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बेहद खास है गया का बाकरखानी, 100 साल से भी ज्यादा पुराना है कारोबार, जानें लोकेशन और रेट

गया में बनने वाली बाकरखानी की मांग त्योहारों में बढ़ जाती है, लोग इसे अपने रिश्तेदारों को संदेश के तौर पर भेजते हैं. यहां 100 साल से भी अधिक समय से इसका निर्माण किया जा रहा है

Bakarkhani: धर्म, साहित्य व संस्कृति के क्षेत्र में गयाजी की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युगों से बनी है. इसी तरह यहां बनने वाले कई पारंपरिक डिश भी काफी पुराने हैं. तिलकुट, लाइ, अनरसा, केसरिया पेड़े के साथ-साथ मुस्लिम समाज में बनने वाला पारंपरिक डिश बाकरखानी भी इन्हीं में से एक है. इससे जुड़े कारोबारियों की माने तो यहां की बाकरखानी का कारोबार 100 साल से भी अधिक पुरानी है.

बताया जाता है कि शहर के जामा मस्जिद रोड के रहने वाले मो मजहर के पूर्वजों के द्वारा इस कारोबार की शुरुआत की गयी थी. तब के समय में शहर सहित बिहार के किसी भी जिले में बाकरखानी नहीं बनती थी. इस पारंपरिक डिश का स्वाद लोगों को इतना भाया कि समय बीतने के साथ-साथ शहर में कई कारखाने खुल गये. जिले से बाहर व दूसरे राज्यों में यहां से जाने वाले लोग अपने रिश्तेदारों के यहां संदेश के रूप में बाकरखानी ले जाना नहीं भूलते. मुस्लिम पर्व-त्योहारों में यह संदेश लोगों की आम जरूरत बन जाता है. इसके कारण अधिकतर मुस्लिम पर्व त्योहारों में इसकी मांग काफी बढ़ जाती है.

दो बड़े सहित एक दर्जन से भी अधिक छोटे होटलों में भी बनाया जाता है बाकरखानी

जामा मस्जिद रोड में बड़े पैमाने पर मो मजहर बाबू के वारिस मो इस्लाम व मिस्टर बाबू द्वारा संचालित बड़े कारखाने में प्रतिदिन औसतन तीन सौ पीस बाकरखानी बनायी जाती है. इसके अलावा छत्ता मस्जिद रोड स्थित अधिकतर होटलों में भी बाकरखानी का कारोबार होता है. क्वालिटी के अनुसार अलग-अलग रेट में बाकरखानी बाजार उपलब्ध है. बिस्किट क्वालिटी की बाकरखानी 20 तो उच्च क्वालिटी की बाकरखानी 70 से 120 रुपये तक प्रति पीस खुदरा बाजार में बिक रही है.

कई प्रक्रिया से गुजर कर तैयार होती है बाकरखानी

मैदा, दूध, काजू, किशमिश, चीनी, वनस्पति घी, तिल सहित कई अन्य सामान से बनने वाला बाकरखानी कई प्रक्रिया से होकर तैयार होता है. बाकरखानी का कारोबार कर रहे मो मिस्टर बाबू ने बताया कि सबसे पहले मैदा, दूध व चीनी मिलाकर अच्छी तरह से साना जाता है. इसके बाद इसे इसमें काजू, किशमिश का मिलाया जाता है.

खस्ते के लिए वनस्पति घी का उपयोग किया जाता है. इसके बाद इसे रोटी आकार में बेला जाता है. इसके बाद कांटे से गोद कर लच्छा पराठा की तरह की आकार में ढाला जाता है. इसके बाद आग की भट्टी की दीवाल के सहारे इसकी सिंकाई की जाती है.

अच्छी तरह सिकाई हो जाने के बाद इसे घी में डूबा कर निकाल लिया जाता है. सुंदर व आकर्षक दिखने के लिए तैयार बाकरखानी की रंगाई भी की जाती है. काजू, किशमिश की मात्रा के अनुसार बाकरखानी की कीमत निर्धारित होती है. खुदरा बाजार में इस क्वालिटी की बाकरखानी 70 से 120 रुपये प्रति पीस बिक रही है

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