बिहारशरीफ. किडनी रोगियों की इलाज के लिए सदर अस्पताल में डायलिसिस सेंटर बनाया गया है. यहां एक साथ नौ रोगियों का डायलिसिस करने की व्यवस्था की गयी है. इनमें से एक बेड हेपेटाइटिस सी संक्रमित रोगियों के लिए आरक्षित है. लेकिन, डायलिसिस सेंटर में पानी की समस्या के कारण अक्सर परेशानी आती रहती है. पानी के कारण कई बार डायलिसिस को बीच में रोकने तक की नौबत आ जाती है. एक रोगी का डायलिसिस करने में औसतन चार घंटा लगता है. यानि रोजाना अधिकतम 27 रोगियों का यहां डायलिसिस किया जाता है. जिला में 80 नियमित रोगी हैं जो सप्ताह में दो बार डायलिसिस ले रहे हैं. ऐसे में सीट कम रहने पर कई बार बाहर से आए रोगियों को नंबर लगान पड़ता है या बाहर जाना पड़ता है. प्रति रोगी 170 लीटर पानी की आवश्यकता :
डायलिसिस सेंटर के प्रबंधक अभिनंदन कुमार ने बताया कि पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड में यह केंद्र चल रहा है. बाहर में कराने पर इसके लिए रोगी को ढाई से तीन हजार तक भुगतान करना पड़ता है. जबकि, यहां मात्र एक हजार 824 रुपए में यह सेवा दी जा रही है. 80 रोगियों का सप्ताह में दो बार का कोटा तय है. इसके अलावा बाहर के रोगियों को भी सुविधा के अनुसार डायलिसिस किया जाता है. इसमें अक्सर पानी की समस्या आती रहती है. कई बार पर्याप्त पानी नहीं मिलने पर बीच में ही डायलिसिस को रोकना पड़ता है. ऐसे में पानी की व्यवस्था होने पर फिर से डायलिसिस करना पड़ता है. पानी की व्यवस्था के लिए सिविल सर्जन व, नगर आयुक्त व अन्य अधिकारियों को आवेदन दिय गया है. डायलिसिस करने में पानी की काफी अहमियत है. इसके माध्यम से रोगी का उपचार किया जाता है. दरअसल डायलिसिस रक्त शोधन की कृत्रिम प्रक्रिया है.
स्थिति के अनुसार डायलिसिस की बारंबारता होती है तय :
सीनियर टेक्निशियन प्रमुख कुमार ने बताया कि गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियां में कई बार डायलिसिस करने की आवश्यकता पड़ती है. स्वस्थ शरीर में जल और खनिज का संतुलन बनाए रखना गुर्दे का काम है. इसकी क्रियाशिलता कम होने पर ये खनीज व पानी रक्त से सही मात्रा में नहीं निकल पाते हैं. ऐसे में कृत्रित उपचार के माध्यम से डायलिसिस कर विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है. यह महीना में एक बार से लेकर बाद में एक दिन में एक बार तक हो सकती है. यह रोगी के गुर्दा की स्थिति पर पूरी तरह से निर्भर करता है. गुर्दा प्रत्यारोपण इसका एकमात्र इलाज है. लेकिन, कई बार रोगियों में गुर्दा को प्रत्यारोपित करन की स्थिति नहीं बन पाती है. ऐसे में डायलिसिस ही एकमात्र उपाय है. सप्ताह में दो बार करवा रहे डायलिसिस :अस्थावां, नवादा व पावापुरी के इलाज करा रहे रोगियों ने कहा कि वे सप्ताह में दो दिन यहां डायलिसिस कराने आते है. वे यहां आठ माह से नियमित तौर से इलाज करवा रहे हैं. नवादा से आए 65 वर्षीय रोगी ने बताया कि वे यहां सप्ताह में दो दिन आते हैं.अब तक गुर्दा की व्यवस्था नहीं हो पायी है. गुर्दा प्रत्यारोपण कराने का प्रयास कर रहे हैं. तब तक इसी तरह डायलिसिस पर रहना होगा. हालांकि, बेड कम रहने के कारण दो रोगियों को लौटना पड़ा.
डायलिसिस है क्या :
डायलिसिस दरअसल आपके रक्त को साफ करने का एक कृत्रिम तरीका है. यह काम आपके गुर्दे को करना होता है. ये गुर्दे (किडनी) ही रक्त में जमे विषैले पदार्थ को साफ कर पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकालने में मदद करते हैं. लेकिन, कई बार गुर्दा सही से काम नहीं कर पाता है. इससे रक्त में जमा विषैला तत्व सही से नहीं निकल पाता है. ऐसे में डायलिसिस मशीन के माध्यम से उनके शरीर के रक्त को साफ किया जाता है. इसमें औसतन चार घंटा लगता है.किडनी की अवस्था के अनुसार डॉक्टर सप्ताह में या माह में एक, दो या कई बार डायलिसिस कराने की सलाह देते हैं. इसमें तय समय पर डायलिसिस नहीं कराने पर रोगी में बेचैनी काफी बढ़ जाती है. दरअसल डायलिसिस एक उपचार है, जिसमें रोगी के रक्त से विषाक्त पदार्थ और अतिरिक्त पानी को बाहर निकाल दिया जाता है. इसका स्थाई उपचार रोगी में किडनी प्रत्यारोपण ही है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है