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भारत ने थाईलैंड में लगाई बुद्ध और उनके शिष्यों के धातु अवशेषों की प्रदर्शनी, देखने के लिए उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़

थाईलैंड के उबोन रतचथानी में वाट महा वनरम में भारत से लाए गए पवित्र अस्थि अवशेषों की प्रदर्शनी के दूसरे दिन थाईलैंड और पड़ोसी देशों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रद्धांजलि दे रहे हैं

बोधगया. भारत की ओर से प्रदर्शनी के लिए थाईलैंड भेजे गये भगवान बुद्ध व उनके दो शिष्यों अरिहंत सारिपुत्त व महा मोग्गलायन के पवित्र अस्थि अवशेषों के दर्शन के लिए वहां के उबोन रत्चथानी शहर में भारी भीड़ उमड़ रही है. इस संबंध में थाईलैंड में भारतीय उच्चायोग ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा है कि उबोन रत्चथानी के वाट महा वानाराम में भारत से लाये गये पवित्र अस्थि अवशेषों की प्रदर्शनी के दूसरे दिन थाईलैंड व पड़ोसी देशों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि शुभ छठे चक्र और राजा राम दशम के 72वें जन्म वर्ष के उपलक्ष्य में भारत व थाईलैंड के लोगों के बीच मित्रता के प्रतीक के रूप में भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों के पवित्र धातु अवशेष थाईलैंड के चार अलग-अलग स्थानों पर लगने वाली 26 दिवसीय प्रदर्शनी के लिए 22 फरवरी को थाईलैंड भेजे गये थे.

प्रदर्शनी के पहले हिस्से के तौर पर 23 फरवरी को इन्हें बैंकॉक में सनम लुआंग मंडप के एक भव्य मंडपम में स्थापित किया गया था. बैंकॉक के बाद अवशेषों को चार से आठ मार्च के बीच चियांग मायी शहर में भेजा गया. इन दोनों शहरों में 15 लाख से अधिक लोगों ने पवित्र अवशेषों पर श्रद्धांजलि अर्पित कीं.

थाईलैंड के अलावा कंबोडिया, लाओस व वियतनाम के श्रद्धालु भी कर रहे दर्शन

धातु अवशेषों पर श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए थाईलैंड के अलावा कंबोडिया, लाओस व वियतनाम के श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. इसके बाद अवशेषों को दक्षिणी शहर क्राबी ले जाया जायेगा. इस अवसर पर थाईलैंड में भारतीय दूतावास ने यूपी पर्यटन के सहयोग से ‘बुद्धभूमि भारत: भगवान बुद्ध के नक्शे कदम पर यात्रा ’ नामक एक मंडप भी बनाया है, जिसमें भारत की बौद्ध विरासत व समृद्ध सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक झलक दिखायी देती है.

क्या है इतिहास

गौरतलब है कि बुद्ध के पवित्र अवशेष भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे रहते हैं. उनके अवशेषों को उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था, जिसे प्राचीन शहर कपिलवस्तु का ही एक हिस्सा माना जाता है. इसके अलावा उनके दोनों शिष्यों के अवशेष मध्य प्रदेश के सांची स्तूप में रखे होते हैं. उनके पवित्र अवशेषों की खुदाई 1851 में ब्रिटिश पुरातत्वविदों द्वारा की गयी थी व फिर उन्हें इंग्लैंड के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में ले जाया गया था.

हालांकि, भारत में महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया व कई लोगों के प्रयासों से एक लंबे संघर्ष के बाद 1948 में उनके अवशेषों को वापस भारत लाया गया. बोधगया स्थित महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया यानी श्रीलंका बौद्ध मठ में भी बुद्ध व उनके दोनों शिष्यों के धातु अवशेष रखे हुए हैं. थाईलैंड में 19 मार्च को प्रदर्शनी के समापन के बाद पवित्र अवशेषों को उनके संबंधित स्थलों पर वापस लाया जायेगा.

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