बाल श्रमिक करवाने वालों से 20 हजार रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में वसूली जाती है. दोषी नियोजक को दूसरी बार कुसूरवार पाये जाने पर तीन वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है. माता-पिता या अभिभावक को भी अपने बच्चों एवं किशोर-किशोरियों से पैसे के लिए काम करवाने के जुर्म में दस हजार रुपये तक का जुर्माना का प्रावधान है. श्रमिक मुक्त बालकों के लिए मख्यमंत्री राहत कोष- श्रम विभाग के धावा दल द्वारा किसी दुकान, संस्था या नियोजक से बाल श्रमिक को मुक्त कराये गये बालक को उसके घर तक पहुंचाने के लिए सरकारी की ओर से तत्काल तीन हजार रुपये देने का प्रावधान है. ताकि उस पैसे से बच्चे का नया वस्त्र खरीद सके और स्कूल में नामांकन कराया जा सके. इसके बाद मुख्यमंत्री राहत कोष से श्रम मुक्त बालक को 25 हजार रुपये दिये जाते हैं. यह राशि सीधे बच्चे के बैक खाते में भेजी जाती है, जो 18 वर्ष होने के बाद बालक उसका उपयाेग कर सकता है. यह राशि उन्हीं श्रममुक्त बच्चों को दी जाती है, जो इस योजना के तहत पंजीकृत किये जाते हैं, लेकिन श्रममुक्त बालकों को श्रम विभाग की तरफ से योजना की पंजीकृत करने में रुचि नहीं दिखायी जाती है. चिल्ड्रेन लेबर ट्रैकिंग सिस्टम कारगर- बिहार सरकार के श्रम संसाधन विभाग की ओर से चिल्ड्रेन लेबर ट्रैकिंग सिस्टम (सीएलटीएस) पोर्टल बनाया गया है, जो राज्य में बाल श्रम से जुड़े बालकों की मुक्ति और उनके पुनर्वास के लिए अत्यंत ही कारगर है. इसके माध्यम से राज्य के प्रत्येक जिले में बच्चों को ट्रैक किया जाता है. इसके संचालन के लिए मुखिया, प्रत्येक थाना पुलिस, श्रम विभाग, सीडब्ल्यूसी, डीसीपीयू आदि विभाग को आईडी और पासवर्ड उपलब्ध कराया गया है. इस पोर्टल पर अंकित बाल श्रमिक की सूची के साथ उन्हें उनके परिवार के जरूरत के हिसाब से योजनाओं से भी जोड़ा जाता है. जिसमें श्रम कानून को क्रियान्वयन करना, बाल श्रम को रोकने, रिसक्यू किये गये बाल श्रमिकों को स्कूली शिक्षा से जोड़कर सीएलटीएस पोर्टल में पूरी जानकारी इंट्री करना होता है. क्या कहते हैं अधिकारी- वर्षों पहले से बाल श्रम मुक्त बालकों को मुख्यमंत्री राहत कोष का लाभ दिलाने के लिए दोबारा से कागजी जांच प्रक्रिया शुरू की जा रही है. योजना के लाभ दिलाने के लिए उम्र प्रमाण पत्र, बैंक खाता, बाल श्रम मुक्ति के समय संबंधित थाना में दर्ज करायी गयी एफआईआर होना अनिवार्य होता है. सीएलटीएस पर पूर्व से अंकित श्रम मुक्त बालकों की सूची में सुधार की पहल की जा रही है. ताकि अधिक से अधिक श्रम मुक्त बालकों को योजना का लाभ दिया जा सके. अश्वनी कुमार, श्रम अधीक्षक, नालंदा

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