कटिहार. दीपावली का त्योहार मिट्टी के दीये से जुड़ा हुआ है. यह हमारी संस्कृति में रचा-बसा हुआ है. दीया जलाने की परंपरा आदि काल से रही है. भगवान राम की अयोध्या वापसी की खुशी में अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाया था, तब से ही कार्तिक महीने में दीपों का यह त्योहार मनाये जाने की परंपरा रही है. पिछले दो दशक के दौरान कृत्रिम लाइटों का क्रेज बढ़ा है. आधुनिकता की आंधी में हम अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे चलाने लगे हैं. इससे एक तरफ मिट्टी के कारोबार से जुड़े कुम्हारों के घरों में अंधेरा रहने लगा, तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलानेवाले पटाखों को अपना कर अपनी सांसों को ही खतरे में डाल दिया. अपनी परंपराओं से दूर होने की वजह से ही कुम्हार समाज अपने पुश्तैनी धंधे से दूर होता जा रहा है. दूसरे रोजगार पर निर्भर होने लगे हैं. वर्तमान में अपनी परंपरा को बरकरार रखने और पर्यावरण बचाने के लिए इस दीपावली मिट्टी की दीये जलाने के प्रति लोगों खास कर बच्चों व युवाओं काे जागरूक करने के लिए प्रभात खबर अभियान चला रहा है. इसी से जुड़ते हुए मिट्टी के दीप जलाकर दीपावली मनाने व पटाखे नहीं चलाने का संकल्प शहर के शिक्षाविदों ने लिया है. अलग-अलग अंगीभूत महाविद्यालयों के प्राचार्यों ने आमजनों से इस दीपावली में मिट्टी के ही दीये जलाने का आह्वान किया है.
दिवाली पर मिट्टी के दीये एक छोटा कदम, बड़ा बदलाव : डॉ संजय सिंह
पंरपरा व पर्यावरण के संरक्षण के लिए मिट्टी के दीये जलाना है. इनसे कोई प्रदूषण नहीं होता. कृत्रिम रोशनी आंखों और त्वचा के लिए हानिकारक होती है. मिट्टी के दीये की रोशनी आंखों को आराम पहुंचाती है. मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति के एक अहम अंग हैं. दिवाली पर इसे जलाकर हम अपनी परंपराओं को याद रखते हैं. मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों को प्रोत्साहित करने का भी यह अच्छा मौका है. आइये, इस दीपावली, हम सभी मिलकर मिट्टी के दीये जलाएं और एक स्वच्छ और हरा-भरा पर्यावरण बनाने में अपना योगदान दें.
डॉ संजय कुमार सिंह, प्राचार्य, डीएस कॉलेज
भारतीय संस्कृति में शुभ व पवित्र माना जाता है मिट्टी का दीप : डॉ हरेंद्र
दिवाली में मिट्टी के दीये जलाना हमारी संस्कृति और प्रकृति से जुड़ने का बहुत ही सुगम साधन है. यह भारतीय संस्कृति में बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है. मिट्टी के दीये प्रेम, समरसता और ज्ञान के प्रतीक हैं. सामाजिक व आर्थिक आधार पर भी दीयों की खूबसूरती जगजाहिर है. इस बार दीपावली के दिन मिट्टी के दीये जलाने का संकल्प लेकर संस्कृति का बचाव करना है. सभी लोग मिट्टी के दिये ही जलाएं.
डॉ हरेंद्र कुमार सिंह, प्राचार्य, केबी झा कॉलेज
आधुनिकता के दौर में दीपोत्सव पर मिट्टी की दीये जलाने की परंपरा विलुप्त हो रही है. इससे सामाजिक रूप से व पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है. पर्यावरण को बचाने के लिए जरूरी है आमजन दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने व पटाखे नहीं चलाने का संकल्प लें. इस दीपावली मिट्टी के दीये जलाएं, तभी पर्यावरण बचाने में हम सफल हो पायेंगे.
डॉ दिलीप कुमार यादव, प्राचार्य, आरडीएस कॉलेज, सालमारीडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है