मधेपुरा. जिला मुख्यालय के मेन रोड स्थित सार्वजनिक बड़ी दुर्गा मंदिर का इतिहास पुराना है. यहां मां शक्ति की पूजा वर्ष 1853 से हो रही है. प्रारंभिक वर्ष में मंदिर की संरचना साधारण ही थी. झोपड़ीनुमा कच्चे मकान के बने मंदिर में मां दुर्गा की पूजा होती थी. कुछ वर्षों बाद स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर का विकास कार्य शुरू किया गया, जिसमें स्व जीवन सर्राफ, स्व लाल चौधरी, स्व सोखी साह व स्व मुनि साह के अथक व सराहनीय प्रयास से मंदिर का पक्कीकरण कर भव्य रूप दिया गया. वर्ष 2005 में तत्कालीन कमेटी के सदस्यों व आम लोगों के सहयोग से मंदिर को आकर्षक रूप दिया गया. मिथिला के रीति रिवाज से होती है पूजा पुजारी सुंदरकांत झा ने बताया कि बड़ी दुर्गा मंदिर में मिथिला के परंपरा के अनुसार नवरात्रि में पूजा होती है. प्रतिमा की विशेषता है कि सप्तमी की रात में पत्रिका प्रवेश जन्म पूजा होने के बाद मां के रूप में आपरूपी परिवर्तन हो जाता है. मूर्तिकार के दिये रूप से उस दिन मां की प्रतिमा अलग दिखती है. कलश स्थापना से लेकर महानवमी तक नियमित रूप से आरती में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ पंडाल में लगी रहती हैं. समिति द्वारा प्रकाश संयोजन भी आकर्षक किया जाता हैं. मुंगेर से मूर्तिकार करते हैं माता के प्रतिमा का निर्माण मुंगेर से प्रति वर्ष मूर्तिकार संजय पंडित माता के प्रतिमा का निर्माण कर आकर्षक स्वरूप देते हैं, जबकि आकर्षक पंडाल का निर्माण स्थानीय टेंट हाउस के कारीगर करते हैं. केशरी साह के वंशजों ने मंदिर निर्माण के लिए जमीन दी है. मंदिर कमेटी के अध्यक्ष हरिश्चंद्र साह, सचिव ललन सिंह, कोषाध्यक्ष राजेश सर्राफ व संयोजक मनीष सर्राफ समेत सेवा दल में शशि भूषण गुप्ता उर्फ मोहन, राजेश साह, संतोष कुमार, गोपाल कुमार, रूपक कुमार, अजित सिंह, अक्षय कुमार, सुनीत साना, अमित कुमार, आयुष कुमार, रितिक कुमार, नंदन कुमार नंदू, राजन कुमार, अब्यम ओनू, शैब्यम शशि, हरिशंकर कुमार, विक्की विनायक, आलोक कुमार समेत अन्य भक्त पूजा अर्चना व मेला के आयोजन में सक्रिय योगदान दे रहे हैं.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है