कटिहार. आधुनिकता में भारतीय परंपरा विलुप्त होते जा रही है. दीपावली पर जहां आदिकाल से मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा रही है. अब झालराें की चकाचौंध रोशनी के बीच युवा इस परंपरा से दूर हो रहे हैं, जिसका नतीजा है कि एक ओर जहां भारतीय परंपरा को बचाने की चुनौती है. वहीं दूसरी ओर मिट्टी के दीये बनाने वाले यह समाज दूसरे धंधे की ओर मुखातिब हो रहे हैं. दीपावली दीयों का त्योहार है. आदिकाल से दीपावली पर मिट्टी का ही दीपक जलाने की परंपरा है. मिट्टी के दीयों को कतारबद्ध सजाना उसमें तेल भरना, बाती रखना और फिर उसे प्रज्ज्वलित करना अद्भूत अनुभव है. मिट्टी के दीयों काे जलते हुए देखना एक सुखद अहसास है. लेकिन बीते दो दशक के दौरान कृत्रिम लाइट पर अधिक निर्भर हो गये हैं. इन परिस्थितियों को देखते हुए इस दीपावली पर हमें मिट्टी का दीपक जलाने का संकल्प लेना है. इसी उद्देश्य के साथ प्रभात खबर की ओर से चलाये जा रहे प्रभात अभियान आओ मिट्टी का दीया जलायें पर्यावरण बचाएं के क्रम में शनिवार को सिरसा स्थित कर्नल एकेडमी के स्कूली बच्चों को दीपावली पर पटाखे नहीं फोड़ने व मिट्टी के दीप जलाने का संकल्प दिलाया गया. विद्यालय के प्राचार्य देवेन्दु कुमार के नेतृत्व में विद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं ने यह शपथ ली की मिट्टी के दीये प्रज्ज्वलित कर दीपावली मनायेंगे व पर्यावरण बचायेंगे. कार्यक्रम में बच्चों ने कहा कि तेज आवाज के पटाखों से भी परहेज करेंगे. इस अवसर पर मिट्टी के दीये जलाने से लाभ व झालरों को दीपोत्सव पर लगाने के नुकसान से अवगत कराते हुए सिरसा स्थित कर्नल एकेडमी में स्कूली बच्चों को शपथ दिलायी गयी. स्कूली बच्चों ने भी उत्साह पूर्वक इस दीपावली मिट्टी के दीये जलाने और तेज आवाज वाले पटाखे फोड़ने से दूर रहने का संकल्प लिया. मिट्टी के दीये जलाने से लाभ
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