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Gaya News: मगही भाषा को सहेजने के लिए आगे आने की जरुरत, भाषाओं का विलुप्त होना मानव सांस्कृतिक क्षति

Gaya News: महाबोधि सांस्कृतिक सभागार में गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. जिसमें वक्ताओं ने अपनी अपनी राय रखीं.

Gaya News: गया स्थित एमयू के मानविकी संकाय व वैश्विक संस्कृत मंच के संयुक्त तत्वावधान में ‘भाषा पारिस्थितिकी एवं साहित्य’ विषय पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन गुरुवार से शुरू हुआ. पहले दिन गुरुवार को महाबोधि सांस्कृतिक सभागार में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि बिहार सूचना आयोग के राज्य सूचना आयुक्त प्रकाश कुमार, विशिष्ट अतिथि नवनालंदा महाविहार नालंदा के कुलपति प्रो सिद्धार्थ सिंह, एमयू के कुलपति सह सम्मेलन के संरक्षक प्रो एसपी शाही, प्रतिकुलपति प्रो बीआरके सिंह, मुख्य वक्ता प्रो शैलेंद्र कुमार सिंह, नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी शिलांग के भाषा विज्ञान के प्रोफेसर प्रो गिरीश नाथ झा, अध्यक्ष साइंटिफिक एंड टेक्निकल टर्मिनोलॉजी व कार्यक्रम की संयोजिका डॉ निभा सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया.

मगही भाषा को सहेजने के लिए हम सब आगे आएं

मंचासीन सभी अतिथियों को अंग वस्त्र व प्रतीक चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया गया. इसके उपरांत एक स्मारिका का भी विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया. पहले दिन प्रथम एवं दूसरा सत्र चला. प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि राज्य सूचना आयुक्त प्रकाश कुमार ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को सुधारना है तो सबसे पहले उसकी भाषा को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए. हमारी भाषाएं पारिस्थितिकी तंत्र से भी जुड़ी हुई हैं. आज तितलियों के नहीं रहने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है. अन्य पशु-पक्षियों की भाषाएं सुनने को नहीं मिल रही है. आज भाषा नया रूप लेता जा रहा है. मगध की मूल भाषा मगही विलुप्त होने के कगार पर है. इस भाषा को सहजने के लिए हम सबों को आगे आना चाहिए.

जलवायु परिवर्तन भी भाषा को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक

नवनालंदा महाविहार नालंदा के कुलपति प्रो सिद्धार्थ सिंह ने वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन भी भाषा को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण और प्रबल कारक है. यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि भाषाओं की विलुप्ति का खतरा आज आमतौर उन भाषाओं पर सबसे अधिक है, जो कि देश के लोगों द्वारा बोली गयी है. आज खतरे में पड़ी भाषाओं के संरक्षण और अस्तित्व की रक्षा के लिए विभिन्न उपाय किये जाने बहुत ही आवश्यक हैं. तभी हम भाषाओं के अस्तित्व को बचा सकते हैं. भाषाओं के संरक्षण के लिए हमें भाषण के व्याकरण संबंधित विभिन्न जानकारियां को सहेज कर रखना होगा.

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भाषाओं का विलुप्त होना मानव इतिहास के बहुत है बड़ी सांस्कृतिक क्षति

मुख्य वक्ता प्रो शैलेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि भाषाओं की विलुप्ति, भाषाओं का खत्म होना या कहे कि किसी देश की विरासत के लिए बल्कि पूरे मानव इतिहास के बहुत बड़ी सांस्कृतिक क्षति है. भारत में लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन रहा है. प्रो गिरीश नाथ झा ने कहा कि आज के युग में भाषाओं की विलुप्ति का कारण कहीं ना कहीं ग्लोबलाइजेशन भी है. ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में पूरी दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति बेहतर से बेहतरीन होने की कोशिश में लगा हुआ है और शायद यही कारण है कि वह बहुत सी अहम चीजों को भी लगातार विस्मृत करता चला जा रहा है. भाषा भी उन चीजों में से एक है.

भाषा एक ऐसी चीज है जो सब कुछ बदल देती है

मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एसपी शाही ने कहा कि भाषा एक ऐसी चीज है जो सब कुछ बदल देती है. हम भारतीय अपनी हिंदी भाषा को छोड़कर दूसरी भाषा को अधिक तवज्जो दे रहे हैं. लेकिन, ऐसा नहीं होना चाहिए. हमारी मातृभाषाएं मिट्टी से जुड़ी हुई हैं. मगध विश्वविद्यालय ने पहली बार इस तरह का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर इतिहास बनाया है. उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से नई शोध विकसित होंगे और शोधार्थियों में भाषा और साहित्य के प्रति नवीन सोच विकसित होगी. इस मौके पर डॉ ब्रजेश राय, डॉ रहमत जहां,डॉ सरिता वीरांगना, डॉ जावेद अंजुम, डॉ नीरज कुमार, प्रो संजय कुमार, डॉ गोपाल जी कुमार, डॉ एकता वर्मा, डॉ जिउल्लाह अनवर, डॉ मनीष कुमार सिन्हा, डॉ परम प्रकाश राय, डॉ प्रियंका तिवारी, डॉ श्वेता कुमारी, डॉ दीपशिखा पांडेय सहित मानविकी संकाय के प्राध्यापक एवं बड़ी संख्या में शोधार्थी उपस्थित थे. मंच का संचालन संस्कृत विभाग की सहायक आचार्य डॉ ममता मेहरा एवं समाजशास्त्र की सहायक आचार्य डॉ चांदनी रोशन ने संयुक्त रूप से किया. धन्यवाद ज्ञापन उर्दू विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ जियाउल अनवर ने किया.

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