सुशील भारती, Kabir Jayanti: हिंदी के निर्गुण भक्ति काल के क्रांतिकारी कवि संत कबीरदास निराकार ब्रह्म के उपासक थे. उन्होंने धर्म के नाम पर व्याप्त कुरीतियों, ढकोसलों. अंध मान्यताओं और अवैज्ञानिक परंपराओं का जमकर विरोध किया था. उनसे चार-पांच सौ वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म की विकृतियों के खिलाफ अभियान चलाकर सनातन धर्म की पुनर्स्थापना की थी. अब उसमें भी विकृतियां आ रही थीं. उधर कई पंथों में बंटा बौद्ध धर्म भी पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ था. देश के कई इलाकों में उसका गहरा प्रभाव था.
संत कबीर ने आदि शंकराचार्य के शुद्धीकरण अभियान को आगे बढ़ाया था. इसी सिलसिले में उनका बिहार आगमन हुआ था और उनके बीजक की रचना भी यहीं हुई थी. बल्कि उसके 300 पृष्ठों का मूल हस्तलिखित ग्रंथ आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में चंपारण के बेतिया के सागर पोखरा स्थित चटिया बरहवा मठ के महंथ के पास सुरक्षित है.
यह कबीरपंथियों की भगतही शाखा का मठ है. मूल बीजक कैथी और अवधी भाषा में है. इसपर देश-विदेश के कई शोधार्थी शोध कर चुके हैं. तत्कालीन महंथ राम खेलावन गोस्वामी ने 1938 में इसका हिंदी अनुवाद कराकर प्रकाशित कराया था. प्रकाशित पुस्तक में 473 पृष्ठ थे. उस समय इसका मूल्य सवा रुपये था.
पीपराकोठी में है 40 फुट ऊंचा कबीर स्तंभ
कबीर के बिहार कनेक्शन का एक प्रमाण पूर्वी चंपारण के पीपराकोठी इलाके के जीवधारा से सटे बेलवतिया में 40 फुट ऊंचा कबीर स्तंभ है. यह देश का आठवां व बिहार का पहला कबीर स्तंभ है. वर्ष 1875 में स्थापित यह स्तंभ चमकीले व विशेष पत्थर से बना हुआ है. कहते हैं कि कबीर ने यहां तीन माह तक प्रवास किया था. यहीं से अन्य क्षेत्रों का भ्रमण करते रहे. बाद में उनके अनुयायी केशव ने यहां भव्य मठ का निर्माण कराया. स्तंभ का निर्माण महंथ रामस्नेही दास ने कराया था. मठ की ओर से प्रतिवर्ष अनंत चतुर्दशी को तीन दिवसीय संत सम्मेलन का आयोजन किया जाता है.
बिहार में पड़े थे कबीर के बीजक ग्रंथ के बीज
संत कबीर के बिहार प्रवास को दौरान ही बीजक की रचना हुई थी. यह दरअसल दो विद्वतजनों के बीच शास्त्रार्थ का प्रतिफल है. यह शास्त्रार्थ संत कबीर और उनके समकालीन बौद्ध धर्म के निम्बार्क संप्रदाय के आचार्य भगवान गोस्वामी के बीच संपन्न हुआ था. संत कबीर को जानकारी मिली कि बिहार के चंपारण की पूरी सामाजिक व्यवस्था को निम्बार्क संप्रदाय ने अपनी विकृत मान्यताओं से जकड़ रखा है.
यह सुनने के बाद संत कबीर चंपारण के लिए निकल पड़े. वे अपने मतानुसार धर्म की व्याख्या करते हुए अपनी यात्रा पर थे. पिथौरागढ़ के पास आचार्य भगवान गोस्वामी ने उन्हें शास्त्रार्थ की चुनौती दी. कबीर ने उसे स्वीकार किया. उनके बीच कई दिनों तक शास्त्रार्थ चला जिसमें भगवान गोस्वामी परास्त हो गए. उन्होंने संत कबीर को अपना गुरु मान लिया और उनसे बीजमंत्र की दीक्षा ली. भगवान दास ने उसी शास्त्रार्थ और बीजमंत्र को बीजक नामक ग्रंथ में संकलित किया. बाद में आचार्य भगवान गोस्वामी के वंशजों ने वहां कबीर मठ की स्थापना की और बीजक की मूल प्रति को सुरक्षित रखा.
