कटिहार. नॉर्थ ईस्टर्न बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के महासचिव भुवन अग्रवाल ने बताया कि बिहार के उपमुख्यमंत्री, वित्त एवं वाणिज्य-कर मंत्री सम्राट चौधरी को स्मार पत्र पटना में स्मार पत्र सौंपाकर ई-वे बिल कानून को व्यावहारिक बनाने की जरूरत पर बल दिया. चैंबर अध्यक्ष अशोक अग्रवाल के निर्देश पर पटना में एक जुलाई को जीएसटी से जुड़े सवालों को लेकर विभिन्न व्यवसायिक संगठनों के साथ पटना में राज्य सरकार के उपमुख्यमंत्री, वित्त एवं वाणिज्य-कर मंत्री और विभागीय उच्चाधिकारियों के साथ चैंबर प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद यह जानकारी दी. इस अवसर पर चैंबर प्रतिनिधियों में शामिल विजय कुमार अग्रवाल और कुमार एकलव्य ने शॉल उढ़ाकर मंत्री का स्वागत किया. महासचिव ने बताया कि जीएसटी भुगतान की पूरी प्रक्रिया को सरल बनाने और इसमें पारदर्शिता लाने की जरुरत है. जीएसटी कानून के तहत एक लाख या उससे अधिक मूल्य का माल खरीदगी पर ई-वे बिल की आवश्यकता होती है. व्यवहार में देखा गया है कि छोटे एवं मझले व्यापारी समूह बनाकर स्थानीय मालवाहक गाड़ी से सामूहिक खरीदकर परिवहन करते हैं. इसी क्रम में विभागीय चेकिंग के दौरान ई-वे बिल की मांग की जाती है. जबकि परिवहन माल प्रत्येक व्यापारी का एक लाख से कम का होता है. ऐसी स्थिति में जुर्माना होने पर छोटे एवं मझले व्यापारियों पर अतिरिक्त भार पड़ता है. इस कानून को और अधिक व्यवहारिक बनाने की आवश्यकता है. जीएसटी को लेकर जो स्क्रूटनी की जाती है या नोटिस की जाती है वो कंप्यूटर से रेंदुम सलेक्ट होकर फेसलेस की हेयारिंग होनी चाहिए. ईंट भट्टा उद्योग में खनन विभाग को दिए जाने वाले कर (रोयल्टी) पर वाणिज्य कर विभाग द्वारा 18% जीएसटी की मांग की जा रही है. जो न्यायसंगत नहीं है. कोयले के आयात पर ईंट (कच्ची ईंट का निर्माण खुले आसमान के नीचे होता है. बारिश में कच्ची ईंट के गल जाता है एवं पानी में कोयला बह जाता है. जो उत्पादन की गणना को प्रभावित करता है. ऐसे में मनमाने तरीके से अत्यधिक टैक्स की जवाबदेही बनाकर वाणिज्य कर विभाग द्वारा वसूली की जा रही है. गणना एवं कर वसूली को न्यायसंगत बनाने की आवश्यकता है. 53वीं जीएसटी काउन्सिल की बैठक में लिये गये फैसले अंडर सेक्शन 73 में सत्र 2017-18 से लेकर 2019-20 तक में ब्याज और जुर्माना को हटाने की बात की गयी है. इस संदर्भ में कहना है कि जिन व्यापारियों ने वर्णित अवधि में कर के साथ ब्याज और जुर्माना भी जमा कर दिया है तो वह राशि व्यापारियों को मिलने का क्या प्रावधान होगा. कई व्यापारी किसी कारणवश पिछला जीएसटी रिटर्न दाखिल नहीं कर पाए हैं. ऐसे व्यवसायियों के लिए रिटर्न दाखिल करने के लिए तय जुर्माना राशि 50 रुपये प्रतिदिन को घटाकर एक निश्चित न्यूनतम राशि जुर्माना लेकर व्यापार करने का मौका उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
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