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भारत की सियासत बदल देती है इस मैदान की जनसभा, आजादी से पहले भी यहां जुटती थी लाखों की भीड़

Explainer: बिहार की यह खुली जगह कभी किसी जमाने में अंग्रेजों की दावाखोरी रही थी. इस मैदान में न जाने कहां से इतनी ताकत आई की उस जमाने में चल रही हवा का रूख ही बदल दिया. अपने आप में एक पूरी दास्तान रहा ये मैदान कई क्रांतियों और कानूनों का गवाह है. यहां मोहम्मद अली जिन्ना, महात्मा गांधी और लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी हुंकार भरे हैं. आइए इस मैदान के बारे में विस्तार से जानते हैं.

Explainer: लाखों लोगों की भीड़ को खुद में समेट देने वाला और सामने जो भी खड़ा हो उसको लीडर बना देने वाला ये मैदान मात्र एक खुली जगह नहीं बल्कि एक विरासत है, संस्कृति है और बदलाव की हुंकार भी है. कभी किसी जमाने में अंग्रेजो की दावाखोरी की जगह रही इस मैदान में न जाने कहां से इतनी ताकत आई की उस जमाने में चल रही हवा का रूख ही बदल दिया. पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान का नाम तो आपने बहुत सुना होगा. अपने आप में एक पूरी दास्तान रहा ये मैदान कई क्रांतियों और कानूनों का गवाह है. लेकिन क्या आप जानते है, इसे पहले गांधी मैदान के नाम से नहीं जाना जाता था. इसे पहले बांकीपुर मैदान और पटना लॉन के नाम से लोग जानते थे.

आखिर कैसे पड़ा इस मैदान का नाम गांधी मैदान?

दरअसल गांधी जी की हत्या के बाद साल 1948 में स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगांठ से पहले उनके सम्मान में इस मैदान का नाम गांधी मैदान पड़ा. दस्तावेजों के अनुसार, ये मैदान आज़ादी के बाद से बिहार मे स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रमों का प्रमुख स्थान रहा. लेकिन इसका नाम महात्मा गांधी के नाम पर कैसे पड़ा? यह सवाल सभी के जहन में आता है तो आपको बता दूं कि बिहार राज्य अभिलेखागार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा था कि बांकीपुर मैदान का नाम बदलने का अनुरोध उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर के एक शिक्षक ने महात्मा गांधी के हत्या के तुरंत बाद किया था.

अभिलेखागार के रिकॉर्ड्स के अनुसार, मुजफ्फरपुर जिले में एक शिक्षक ने सरकारी अधिकारियों को एक पत्र भेजा था, जिसमें बापू के सम्मान में बांकीपुर मैदान का नाम बदलने का अनुरोध किया गया था. उन्होंने गांधी लॉन, गांधी बाग या महात्मा गांधी मैदान जैसे विभिन्न नामों का उपयोग करने का सुझाव दिया था. उन्होंने अपने भेजे पत्र में इस बात पर जोड़ दिया था कि इसमें बापू का नाम जरूर होना चाहिए.

1918 में बापू ने की थी विशाल जनसभा

बिहार में बापू ने चंपारण सत्याग्रह किया, जो कि भारत का पहला सत्याग्रह है. उसके बाद बापू ने विशाल जनसभा जनवरी 1918 में इसी मैदान में आयोजित की थी, तभी से लोगो ने इसे गांधी मैदान कहना शुरू कर दिया था. इस क्रांति के स्मारक के तौर पर महात्मा गांधी की सबसे ऊंची 70 फीट की प्रतिमा यहीं 2013 में बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने स्थापित किया.

Mahatma Gandhi
गांधी मैदान में बापू की जनसभा

मोहम्मद अली जिन्ना ने किया था ऐतिहासिक रैली को संबोधित

1920 और 1940 के दशकों में कई महत्वपूर्ण सभाओं और रैलियों का आयोजन यहां हुआ. बिहार के क्रांतिकारियों ने इसे अपनी आवाज बुलंद करने का मंच बनाया. गांधी मैदान न केवल एक भौगोलिक स्थान था, बल्कि स्वतंत्रता के सपने का प्रतीक बन गया था. इस मैदान पर साल 1938 में तत्कालीन मुस्लिम लीग के प्रमुख और इस देश के बंटवारे के जिम्मेदार मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ एक ऐतिहासिक रैली को संबोधित किया था. साल 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने एक नई नवेली पार्टी फारवर्ड ब्लॉक की पहली रैली इसी पटना की ऐतिहासिक गांधी मैदान में किया.

जेपी ने फूंका था आपातकाल के खिलाफ संघर्ष का बिगुल

भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, अटल बिहारी बाजपेई, जे. बी. कृपलानी, जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे तमाम नेताओं के कई ऐतिहासिक रैलीयों का साक्षी यह मैदान रहा है. 5 जून, 1974 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका था. तब उन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा इसी मैदान में दिया था. इस दौरान लाखों की भीड़ उमड़ी थी. सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का नारा भी यहीं दिया गया था.

इस रैली में कवि फणीश्वरनाथ रेणु ने जयप्रकाश नारायण के स्वागत में दिनकर के क्रांति के भाव जगाती कविताओं का पाठ किया था. ये आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में संपूर्ण क्रांति अनोखा प्रयोग था. जे. पी. के अगुवाई में ही लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील मोदी जैसे तमाम नेता राज्य के कद्दावर नेता की श्रेणी में शामिल हुए थे.

Jaiprakash
गांधी मैदान में हुंकार भरते जयप्रकाश नारायण

नरेंद्र मोदी के विशाल जनसभा में हुए थे 6 बम धमाके

बीजेपी द्वारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद पटना के गांधी मैदान में आयोजित एक विशाल जनसभा के दौरान सिलसिलेवार 6 बम धमाके भी हुए थे. इन धमाकों में सात लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले की सुनवाई करते हुए एनआईए कोर्ट ने दस आरोपियों में से 9 को दोषी करार दिया है, जबकि एक आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.

Namo Sabha
नरेंद्र मोदी के सभा में हुए थे बम धमाके

सामाजिक और राजनीतिक जीवन का प्रतीक है गांधी मैदान

समय बदला लेकिन नहीं बदली तो पटना की ये ऐतिहासिक गांधी मैदान की सूरत. गांधी मैदान केवल राजनीति तक सीमित नहीं है. यह सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का भी प्रमुख स्थल रहा है. यहां प्रत्येक साल होने वाले दुर्गा पूजा मेला, पुस्तक मेला, और पटना मैराथन शहर की पहचान का हिस्सा बन चुके हैं.

आज, गांधी मैदान बिहार की राजनीति और सामाजिक जीवन का प्रतीक बना हुआ है. आधुनिक संरचनाओं और सुरक्षा के इंतजामों के बावजूद, यह अपनी ऐतिहासिक गरिमा को बनाए हुए हैं. चाहे वह किसानों का प्रदर्शन हो, युवाओं की रैली हो, या चुनावी सभाएं – गांधी मैदान आज भी लोकतंत्र का सजीव प्रतीक है.

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