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पूर्वजों के स्मरण का समय होता है पितृपक्ष

आज के समय में भी लोग अपने माता-पिता और पूर्वजों को अपनी यादों में बसा कर रखते हैं

-श्राद्ध से कायम रहती है श्रद्धा.

-17 सितंबर से 02 अक्तूबर तक रहेगा पितृपक्ष.

किशनगंज

इस संसार में अगर भगवान से भी अधिक ऋण किसी का हम पर होता है तो वह है हमारे माता-पिता और हमारे पूर्वजों का ऋण.हमारे माता-पिता ही हमारे लिए हमारा पूरा संसार होते हैं. गणेश जी ने अपने माता-पिता के चारों तरफ चक्कर लगाकर यह सिद्ध किया था कि माता-पिता के ईर्द-गिर्द ही हमारी पूरी दुनिया है.आज के समय में भी लोग अपने माता-पिता और पूर्वजों को अपनी यादों में बसा कर रखते हैं. भारतीय संस्कृति में पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन की परम्परा है.श्रद्धापूर्वक मृतकों के निमित्त किए जाने वाले इस कर्म को श्राद्ध कहा जाता है और इस श्राद्ध को करने का सबसे सही समय पितृपक्ष को माना जाता है.अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक तर्पण देने का पर्व पितृ पक्ष कहलाता है.पितरों से तात्पर्य मृत पूर्वजों से है यानी लौकिक संसार से जा चुके माता,पिता,दादा,दादी, नाना,नानी आदि. शास्त्रों में इस पर्व का विशेष महत्व बताया गया है जिसमें संतानों से मिला तर्पण सीधे पुरखों को मिल जाता है.

पूर्वजों को स्मरण करने का समय होता है पितृपक्ष

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है.इस दौरान विधि-विधान और श्रद्धा भाव से पितरों की पूजा की जाती है.पितृ पक्ष के दौरान पितरों को तर्पण दिया जाता है.साथ ही पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने का भी विधान है,इस वर्ष मंगलवार 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत होगी. जिसका समापन दो अक्तूबर को होगा.माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती लोक पर आते हैं.

*पुरखों के आत्मा के शांति के लिए तर्पण जरूरी*

पुरोहित घनश्याम झा बतातें हैं कि गरुड़ पुराण में कहा गया है कि आयु: पुत्रान यश: स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलं श्रियम्, पशून सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृ जूननात अर्थात श्राद्ध कर्म करने से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, मोक्ष, स्वर्ग कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशुधन, सुख, धन व धान्य वृद्धि का आशीष प्रदान करते हैं.

यमस्मृति में लिखा है कि पिता,दादा,परदादा तीनों श्राद्ध की ऐसे आशा रखते हैं, जैसे वृक्ष पर रहते हुए पक्षी वृक्षों में लगने वाले फलों की. पितृ पक्ष में श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक यानी कुल 16 दिनों तक चलते हैं और इनमें श्राद्ध का पहला और आखिरी दिन काफी खास माना जाता है. पितृपक्ष में पूर्वजों को याद करके दान धर्म करने की परंपरा है.हिन्दू धर्म में इन दिनों का खास महत्व है. पितृ पक्ष पर पितरों की मुक्ति के लिए कर्म किए जाते हैं.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ नाराज हो जाएं तो घर की तरक्की में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं. यही कारण है कि पितृ पक्ष में पितरों को खुश करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं.

पितृ पक्ष का महत्व

मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. उनकी कृपा से जीवन में आने वाली कई प्रकार की रुकावटें दूर होती हैं. व्यक्ति को कई तरह की दिक्कतों से भी मुक्ति मिलती है.पुरोहित सरोज झा ने बताया कि श्राद्ध न होने स्थिति में आत्मा को पूर्ण मुक्ति नहीं मिलती.पितृ पक्ष में नियमित रूप से दान- पुण्य करने से कुंडली में पितृ दोष दूर हो जाता है. पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण का खास महत्व होता है.

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