भभुआ. जिले से गुजरने वाले 610 किलोमीटर लंबे वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे के निर्माण में कैमूर जिले के जंगल की जमीन भी इस्तेमाल की जायेगी. लेकिन, जब तक वन प्रमंडल की जमीन को लेकर केंद्र की हरी झंडी नहीं मिलती है, तब तक वन प्रमंडल कैमूर की जमीन पर एक्सप्रेसवे का निर्माण आरंभ नहीं कराया जा सकेगा. गौरतलब है कि भारत माला परियोजना के तहत वाराणसी से लेकर कोलकाता तक बनाये जाने वाले एक्सप्रेसवे में अभी भी रोड़े ही रोड़े दिखायी दे रहे हैं. बात चाहे झारखंड के वन प्रमंडल और कैमूर के वन प्रमंडल से गुजरने वाले जमीन की हो या फिर एक्सप्रेसवे निर्माण को लेकर किये गये भू-अधिग्रहण में किसानों के उचित मुआवजा की मांग की. ये सारे मुद्दे अभी भी उलझे हुए हैं. इधर, इस संबंध में जब एनएचएआइ के अभियंता शशांक शेखर से बात की गयी, तो उनका कहना था कि फारेस्ट प्रोटेक्शन एरिया की भी कुछ जमीन एक्सप्रेसवे निर्माण में जा रही है, अभी कितनी जमीन जायेगी यह मैं नहीं बता सकता, क्योंकि मैं आज अवकाश पर हूं. उन्होंने बताया कि फारेस्ट प्रोटेक्शन की इस जमीन का मामला राज्य स्तर पर लंबित चल रहा है. चीफ कंजरवेटर को प्रस्ताव संभवत: वन विभाग द्वारा भेज दिया गया है, लेकिन अभी कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिला है. गौरतलब है कि एनएचएआइ को अगर एक्सप्रेसवे निर्माण में वन भूमि की जरूरत है, तो प्रावधान के तहत उसके एवज में गैर वन भूमि वन विभाग को उपलब्ध करायी जाती है. इसके बाद एनएचएआइ को राज्य सरकार के स्तर से जिला स्तर पर वन भूमि के बदले अन्य भूमि वन विभाग को उपलब्ध करायी जाती है, जिसकी प्रक्रिया पूरी होने के बाद सड़क निर्माण का रास्ता साफ हो जाता है. कैमूर से गुजर रहे वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे के निर्माण में एनएचएआइ को एक हेक्टेयर फारेस्ट प्रोटेक्शन के जमीन की दरकार है. इस संबंध में जब जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी चंचल प्रकाशम से बात की गयी, तो उन्होंने बताया कि वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे के निर्माण में वन विभाग की एक हेक्टेयर जमीन लिये जाने का प्रस्ताव है, जिसके बदले जिला प्रशासन द्वारा वन विभाग को दूनी जमीन यानी दो हेक्टेयर जमीन उपलब्ध कराये जाने की अनुशंसा कर दी गयी है, जिसे बिहार सरकार को भेजा जा चुका है. यहां से अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक सह मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक बिहार के स्तर से केंद्र सरकार के ट्रिब्युनल को अनुशंसा भेज दी गयी है. लेकिन, अब केंद्र सरकार के एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा जब तक अनुमति नहीं दी जाती है, तब तक अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि वन प्रमंडल कैमूर के फारेस्ट प्रोटेक्शन की जमीन जिले के चांद, चैनपुर और भभुआ प्रखंड में जहां पुलियों का निर्माण कराया जाना है, वहां एक्सप्रेसवे में जा रही है. इन्सेट कैमूर पहाड़ी शृंखला में सुरंग का भी कराया जाना है निर्माण भभुआ. भारत माला परियोजना के तहत बनाये जाने वाले वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे के निर्माण में कैमूर के पहाड़ी शृंखंला में एक्सप्रेसवे के लिए सुरंग का भी निर्माण कराया जाना है. गौरतलब है कि कैमूर की विध्य पर्वतमाला की शृंखला रोहतास, सोनभद्र, पलामू और यूपी के बार्डर क्षेत्रों से आगे तक फैली हुई है. इधर, इस संबंध में जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी चंचल प्रकाशम ने बताया कि एक्सप्रेसवे निर्माण में बनाये जाने वाली सुरंग पहाड़ियों के बीच से निकाली जायेगी. हालांकि, कैमूर के पहाड़ी शृंखला में इस सुरंग का निर्माण नहीं होना है. लेकिन, कैमूर के ही पहाडी शृंखला से लगे रोहतास के पहाड़ी क्षेत्र में इस सुरंग का निर्माण कराया जाना है. इधर, मिली जानकारी के अनुसार, बिहार के कैमूर पहाड़ी में पांच किलोमीटर लंबी सुरंग बनायी जानी है, जो सोन नदी को पार करके सासाराम से औरंगाबाद जिले में प्रवेश करेगी. इसे लेकर कैमूर पहाड़ी में भी पांच हेक्टेयर जमीन की दरकार एनएचएआइ को बतायी जाती है. इन्सेट 2 कैमूर के 38 गांवों से गुजरेगा वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे भभुआ. भारत माला परियोजना के तहत बनाये जाने वाला छह लेन का वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे कैमूर के 38 गांवों से गुजरने वाला है. यह एक्सप्रेसवे उत्तरप्रदेश के बाद जिले में चांद प्रखंड के गोई गांव में प्रवेश करेगा. यहां से होते हुए जिगना, खांटी, बघैला, सिहोरियां, पिपरियां, मोरवा से होकर चैनपुर प्रखंड के सिरबिट, खखरा, मसोई, सिंकदरपुर, मानपुर, दुलहरा होते भभुआ के मानिकपुर, देवर्जीकला, बेतरी, कुडासन, सारंगपुर, पलका, सीवों, कुश डिहरा, माधवपुर, धरवार, सेमरा से होते हुए भगवानपुर के अकोढी, ददरा, मेहंदवार तथा रामपुर प्रखंड के दुबौली, पसाई, बसुहारी, सोनरा, अकोढी, पछहरा, गंगापुर, बसनी, ठकुरहट, सवार और निसिजा होते हुए रोहतास जिले में चला जायेगा. इस तरह कैमूर के पांच अंचलों के 93 मौजों से होकर यह एक्सप्रेसवे कैमूर जिले में कुल 52 किलोमीटर का सफर तय करेगा.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है