गोपालगंज. 21 मार्च, 1995 को गैरमजरूआ जमीन के लिए दंपती के साथ मारपीट हुई. 21 अगस्त, 1995 को पुलिस ने 14 लोगों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट सौंप दी. इसके बाद सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के लिए 117 डेट बड़े. आठ गवाहों ने साक्ष्य दिया. इस बीच छह कोर्ट बदले गये. सुनवाई के दौरान दो आरोपितों की मौत भी हो गयी. 27 वर्षों के बाद सोमवार को कोर्ट का फैसला आया. प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी रविकांत मणि त्रिपाठी के कोर्ट ने इस मामले में दोषी को भर्त्सना की सजा सुनायी. दोनों पक्षों ने अपने अपने जीवन का आधा हिस्सा मुकदमा लड़ने में गंवा दिया. यह सजा उन लोगों के लिए एक बड़ी सीख है, जो पल भर में अपना आपा खोकर एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं. यह सजा इसलिए भी सीख है कि मारपीट के मामूली मामले में पीड़ित व आरोपित दोनों को 27 वर्ष तक का कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ा. यह भी सजा से कम नहीं है.
गोपालपुर थाने के डुमरिया गांव के शिव नारायण महतो 21 मार्च, 1995 को अपने खेत में काम करने गये थे. उनकी पत्नी छठिया देवी नाद पर मिट्टी लगा रही थी. उसी दीन एक गैरमजरूआ जमीन के मामले में कुछ लोगों ने छठिया देवी पर हमला कर दिया. उसी समय शिवनारायण भी पहुंच गये और पत्नी बचाने लगे. हमलावरों ने शिवनारायण महतो की भी पिटाई कर दी. इस मामले में पीड़ित की तहरीर पर गोपालुपर थाने में केस दर्ज कराया गया. पुलिस ने 21 अगस्त को अपनी जांच पूरी कर 14 आरोपितों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी. पुलिस ने आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भेजा. जमानत पर एक-एक कर आरोपित बाहर निकले. कोर्ट ने 26 मार्च, 1996 को संज्ञान लिया. 19 मार्च, 1998 को कोर्ट ने धारा 147, 148, 149, 323, 324, 447 के अंतर्गत आरोप का गठन किया. उसके बाद कांड का ट्रायल शुरू हो गया.
मारपीट के मामले में नामजद आरोपित ठाकुर सिंह की मौत 20 अगस्त, 1998 को हो गयी, जबकि दूसरे आरोपित विश्वनाथ सिंह की भी मौत कुछ दिन के बाद हो गयी. कोर्ट ने आठ मार्च, 2022 को उनके खिलाफ लगे आरोप को समाप्त कर दिया. बाकी आरोपितों के खिलाफ मामले में सुनवाई जारी रही.
डुमरिया गांव के सुरेमन सिंह, कपिल देव सिंह, ब्रह्मा राज सिंह, ओशियार सिंह, रवींद्र सिंह, महावीर सिंह, चंद्रिका सिंह, वकील सिंह, लक्ष्मण सिंह, हरिशंकर सिंह, सकलदेव सिंह और रविंदर सिंह के खिलाफ चले ट्रायल में सात लोगों की गवाही दर्ज की गयी. इसके बाद कोर्ट ने भादवि की धारा 147,148,149, 324, 447 के तहत इन्हें दोषमुक्त पाया, जबकि धारा 323 के तहत दोषी पाते हुए इन सभी को बुजुर्ग होने का लाभ देते हुए सिर्फ भर्त्सना की सजा सुनायी.
कानूनी पेच के कारण केस काफी काफी लंबा चला. इस मामले में अभियोजन ने पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध करा दिये थे. पुलिस ने समय पर चार्जशीट भी सौंप दी थी. काफी पहले ही सजा हो जानी चाहिए थी. इतनी लंबी सुनवाई होना दुखद है. -अनूप कुमार त्रिपाठी, सहायक अभियोजन पदाधिकारी