प्रसव के 24 घंटे बाद होती है सबसे अधिक महिलाओं की मौत किशनगंज.शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए बेहतर प्रसव एवं उचित स्वास्थ्य प्रबंधन जरूरी है. प्रसव पूर्व जाँच से ही गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की सही जानकारी मिलती है. गर्भावस्था में बेहतर शिशु विकास एवं प्रसव के दौरान होने वाले रक्तश्राव के प्रबंधन के लिए महिलाओं में पर्याप्त मात्रा में खून होना आवश्यक होता है. जिसमें प्रसव पूर्व जाँच की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. एनीमिया प्रबंधन के लिए प्रसव पूर्व जाँच के प्रति महिलाओं की जागरूकता न सिर्फ एनीमिया रोकथाम में सहायक होती है. बल्कि, सुरक्षित मातृत्व की आधारशिला भी तैयार करती है. ऐसे में प्रसव पूर्व जांच की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि यह मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इसलिए, महिलाओं को इसके जागरूक करने की जरूरत है. क्योंकि, मातृ-मृत्यु दर को कम करने और रोकने के लिए जागरूकता बेहद जरूरीहै.
मौत का कारण पता होने से रोकी जा सकती है घटना की पुनरावृति
सिविल सर्जन राजेश कुमार ने मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिये इसकी रिपोर्टिंग प्रक्रिया को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि अगर मौत के मामलों का पता हो तो इसके पीछे के कारणों का पता लगाया जा सकता है. कारण अगर मालूम हो तो फिर इसकी समीक्षा करते हुए इसके निदान को लेकर प्रभावी कदम उठाये जा सकते हैं. इसलिये यह जरूरी है कि सरकारी व निजी अस्पतालों में ऐसे किसी भी मामले की तत्काल जानकारी जिला स्वास्थ्य विभाग को उपलब्ध कराये जायें. ताकि मौत के कारणों का पता लगाते हुए जरूरी पहल करते हुए ऐसे घटनाओं की पुनर्रावृति को रोका जा सके. डीआईओ डॉ देवेंदर कुमार ने कहा कि मातृ मृत्यु दर के मामलों में कमी लाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा सुमन कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है. इसके तहत अगर आशा कार्यकर्ता सहित अन्य क्षेत्र में किसी महिला के मौत की सूचना टॉल फ्री नंबर 104 पर देती हैं तो प्रोत्साहन राशि के तौर पर उन्हें 1000 रुपये देने का प्रावधान है. नोटिफिकेशन के लिये आशा कार्यकर्ताओं को 200 रुपये अतिरिक्त देने का प्रावधान है.प्रसव के 24 घंटे बाद होती है सबसे अधिक महिलाओं की मौत
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने कहा कि राज्य में 50 फीसदी मौत प्रसव के 24 घंटे बाद होती है. गर्भावस्था के दौरान 05 प्रतिशत, प्रसव के सात दिनों के अंदर 20 प्रतिशत व लगभग 05 प्रतिशत मौत प्रसव के एक सप्ताह के अदंर होती है. इस पर प्रभावी रोक के लिये मौत के कारणों की पड़ताल करते हुए इसके लिये प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है. जो तब संभव हो सकता है जब संबंधित मामलों की समुचित जानकारी स्वास्थ्य विभाग के पास हो. शिशु मृत्यु दर से संबंधित मामलों पर सदर अस्पताल के प्रभारी उपाधीक्षक डॉ उर्मिला कुमारी ने कहा कि प्रसव के दौरान अगर जटिलता महसूस हो ऐसे मामलों में मरीज को रेफर करने में किसी तरह की देरी नहीं की जानी चाहिये. उन्होंने रिपोर्टिंग की निर्धारित प्रक्रिया को अपनाते हुए शिशु की मौत के कारणों की समुचित पड़ताल की जानी चाहिये. जो शिशु मृत्यु दर के मामलों में कमी लाने के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है