भभुआ सदर. गुरुवार शाम घड़ी की सुइयां एक दूसरे के विपरीत होते ही सासाराम सुरक्षित लोकसभा सीट पर कल एक जून को होनेवाले मतदान के लिए कई दिनों से चला आ रहा लोकसभा चुनाव 2024 का शोर अंतत: थम गया है. प्रचार का शोर थमते ही इससे लोगों ने राहत की सांस ली है. हालांकि, इस बार चुनाव प्रचार पहले की भांति शोरगुल वाला नहीं रहा था. अब 48 घंटे पहले बाहरी तौर पर चुनाव प्रचार अवश्य बंद हो गया, लेकिन अंदरूनी हलचल बढ़ गयी है. चुनावी शोर थमने के साथ ही अन्य जिलों से चुनाव प्रचार करने आये विभिन्न पार्टियों के कार्यकर्ता अपने जिलों के लिए रवाना हो गये. अब प्रत्याशी और उनके समर्थक डोर-टू-डोर प्रचार में जुट गये हैं. इधर, चुनाव आयोग की टीम भी विभिन्न पार्टियों के नेताओं के किये जा रहे चुनाव प्रचार पर कड़ी निगाह रख रही हैं. विशेषकर प्रत्याशियों की हर गतिविधि पर कैमरे से नजर रखी जा रही है, जिसके चलते चुनाव आयोग की टीम को धोखा देना प्रत्याशियों के लिए संभव नहीं हो पा रहा है. इधर, चुनाव प्रचार थमते ही जिला पुलिस भी पूरी तरह सक्रिय हो गयी. जिला के साथ लगते उत्तर प्रदेश की सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी है. यहां से गुजरने वाले वाहनों की कड़ी चेकिंग की जा रही है, ताकि शराब व अन्य प्रकार के आपत्तिजनक व नशीले पदार्थ जिला में न आ सकें. वहीं, रात में पुलिस गश्त बढ़ा दी गयी, ताकि प्रत्याशियों के समर्थक नकदी व अन्य प्रलोभन आदि के जरिये मतदाताओं को न लुभा सकें. वैसे, लाइसेंसी हथियार पहले ही पुलिस जमा करा चुकी है. = आज अपनायेंगे साम-दाम-दंड भेद की नीति सासाराम लोकसभा सुरक्षित सीट के लिए आज की रात कयामत की रात मानी जा रही है. क्योंकि, यह अंतिम दौर किसी के भी पक्ष में माहौल बनाने व बिगाड़ने में अहम साबित होता है. मतदाताओं को अपने पाले का हिस्सा बनाने के लिए प्रत्याशियों द्वारा साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाकर किसी भी तरह से वोट हासिल करने के प्रयास किये जायेंगे. सभी प्रत्याशी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के साथ ही विपक्षी नेताओं के किये जाने वाले इस तरह के प्रयासों पर भी नजर रखेंगे. हालांकि, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी भी उनकी योजनाएं विफल करने के लिए पूरी तरह सजग हैं. शराबबंदी से पूर्व जिले में मतदान से पहले की रात जमकर शराब बांटी जाती थी, लेकिन, शराबबंदी हो जाने और पुलिस प्रशासन की सख्ती की वजह से इस बार ऐसी कोई संभावना फिलहाल नहीं दिख रही है. वैसे, इस बार चुनाव आयोग की सख्ती के बाद स्थिति में कितना सुधार आता है, यह देखने वाली बात होगी. = आज रुठों को मनाने की होगी कोशिश, देंगे दुहाई प्रचार खत्म होने के बाद अब चर्चा इसकी भी है कि अंतिम रात मतदाताओं को रिझाने के लिए कुछ भी संभव हो सकता है. फिर चाहे वह धर्म व रिश्तों की दुहाई हो या धन का प्रलोभन या फिर किसी जरूरी कार्यों को पूरा करने का वचन ही क्यों न हो. मतलब सामने वाला जिस माध्यम से प्रभावित हो सकेगा, उसे प्रभावित करने की कोशिश उसी माध्यम से की जा सकती है. राजनीति समझ की परख रखने वाले कुछ लोगों का कहना था कि इस बार के चुनाव में अंदर ही अंदर तारों की छांव में कहीं रुठे को मनाने की कोशिश, तो कहीं रिश्तेदारों को माध्यम बनाकर नजदीकियां बढ़ाने का काम प्रत्याशियों द्वारा बखूबी हुआ है. इतना ही नहीं किसी को वायदा किया गया कि सरकार बनने के बाद बेटे की नौकरी पक्की है. एक नेता जी के मुताबिक अंतिम दौर में चुनाव अकसर तेजी पकड़ता है. माहौल बनने व बिगड़ने में यह दौर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार कोई नयी बात नहीं है, खुलकर कुछ नहीं होता, लेकिन छिप छिपाकर रात के अंधेरे में बहुत कुछ होता है.
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