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हसनगंज में काले धान की खेती किसानों को कर रही आकर्षित

काले धान की खेती के लिए प्रखंड क्षेत्र की जमीन है अनुकूल

हसनगंज. प्रखंड क्षेत्रों में काला धान की चमक इन दिनों किसानों को आकर्षित करने लगी है. नतीजतन इसकी खेती का रकवा बढ़ने लगा है. इस इलाके के लिए काला धान खेती के लिए मिट्टी काफी अनुकूल मानी जा रही है. कम पानी में बेहतर उपज के कारण किसान इस प्रजाति को अपनाने लगे हैं. ढेरुआ पंचायत के सपनी गांव निवासी किसान सह पूर्व मुखिया विपिन सिंह ने एक एकड़ भूमि पर काला धान की खेती किया है. जो अन्य किसानों के लिए प्रेरणादायक बने हुए हैं. उन्होंने बताया कि काला धान की प्रजाति का चावल भी काला होता है. यह खुशबूदार चावल होता है. इस धान की चावल का मांग स्थानीय बाजार में अच्छा है. यह 100 रुपये से लेकर 120 रुपये तक बिकने वाली चावल है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर खेती किया जाए तो अन्य धान के तुलना में यह काला धान का अधिक उत्पादन और खेती करना साधारण है. कम खर्च और जैविक खाद से बेहतर उपज होता है. बताया आंधी तूफान बारिश में भी यह धान को कोई नुकसान नहीं होता है. अन्य हाइब्रिड धान आंधी तूफान बरसात में खेतों में गिरकर कर नुकसान हो जाता है. काला धान की चावल एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर माना जाता है. इसमें कॉफी से भी ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. एंटी ऑक्सीडेंट हमारे बॉडी को डिटॉक्स और क्लीन करने का काम करता है. काला धान की चावल कई बीमारियों को दूर रखने में है सहायक यूरिया एवं अन्य उर्वरक के प्रयोग से पौधे और ज्यादा लंबे होने की संभावना रहती है. जैविक तरीके से काला धान की खेती काफी बेहतर साबित होती है. काले धान से निकलने वाले चावल की बाजार में इसलिए ज्यादा डिमांड रहती है क्योंकि इसमें विटामिन बी, विटामिन ई, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और कई पोषक तत्त्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. ऐसे में चिकित्सकों की सलाह पर लोग मोटी रकम खर्च कर काले चावल का सेवन कर रहे हैं. शुगर के मरीजों को चावल खाने से मना किया जाता है लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि काला चावल खाने से शुगर की बीमारी नियंत्रित रहती है और ये ब्लड प्रेशर भी मेंटेन कर रखता है. इसके अलावा काला धान के चावल खाने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.

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