देश में करीब एक करोड़ कबीरपंथी हैं
देश में कबीरपंथियों की संख्या एक करोड़ के करीब बताई जाती है. बिहार में भी उनकी अच्छी खासी संख्या है. उनके नाम पर दर्जनाधिक मठ हैं. उन मठों के पास हजारों एकड़ जमीन है जो आज की तारीख में विवादों के घेरे में है. कई मठों के महंथों ने जमीन को अपने निजी स्वामित्व में लाने का षड़यंत्र रचा. अनधिकृत रूप से बेचा या लीज पर दे दिया. काफी जमीन पर दबंगों ने अवैध कब्जा जमा लिया. काफी जमीन रजिस्टर्ड भी नहीं है.
बिहार धार्मिक न्यास परिषद् ने मठों की जमीन को हस्तांतरण से रोका. उन्हें सार्वजनिक संपत्ति करार दिया. न्यास ने बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम 1950 के अनुसार, राज्य के सभी धार्मिक ट्रस्टों को बोर्ड के साथ पंजीकृत कराने का निर्देश दिया है. राज्य सरकार अतिक्रमण हटाने की मुहिम पर काम कर रही है. जाहिर है कि कबीर मठों में जो कुछ हो रहा है वह संत कबीर की शिक्षाओं के अनुरूप नहीं है.
चार प्रमुख शिष्यों के पास था कबीर के विचार फैलाने का जिम्मा
संत कबीर ने अपने विचार फैलाने का जिम्मा अपने चार प्रमुख शिष्यों को दिया था. वे चारों शिष्य ‘चतुर्भुज’, ‘बंके जी’, ‘सहते जी’ और ‘धर्मदास’ थे. उन्होंने देश के विभिन्न इलाकों में जाकर कबीरपंथ की स्थापना की. उनके विचारों को प्रसारित किया. उनके पहले तीन शिष्यों के बारे में कोई बहुत ज्यादा विवरण नहीं मिलता. चौथे शिष्य धर्मदास ने कबीर पंथ की ‘धर्मदासी’ अथवा ‘छत्तीसगढ़ी’ शाखा की स्थापना की थी, जो इस समय देशभर में सबसे मजबूत कबीर पंथी शाखा है.
बिहार में हैं कई कबीर मठ
बिहार की राजधानी पटना में फतुहा मठ की स्थापना तत्वाजीवा अथवा गणेशदास थे, जबकि मुजफ्फरपुर में कबीरपंथ की बिद्दूरपुर मठवाली शाखा की स्थापना जागूदास ने, सारन जिले में धनौती में स्थापित भगताही शाखा के संस्थापक भागोदास थे. गया का कबीरबाग मठ वाराणसी के कबीरचौरा की उपशाखा है. इसके अलावा समस्तीपुर और कई अन्य कबीर मठ हैं. हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड बिहार के कबीर मठों की सूची और उनकी अचल संपत्ति की विस्तृत सूची तैयार कर रहा है.
कबीर अंत्येष्टि अनुदान योजना
बिहार सरकार द्वारा में बीपीएल कार्डधारियों के लिए वर्ष 2007 से कबीर अंत्येष्टि योजना चलाई जा रही है. इसके अंतर्गत परिवार के किसी सदस्य का निधन होने पर उसके दाह्य-संस्कार के लिए सरकार की तरफ से तत्काल नकद राशि प्रदान की जाती है. इसके लिए लंबी कागजी प्रक्रिया नहीं अपनानी पड़ती. ग्राम पंचायत के पास 5,नगर पंचायत के पास 10, नगर परिषद् के पास 15 और नगर निगम के पास 20 लाभार्थियों के लिए इस मद के लिए अग्रिम राशि आवंटित की हुई होती है. जैसे ही कोई आवेदन आता है, जांच-पड़ताल के बाद तत्काल मृतक के परिजन के खाते में राशि स्थानांतरित कर दी जाती है.
शुरुआत में इस योजना के तहत 1500 रुपयों की मदद की जाती थी. लेकिन, 2014 के बाद इसे बढ़ाकर 3000 कर दिया गया. इससे गरीब परिवारों को काफी राहत मिलती है.