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लालू-राबड़ी ने जिस मंदिर में परिवार के साथ की पूजा-अर्चना, जानिए उस मंदिर से जुड़ी दिलचस्प कहानी…

बिहार के गोपालगंज में स्थित शक्तिपीठों में शामिल थावे की मां सिंहासनी की पूजा अर्चना करने राज्य सुप्रीमो लालू यादव अपने परिवार के साथ पहुंचे. इस मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक कहानी बड़ी रोचक है. आज हम आपको इसी कहानी के बाड़े में बता रहे हैं.

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद मंगलवार की सुबह बारिश के बीच अपनी पत्नी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, बेटा वन पर्यावरण व जलवायु विभाग के मंत्री तेज प्रताप यादव के साथ बिहार के प्रमुख शक्ति पीठ थावे पहुंचे. वहां मां सिंहासनी की वैदिक मंत्रों के बीच पूजा -अर्चना की. मां को नारियल, चुनरी चढ़ाने के बाद परिक्रमा कर शक्ति, सुख, आरोग्य, शांति व समृद्धि की याचना की. 2024 में लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया’ की भारी जीत की कामना भी की. इस दौरान मंदिर के प्रशासनिक पुजारी पं हरेंद्र पांडेय व मुख्य पुजारी पं संजय पांडेय ने लालू प्रसाद की पूजा कराने के बाद उनके हाथों में कलेवा बांधा. हम आपको इसी तीन सौ साल पुराने मंदिर से जुड़ी कहानी बता रहे हैं.

सिवान -गोपालगंज मार्ग पर स्थित है मंदिर

गोपालगंज से 6 किलोमीटर दूर सीवान जाने वाले मार्ग पर थावे में मां दुर्गा का यह प्राचीन मंदिर स्थित है. करीब 300 वर्ष पहले स्थापित मां थावे वाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. यह मंदिर देश के प्राचीन जागृत शक्तिपीठों में से एक है. ऐसे तो सालों भर यहा मां के भक्त आते हैं, लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवारात्र के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है. भक्त हजारों की संख्या में यहां देश और विदेश से भी आते हैं.

चेरो वंश के राजा और मां के एक भक्त की है कहानी

थावे में स्थित यह मंदिर एक सिद्धपीठ स्थान है. इस मंदिर के पीछे मां के एक भक्त रहषु स्वामी और चेरो वंश के क्रूर राजा की प्राचीन कहानी है. पौराणिक कथाओं के अनुसार उस वक्त हथुआ में चेरो वंश के राजा मनन सिंह का साम्राज्य हुआ करते थे. वो अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. इसका उन्हें गर्व भी था. इसी कारण वो अपने सामने किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे.

राजा ने भक्त रहषु से मां का आह्वान करने को कहा था

राजा मनन सिंह के कार्यकाल में राज्य में अकाल पड़ गया. जनता खाना खाने के लिए तरसने लगी. इसी दौरान थावे में कामाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहा करता था. पौराणिक कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता. रात में उसके घास से अन्न निकल जाता था. जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा. इस बात की सूचना राजा को मिली. लेकिन, राजा के इस चमत्कार पर विश्वास नहीं हुआ. राजा ने रहषु को ढोंगी बताया और मां को बुलाने को कहा.

रहषु के मस्तक को विभाजित कर मां ने दिए थे दर्शन

रहषु ने राजा से ऐसा न करने की प्रार्थना की. उसने राजा से कहा कि मां अगर यहां आती हैं तो पूरा राज्य बर्बाद हो जाएगा. लेकिन, घमंडी राजा नहीं माना. अंत में रहषु की प्रार्थना पर मां असम के कमाख्या स्थान से चलकर थावे आयी थी. ऐसा कहा जाता है कि मां कमाख्या से चल कर कोलकाता फिर पटना, आमी के रास्ते थावे पहुंची थीं और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दीं थी. मां तो प्रकट हो गई लेकिन राजा के सभी भवन गिर गए और राजा को मोक्ष मिल गया. इसी घटना की चर्चा के बाद स्थानीय लोगों ने यहां मां की पूजा करनी शुरू कर दी.

सप्तमी पूजा का है विशेष महत्व

थावे में स्थित यह प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर तीन तरफ से वन कक्षेत्र से घिरा हुआ है. मंदिर के वन से घिरे होने की वजह से यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है. इस मंदिर में प्रवेश व निकास के लिए एक-एक द्वारा हैं. यहां सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम हैं. सप्तमी के दिन यहां होने वाली पूजा का विशेष महत्व होता है. इसके लिए श्रद्धालु दूर-दूर से ईद मंदिर में पहुंचते हैं.

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आप कैसे पहुंच सकते हैं मां के दरबार में

पटना से आप मां के दर्शन के लिए सीधे बस या फिर ट्रेन से गोपालगंज जा सकते हैं. गोपालगंज से सीवान के रास्ते में थावे पड़ता है. मां के दरबार तक जाने के लिए आपको रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से टेंपू, रिक्शा इत्यादि आसानी से मिल जायेंगे. लेकिन आपको थावे में रहने की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए आप ठहरना चाहते हैं तो फिर गोपालगंज में ही होटल बुक करवा कर रुक सकते हैं.

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