कटिहार. हृदयगंज में चल रहे भागवत कथा के पांचवें दिन बुधवार को दीदी श्यामा किशोरी ने एकल परिवार और संयुक्त परिवार के बीच का तुलनात्मक ज्ञान दिलवाया. संयुक्त परिवार समाप्त होने से आज के बच्चों में अनुशासन की पूर्णता अभाव हो रहा है. हर मां चाहती है कि उसके पुत्र श्रवण कुमार बने लेकिन कोई मां यह नहीं चाहती कि उसके पति श्रवण कुमार बने. इसका मुख्य कारण यह है इस संयुक्त परिवार में कार्य करना पड़ता है, जबकि एकल परिवार में अपना मनमर्जी संयुक्त परिवार में सबों का सम्मान सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार करना पड़ता है. जबकि एकल परिवार में सनातन धर्म का परंपरा का निर्वहन करने की बाध्यता नहीं होती है. एकल परिवार में जब मन हुआ खाना बनाए जब मन हुआ सोए रहे, जबकि संयुक्त परिवार में ऐसा नहीं होता है. संयुक्त परिवार के सदस्यों को विभिन्न कार्य करने के लिए नियत समय पर जाना पड़ता है. इसलिए ससमय सारे काम को करना बहुत जरूरी है. दीदी ने आगे यही समझाया पांडव पांच भाई थे और पांचो का संयुक्त परिवार इसलिए पांचो भाइयों में अथाह प्रेम था, और वह एक दूसरे के बिना अपने अस्तित्व को नकार देते थे. इसलिए उन लोगों के बीच प्रेम का सागर बहता था, जबकि आज के समय में दो भाई भी खुशीपूर्वक एक साथ नहीं रह पाते. जब दोनों भाई कुंवारे रहते हैं तो दोनों के बीच अथाह स्नेह और प्रेम बना हुआ रहता है, कभी आपने नहीं सुना होगा कि कुंवारे पुत्र के माता-पिता को वृद्ध आश्रम में रहना पड़ता है. लेकिन शादीशुदा पुत्र के पिता माता को वृद्ध आश्रम में जाना पड़ता हैं. आखिर इस तरह की मानसिकता क्यों हो. चुकी लड़कियां का हम इसका कारण यह है कि लड़कियों जिस घर से आती हैं वह एकल परिवार की होती है, लड़के जिस परिवार में रहते हैं वह भी एकल परिवार के रहते हैं. जिसका परिणाम यह होता है कि संयुक्त परिवार के बारे में एक दूसरे को जानकारी नहीं हो पाता, इसलिए सभी से मेरा आग्रह है कि जिस तरह आप अपने पुत्र को श्रवण कुमार के रूप में देखना चाहते हैं ठीक उसी तरह अपने पति को भी आप श्रवण कुमार बनायें.
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