सूरज गुप्ता, कटिहार. अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजाद कराने के लिए यूं तो देशभर में संग्राम छिड़ा हुआ था. इससे कटिहार भी अछूता नहीं रहा है. स्वाधीनता संग्राम में कटिहार जिला का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से यहां के लोगों ने आजादी की लड़ाई में अलग-अलग तरीके से अपना योगदान दिया. कई तो आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दे दी है. स्वाधीनता संग्राम के परिप्रेक्ष्य में कटिहार जिले के लिए दो महत्वपूर्ण तारीख है, जो ऐतिहासिक भी है. खासकर 12 व 13 अगस्त को कटिहार के क्रांतिवीरों के नामों के लिए जाना जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति के लिए अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान करते हुए करो या मरो का नारा दिया था. तब न केवल कटिहार जिला के सपूतों पर उसका प्रभाव पड़ा. बल्कि आम लोग भी भारत छोड़ो आंदोलन के नारे से प्रभावित थे. गांधी के इस नारों का छात्रों पर भी व्यापक प्रभाव था. यही वजह है कि 12 अगस्त 1942 को जिले के कई हिस्सों में स्वाधीनता संग्राम में शामिल वीर सपूतों ने अंग्रेजों की गोली से शहीद हो गये थे. जबकि उसके अगले ही दिन 13 अगस्त 1942 को कटिहार शहर सहित कई इलाके में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए यहां के नौजवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. स्वाधीनता संग्राम में जिस तरह छात्र ध्रुव कुंडू ने गोली खाकर अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये. वह आज भी छात्रों और युवाओं के लिए प्रेरणादायी बना हुआ है. स्वाधीनता संग्राम के आखरी दशक में कटिहार के लोगों ने अपने अपने तरीके से योगदान दिया. देश के रणबांकुरों की वजह से 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों के गुलामी से मुक्त हुआ. इस बार भारत के स्वाधीनता के 77 वर्ष पूरे हो रहे है. साथ ही आजादी के इस आंदोलन में कटिहार के वीर सपूतों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. खास कर 13 अगस्त 1942 को तो यहां के कई वीर सपूत ने जंग-ए-आजादी में अपनी शहादत दे दी. यह बात भी सही है कि इस अगस्त महीने को अगस्त क्रांति के रूप में भी जाना जाता है. इस बार आजादी की 77 वीं सालगिरह है. इसलिए शनिवार 13 अगस्त का दिन कटिहार के लिए खास मायने रखता है.
स्वाधीनता संग्राम में आज के दिन का है खास महत्व
देश की स्वाधीनता संग्राम में यूं तो हर तबके के लोगों ने अपनी भागीदारी दी है. अपने समय के युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया. बड़ी संख्या में युवाओं ने तो आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते शहीद हो गये. हालांकि देश की जंग-ए-आजादी में यूं तो हर दिन व महीना का महत्व रहा है. पर अगस्त महीना का एक अलग ही महत्व है. वर्ष 1857 में सिपाही विद्रोह के जरिये देश में स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत हुई. उसके 90 वर्ष बाद यानी वर्ष 15 अगस्त 1947 में भारत गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुआ. इस दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों में आजादी के दीवानों ने अपने अपने हिसाब से जंग-ए-आजादी में भागीदारी दी. कटिहार जिला भी इसमें पीछे नहीं रहा. स्थानीय बुजुर्गों व जानकार बताते हैं कि कटिहार के लोग भी अपने-अपने हिसाब से देश की आजादी के लिए काम कर रहे थे. जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कटिहार पहुंचे. तब यहां के युवाओं एवं छात्रों में देश को आजादी दिलाने के लिए एक दीवानगी छा गयी. यहां के लोगों ने अलग-अलग दस्ता तैयार कर आजादी के लिए काम किया. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कटिहार जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में भी जबरदस्त आंदोलन हुआ. जानकारों की मानें तो जब गांधी जी ने बम्बई में 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का जयघोष किया. तब कटिहार के लोगों पर भी उसका व्यापक असर पड़ा. यही वजह है कि भारत छोड़ो आंदोलन के जयघोष के बाद कटिहार में बड़ी संख्या में लोग आजादी के आंदोलन से जुड़ गये. कई लोग हंसते हंसते अंग्रेजों की गोली के शिकार हो गए तो कई लोग भूमिगत व अप्रत्यक्ष रूप से आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है