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जिले में कालाजार खोजी अभियान जारी: 07 संभावित मरीज चिह्नित

कालाजार को वैज्ञानिक रूप से विशरल लिश्मैनियासिस कहा जाता है. यह एक घातक परजीवी रोग है.

किशनगंज. कालाजार को वैज्ञानिक रूप से विशरल लिश्मैनियासिस कहा जाता है. यह एक घातक परजीवी रोग है. यह मुख्यतः बालू मक्खी के काटने से फैलता है. यह बीमारी लंबे समय तक उपचार न मिलने पर जानलेवा साबित हो सकती है. दो सप्ताह से अधिक बुखार, भूख में कमी, पेट के आकार में वृद्धि, वजन घटने और त्वचा पर चकत्ते कालाजार के प्रमुख लक्षण हैं. अगर समय रहते इन लक्षणों की पहचान और उपचार न किया जाए, तो यह पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) में बदल सकता है, जो त्वचा को स्थायी रूप से प्रभावित करता है. जिले को इस बीमारी से मुक्त करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा 25 नवंबर 2024 से कालाजार खोजी अभियान शुरू किया गया है, जो 01 दिसंबर 2024 तक चलेगा. इस अभियान के तहत 32866 की जनसंख्या और 6214 घरों में सर्वेक्षण किया जाएगा.

अब तक 07 संभावित मरीज मिले

स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने अभियान के दौरान सभी प्रखंडों से अब तक कुल 07 संभावित कालाजार मरीजों की पहचान की है. इन मरीजों को जल्द ही चिकित्सकीय जांच और इलाज के लिए अस्पताल भेजा जाएगा. सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि जिले को कालाजार मुक्त बनाने के लिए लोगों को जागरूक होने की आवश्यकता है. उन्होंने बताया कि नमी और अंधेरे वाले स्थान बालू मक्खियों के प्रजनन के लिए उपयुक्त होते हैं. मवेशियों के बथान, नाले और घरों के आसपास गंदगी कालाजार के प्रसार में सहायक होती है. घर और आस-पास सफाई रखना अत्यंत आवश्यक है.

संक्रमित मरीजों को मिलेगी सहायता राशि

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि सरकार कालाजार पीड़ितों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज के साथ ही श्रम क्षतिपूर्ति सहायता राशि भी प्रदान करती है. जिला प्रभारी कंसल्टेंट अविनाश राय ने बताया कि कालाजार के प्रति मरीज को 7100 रुपये दिए जाते हैं, जिसमें 500 रुपये भारत सरकार और 6600 रुपये राज्य सरकार की ओर से मुख्यमंत्री प्रोत्साहन योजना के तहत दिए जाते हैं. यह सहायता राशि मरीजों और उनके परिवारों के लिए आर्थिक राहत प्रदान करती है.

रोगी की पहचान और इलाज की प्रक्रिया

डॉ राजेश कुमार ने कहा कि अभियान के दौरान 15 दिनों से अधिक बुखार से पीड़ित और एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक न हो रहे मरीजों की पहचान की जाएगी. साथ ही, ऐसे मरीज जिन्हें पेट का बड़ा होना, भूख न लगना या त्वचा का रंग काला पड़ना जैसे लक्षण दिखें, उनकी जांच आरके-39 किट से की जाएगी. जांच में पुष्टि होने पर इन मरीजों को तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कर उपचार शुरू किया जाएगा.

2023 में : वीएल के 3 और पीकेडीएल के 2 मरीज दर्ज हुए

डॉ. मंजर आलम ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के प्रयास और जागरूकता अभियानों का यह सकारात्मक परिणाम है. उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि जिले को पूरी तरह कालाजार मुक्त बनाया जाए

अभियान की सफलता के लिए प्रशिक्षित टीम

खोजी अभियान को सफल बनाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं और फैसिलिटेटरों को प्रशिक्षण दिया गया है. ये कार्यकर्ता घर-घर जाकर संभावित मरीजों की पहचान कर रही हैं. अभियान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करने के लिए प्लेसबैनर और प्रचार सामग्री का भी उपयोग किया जा रहा है.

जागरूकता ही सुरक्षा का उपाय

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने जिलेवासियों से अपील की कि वे इस अभियान का हिस्सा बनें और यदि किसी में कालाजार के लक्षण हों, तो तुरंत जांच कराएं. उन्होंने कहा कि समय पर पहचान और इलाज से कालाजार को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है. स्वास्थ्य विभाग का यह प्रयास जिले को स्वस्थ और कालाजार मुक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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