मधेपुरा लोकप्रिय गजलकार दुष्यंत कुमार की जयंती की पूर्वसंध्या पर जन संस्कृति मंच के तत्वावधान में ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय मधेपुरा के सभागार में विचार गोष्ठी एवं कवि गोष्ठी आयोजित की गई. कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्य उपाध्यक्ष डॉ रामबाबू आर्य एवं मंच संचालन जिला संयोजक शंभूशरण भारतीय ने किया. कार्यक्रम की शुरुआत प्रमोद यादव एवं पुनीत पाठक के द्वारा जनवादी गीतों की प्रस्तुति से हुई. बीएनएमयू के पूर्व कुलपति प्रो डॉ राम किशोर प्रसाद रमण ने कहा कि दुष्यंत कुमार जितने प्रासंगिक अपने समय में थे, उससे कहीं अधिक आज प्रासंगिक हैं. उन्होंने मात्र 44 से 45 साल की छोटी सी उम्र में साहित्य की विविध विधाओं में जितना योगदान दिया, वह अविस्मरणीय है. दुष्यंत की कविता जन–जन की आवाज है. वह मानवीय संवेदनाओं के सभी आयामों को प्रस्तुत करते हुए जनपक्षधर मूल्यों की रक्षा करते हैं.
राज्य सचिव दीपक सिन्हा ने कहा कि दुष्यंत की परंपरा को आगे बढ़ाने का काम जन संस्कृति मंच करता है. सदियों से भारतीय समाज में कई तहखाने बनाये गये हैं. एक तहखाना धर्म का है, जिसका संबंध पूंजीवाद से है और पूंजीवाद का संबंध साम्राज्यवाद से है. यह खेल सदियों से चल रहा है, लेकिन फिर भी यदि कोई यह कहता है कि यह अंधेरा मिटने नहीं वाला है तो गलत है. यह स्याह दौर बहुत दिन नहीं टिकने वाला है. अब जनता इतिहास को वह निर्णायक मोड़ देगी, जिससे देश की दशा एवं दिशा में सकारात्मक बदलाव आयेगा. इसके लिए हमें अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिये.
सत्ता की चरण वंदना को ही समझते हैं अपना कर्तव्य
राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो सुरेंद्र सुमन ने कहा कि वर्ष 1947 से 1975 तक के हिंदुस्तान की हर बेचैनी एवं करवट को दुष्यंत कुमार ने अपने साहित्य में दर्ज किया है. जिला संयोजक शंभू शरण भारतीय ने कहा कि आज के बुद्धिजीवियों का यह संकट है कि वे सत्ता की चरण वंदना को ही अपना कर्तव्य समझते हैं. राज्य उपाध्यक्ष डॉ रामबाबू आर्य ने कहा कि दुष्यंत ने हिंदी गजलों को वह सबकुछ दिलाया, जिसकी वह हकदार थी. दुष्यंत की गजलों में आम जन के संघर्ष एवं स्वप्न बहुत विस्तृत रूप में अभिव्यक्त हुए हैं. दुष्यंत साहित्य के जगमगाते सितारेडॉ देवनारायण पासवान देव ने कहा कि दुष्यंत से प्रेरणा ग्रहण करते हुए वर्तमान सत्ता को धिक्कारने की जरूरत है. टीपी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ वीणा कुमारी ने कहा कि जहां भी अत्याचारों का नंगा नर्तन होता है, वहां दुष्यंत की कविताएं सीधा हस्तक्षेप करती हैं. पीजी सेंटर सहरसा के सह–प्राचार्य प्रो सिद्धेश्वर काश्यप ने कहा कि दुष्यंत ने हिंदी गजल को इश्क-मुश्क से मुक्त कर मानवीय संघर्ष का माध्यम बनाया. विश्वविद्यालय अंग्रेजी विभाग के सह-प्राचार्य डॉ विश्वनाथ विवेका ने कहा कि दुष्यंत साहित्य के जगमगाते सितारे हैं, जिनसे संसार परिचित है. विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के सहायक प्राचार्य डॉ प्रफुल्ल कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने साहित्य को समाज के आगे चलने वाली मशाल कहा था, दुष्यंत का साहित्य वही मशाल है.
दुष्यंत हिंदी कविता एवं जन सामान्य दोनों का संबल
डॉ श्वेताशरण भारतीय ने कहा कि दुष्यंत हिंदी कविता एवं जन सामान्य दोनों का संबल है. राज्य सह-सचिव समीर ने कहा कि आज के समय में प्रगतिशील उपक्रमों की भर्त्सना करने वाले किस राजनीति की सेवा कर रहे हैं, यह समझना कठिन नहीं है. आज ढोंग एवं पाखंड के पैरोकारों से संघर्ष करने का वक्त है. रूपक कुमार ने दुष्यंत कुमार एवं अदम गोंडवी की तुलना करते हुए अपनी बात कही. कार्यक्रम के दूसरे कवि गोष्ठी सत्र में सियाराम यादव मयंक, शंभूनाथ अरुणाभ, डॉ विश्वनाथ सराफ, आर्या दास, अद्यानंद यादव, प्रो सचिंद्र महतो जैसे कवियों ने अपनी कवितायें पढ़ी. धन्यवादज्ञापन जसम राज्य पार्षद सदस्य शंकर कुमार ने किया. मौके पर आइसा नेता पावेल कुमार कृष्ण कुमार, रामचंद्र दास, आर्य दास, अमित कुमार, संतोष सियोटा, दीप नारायण मंडल, सीताराम रजक, संजीव कुमार, जयकांत पासवान, कविता कुमारी, अंशु कुमारी, राज किशोर कुमार, अरमान अली समेत अन्य उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है