21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Azadi Ka Amrit Mahotsav: जलियांवाला बाग की तरह मुंगेर में भी हुआ था नरसंहार,छलनी हुए थे 34 सपूतों के सीने

Azadi Ka Amrit Mahotsav: 15 फरवरी 1932 को ब्रिटिश हुकूमत (British rule) द्वारा हुए भीषण नरसंहार के लिए जाना जाता है. आजादी के दीवाने 34 वीरों ने तारापुर थाना भवन पर तिरंगा फहाराने के संकल्प को पूरा करने के लिए सीने पर गोलियां खायी थीं और वीरगति को प्राप्त हुए थे.

भारत की आजादी के लिए संघर्षों के कई किस्से आप लोगों ने सुने होंगे. क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोही घटनाओ का लंबा इतिहास है. इनमें से कई घटनाएं लोगों को मुंहजबानी याद हैं. मगर कई बड़ी घटनाएं ऐसी भी हैं जो समय के साथ भुला दी गईं. देश को आजादी कितनी कुर्बानियों के बाद हासिल हुई है, इसका अंदाजा शायद नई पीढ़ी को नहीं होगा.

स्वतंत्रता समर का दूसरा सबसे बड़ा बलिदान

अगर स्वतंत्रता सेनानियों की बात करें तो हम इतिहास की पुस्तकों में, फिल्मों में, गानों में और सरकारी माध्यमों में चर्चित नामों को तो जानते हैं. लेकिन, सैकड़ों क्रांतिवीरों के बलिदान के बारे में नहीं जानते हैं. जो आज आजादी के 75 साल बाद भी कहीं गुमनामी के अंधेरे में खोए हुए हैं. उन्हें या तो भुला दिया गया है या फिर वे हाशिये पर डाल दिए गए. ऐसा ही एक वाकया तारापुर से जुड़ा हुआ है.

कई सेनानियों के नाम तक नहीं मालूम

कई सेनानियों का तो कुछ अता पता भी नहीं मालूम, क्योंकि उनके बारे में कभी कुछ जानने और बताने की कोशिश ही नहीं की गई. आप और हम सभी जलियांवाला बाग की घटना को जानते हैं, लेकिन शायद किसी को पता हो भी या न हो कि आजादी की लड़ाई में बिहार के तारापुर का गोलीकांड कितनी महत्वपूर्ण घटना थी. इस घटना की जितनी चर्चा होनी चाहिए थी, शायद उतनी हो नहीं पाई है.

भीषण नरसंहार के लिए जाना जाता है तारापुर

तारापुर जो उस समय मुंगेर जिला का तारापुर छोटा सा बाजार हुआ करता था, वह भी इससे अछूता नहीं रहा. यह कस्बानुमा शहर तारापुर 15 फरवरी 1932 को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा हुए भीषण नरसंहार के लिए जाना जाता है. आजादी के दीवाने 34 वीरों ने तारापुर थाना भवन पर तिरंगा फहाराने के संकल्प को पूरा करने के लिए सीने पर गोलियां खायी थीं और वीरगति को प्राप्त हुए थे. जिनमें से मात्र 13 शवों की ही पहचान हो पाई थी. 1931 के गांधी इर्विन समझौते को रद्द किए जाने के विरोध में कांग्रेस सरकारी भवन से यूनियन जैक उतारकर तिरंगा फहराने के लिए पहल की गई थी.

कैलाश राजहंस ने बनाई थी तिरंगा फहराने की योजना

घटना के साक्षी एवं योजना के भागीदार रहे स्वतंत्रता सेनानी कैलाश राजहंस के अनुसार सुपर जमुआ के श्री भवन में तारापुर थाना भवन पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई थी. 15 फरवरी 1932 को आस-पास के गांव के हजारों युवाओं ने तिरंगा फहराने के संकल्प के साथ तारापुर थाना भवन पर धावा बोला जोशीले युवा भारत माता की जय और वंदे मातरम का जय घोष कर रहे थे. उस वक्त के कलेक्टर ईओ ली व एसपी डब्लू फ्लेग ने स्वतंत्रता सेनानियों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थीं.

21 शहीदों की नहीं हुई थी पहचान

इतिहासकारों के अनुसार इस गोली काण्ड में पुलिस बल द्वारा कुल 75 चक्र गोलियां चली जिसमें 50 से भी ज्यादा क्रान्तिकारी शहीद हुए एवं सैंकडों क्रान्तिकारी घायल हुए. गोलीकांड के तीन दिन बाद सिर्फ 13 शहीदों की पहचान हो पाई थी. जिनकी पहचान हो पाई थी वो थे शहीद विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढि़या), रामेश्वर मंडल (पड़भाड़ा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा चंडी महतो (चोरगांव). वहीं इसके अलावे 21 शव ऐसे मिले जिनकी पहचान नहीं हो पायी थी और कुछ शव तो गंगा में बहा दिए गए थे.

तारापुर दिवस को आजादी मिलने के बाद भुला दिया गया

बता दें कि क्रांतिकारी लेखक मनमथनाथ गुप्त, डीसी डिंकर, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, रणवीर सिंह वीर, चतर्भुज सिंह भ्रमर, डॉ. देवेंद्र प्रसाद सिंह, पूर्व विधायक जयमंगल सिंह शास्त्री, काली किंकर दत्ता, चंदर सिंह राकेश ने भी इस घटना को अपनी लेखनी में पिरोया था. चार अप्रैल 1932 को दिल्ली के अखिल भारतीय कांग्रेस महाधिवेशन में तारापुर के अमर शहीदों के प्रति श्रंद्धाजलि अर्पित की गई थी. 15 फरवरी को संपूर्ण देश में तारापुर दिवस प्रतिवर्ष मानाने का निर्णय लिया गया था. तारापुर शहीद दिवस मनाने का सिलसिला 1947 तक जारी रहा. लेकिन आज़ादी के बाद इसे भुला दिया गया.

शहीदों की यादव में बनाया गया स्मारक भवन

अब शहीदों की याद में तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक भवन बना हुआ है और 15 फरवरी को लोग यहां तारापुर दिवस मनाते हैं. क्षेत्र के युवा सामाजिक कार्यकर्ता ने इसे नया आयाम दिया है और तारापुर शहीद दिवस को व्यापक रूप से मनाने की शुरुआत की है. इसके लिए वर्ष 2016 में तिरंगा यात्रा, साल 2017 में मशाल जुलुस, 2018 में तारापुर से मुंगेर तक बाइक रैली जिसमे हज़ारों युवा बिहार भर से शामिल हुए थे और यह 65 किमी लम्बी देश कि सबसे लम्बी बाईक रैलियों में से एक थी.

बिहार सरकार ने उठाया कदम

बिहार सरकार ने इसे ऐतिहासिक स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया. तारापुर थाना के सामने शहीद भवन पार्क में 34 बलिदानों की प्रतिमा स्थापित की गई और ऐतिहासिक थाना भवन को स्मारक रूप दिया गया है. यहां पहचान किए गए 13 शहीदों की आदम कद प्रतिमा लगाई गई है और 21 अज्ञात की म्यूरल यानी भित्ति या दीवार भी लगयी गयी है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें