पटना. केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले लोक जनशक्ति पार्टी में नेतृत्व को लेकर हुए उठा- पटक ने पार्टी के भविष्य को लेकर बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. लोजपा के गठन काल से अब तक पहली बार परिवार का अंतर्कलह सामने आया है. चाचा पारस के नेतृत्व में चचेरे भाई प्रिंस राज ने भी चिराग पासवान का साथ छोड़ दिया.
लोजपा के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से ही नेतृत्व को लेकर चुनौती मिली है. पहले दांव में पारस ने खुद को पार्टी के संसदीय दल के नेता चुने जाने को लेकर लोकसभा स्पीकर के समक्ष दावा कर चिराग को चित कर दिया है. इसके पीछे हाजीपुर से सांसद पारस का तर्क है कि चिराग से वर्तमान सांसद व अन्य नेता संतुष्ट नहीं हैं.
पार्टी के नेताओं को वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ ही चुनाव लड़ने का मन था, लेकिन चिराग ने नकारात्मक राजनीति की. जिस पर पार्टी में आम राय नहीं बनी थी. ऐसे में अब पार्टी का कमान लेना उनकी मजबूरी थी. मगर, इन तमाम घटनाओं के पीछे यह बात को तय हो गयी है कि चिराग पासवान पार्टी तो दूर पहले परिवार में भी सर्वमान्य नेता नहीं हैं. पिता से मिली राजनीतिक विरासत को संभालने में वे डगमगाने लगे हैं. उनके परिवार में अपने पिता जैसी सर्व स्वीकृति उनके पास नहीं है.
भारतीय राजनीति में मौसम वैज्ञानिक के रूप में पहचान रखने वाले रामविलास पासवान के बेटे घर में ही परिवार के मिजाज को भांपने में असफल रहे हैं. पार्टी सूत्र बताते हैं कि दल के भीतर टूट को लेकर बीते छह माह से चर्चा थी. कोरोना की दूसरी लहर से पहले पशुपति कुमार पारस जदयू नेताओं के संपर्क में थे. जानकारों के मुताबिक अगर दूसरी लहर नहीं आती तो वह पहले ही पार्टी तोड़ चुके होते. मगर सवाल यह है कि आखिर इतने दिनों से अगर परिवार के भीतर ही खिचड़ी पक रही थी तो चिराग को आखिर इसकी गंध कैसे नहीं लगी.
रामविलास पासवान ने वर्ष 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की थी. तब से लेकर जब तक जीवित रहे अपने दोनों भाइयों को साथ लेकर चले. दोनों भाई रामचंद्र पासवान व पशुपति कुमार पारस को संसद तक सफर तय कराया. मगर, दोनों भाइयों ने कभी अपने बड़े भाई के नेतृत्व पर सवाल नहीं खड़ा किया.
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लोजपा के गठन काल से अब तक पहली बार परिवार का अंतर्कलह सामने आया है.
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चाचा पशुपति पारस के नेतृत्व में चचेरे भाई प्रिंस राज ने भी चिराग पासवान का साथ छोड़ दिया.
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रामविलास पासवान के बेटे घर में ही परिवार के मिजाज को भांपने में असफल रहे.
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चिराग पार्टी तो दूर पहले परिवार में भी सर्वमान्य नेता नहीं रहे.
रामविलास पासवान 1969 में पहली बार अलौली विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे. फिर 1977 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पासवान नौ बार तक लोकसभा सांसद रहे. वर्ष 2000 में रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की थी. इससे पहले रामविलास पासवान जनता पार्टी और उसके बाद जदयू के हिस्सा रहे थे.
पासवान ने 1981 में दलित सेना संगठन की स्थापना की थी. लोजपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में चार सीटों जीत दर्ज की थी. फरवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा ने 29 सीटों पर जीत दर्ज किया था. इसके बाद रामविलास पासवान ने बड़ा दांव चला. लोजपा की ओर से किसी मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग की गयी.
इस दौरान लोजपा में टूट हुई. नरेंद्र सिंह और रामाश्रय प्रसाद सिंह सहित लगभग 22 विधायक जदयू के साथ चले गये. मगर, इसके बावजूद किसी की सरकार नहीं बन पायी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इसके बाद 2005 के अक्तूबर- नवंबर में दोबारा विधानसभा चुनाव हुआ. इस बार लोजपा महज दस सीटों पर सिमट गयी थी.
Posted by Ashish Jha