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गया शहर के कूड़े में हर दिन फेंके जा रहें तीन टन प्लास्टिक बैग, इंसान से लेकर जानवर तक हो रहे बीमार

गया शहर में प्लास्टिक बैन होने के बावजूद बेरोक टोक इसका उपयोग बढ़ता जा रहा है. शहर के कचरे में प्रतिदिन तीन टन प्लास्टिक बैग फेंके जा रहे हैं. जो इंसान से लेकर जानवर तक को बीमार कर रहे हैं.

Gaya Nagar Nigam: गया शहर में प्लास्टिक की थैलियों का यूज करना लोगों ने बंद नहीं करने की कसम खा ली है. धीरे-धीरे इसका उपयोग बेरोक-टोक बढ़ता ही जा रहा है. चिंताजनक है कि हर दिन शहर से कचरा में ही दो-से-तीन टन प्लास्टिक निकलता है. इसका रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है. हालांकि, निगम की ओर से अब तक करोड़ों रुपये प्लास्टिक बंद के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए खर्च किये जा चुके है. हाल के पांच वर्षों में देखा जाये, तो प्लास्टिक की थैली कचरे में खाने से जानवरों की मृत्यु दर भी बढ़ गयी है. पहले जहां 10 घुमंतू जानवर मरते थे, अब इनकी संख्या 20 पर पहुंच गयी है.

इधर डॉक्टरों की मानें, तो इसके चलते लोग भी बीमार हो रहे हैं. थैली में गरम खाना रखने पर गंभीर बीमारी भी हो सकती है. लोग इसके शिकार भी हो रहे हैं. निगम के कचरा के अलावा प्लास्टिक की थैली को लोग यूज कर नाला-नालियों में भी फेंक देते हैं. इसके चलते नालियां भी जाम होती हैं. नगर निगम के सफाई के उपनोडल अधिकारी दिनकर प्रसाद ने बताया कि कचरा में प्लास्टिक की थैली कचरा में आने के बाद इसे छंटनी कर सीमेंट फैक्ट्री में भेजी जाती है. हर दिन यहां 400 से 500 टन कचरा निकलता है. इसमें कचरा के वजन का प्लास्टिक 0.5 प्रतिशत होता है. यह बहुत ही चिंता का विषय है.

अभियान को नहीं बनाया जा सका प्रभावी

नगर निगम की ओर से प्लास्टिंग बंद को सफल बनाने के लिए अभियान जोर-शोर से शुरू किया गया, लेकिन, बाद में सब कुछ शिथिल हो गया. अब किसी त्योहार या फिर विशेष मौके पर ही प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाया जाता है. सरकार की ओर से यहां नगर निगम में इस तरह के कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए कई स्तर के पदाधिकारियों की पोस्टिंग की गयी है, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात की तरह ही रहा है.

पिछली बार पितृपक्ष मेले के दौरान निगम की ओर से प्लास्टिक मुक्त मेला क्षेत्र बनाने का एलान किया गया था. लेकिन, मेला के दौरान ही लोग खुलेआम प्लास्टिक के थैली का उपयोग कर रहे थे. हालांकि, दिखाने के लिए निगम की ओर से कुछ जगहों पर छापेमारी कर कार्रवाई जरूर की गयी.

जानवरों की मृत्यु दर बढ़ी

पशु चिकित्सक डॉ धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि कचरा में थैलियों को फेंकने से जानवरों की मृत्यु दर बढ़ गयी है. जानवर अक्सर थैलियों को भोजन समझकर खा लेते हैं, जिससे उनकी पाचन प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है. प्लास्टिक की थैलियों के सेवन से जानवरों में भुखमरी, दम घुटना, घाव, संक्रमण, प्रजनन क्षमता में कमी और मृत्यु हो जाती है. उन्होंने बताया कि शहर में इसके खिलाफ हर हाल में अभियान चलाकर इस पर रोक लगाना होगा.

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लोग हो रहे बीमार, फिर भी नहीं संभलते

फिजिशियन डॉ एनके पासवान ने बताया कि प्लास्टिक की थैली में गरम खाना रख कर खाने से कई तरह की बीमारी होती है. इसमें गंभीर बीमारी भी शामिल है. उन्होंने बताया कि माइक्रोप्लास्टिक सीधे संपर्क के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है. स्वास्थ्य पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. इसमें सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव, जीनोटॉक्सिसिटी और एपोप्टोसिस शामिल हैं. नेक्रोसिस होता है और यह नकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम से जुड़ा होता है. इससे कैंसर या हृदय रोग हो सकता है.

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