Madhubani News. मधुबनी . मैथिल ब्राह्मणों में शादी से पहले सिद्धांत परम आवश्यक माना जाता है. यह सिद्धांत एक ओर जहां वर – वधु पक्ष में सात पीढ़ी तक के गोत्र मिलान का मुख्य आधार है. इसी के आधार पर यह तय किया जाता है कि जिस लड़का – लड़की की शादी होने वाली है वह किसी भी रुप में एक खून (भाई – बहन ) तो नहीं हैं. यदि सात पीढी तक मातृ पक्ष या पितृ पक्ष में गोत्र का मिलान हो जाता है तो वहां पर शादी करना वर्जित माना जाता है. वहीं दूसरी ओर आने वाली पीढ़ी यह तय कर सकते हैं कि उनके पूर्वज कौन थे. कहां से आये, कहां शादी थी. पर बीते एक दशक में इस रिवाज, परंपरा और परम आवश्यक माने जाने वाला सिद्धांत में अब ह्रास आ गया है. जिस तरह पंजीकारों के पास सिद्धांत कराने के आंकड़े में कमी आयी है वह निश्चय ही मैथिल ब्राह्मणों के लिये चिंता का विषय बनता जा रहा है. एक दशक में आयी कमी पोखरौनी निवासी पंजीकार पंडित विश्वमोहन मिश्र बताते हैं कि यूं तो साल 2000 के बाद ही सिद्धांत कराने में कमी आने लगी थी. पर बीते एक दशक में इसमें और तेजी से गिरावट आयी है. बताते हैं कि इसका कई कारण हो सकता है. एक तो नयी पीढ़ी परदेश, विदेश में ही रहने लगे हैं और वहीं पर लव मैरिज या फिर अरेंज मैरेज करने लगे हैं. उनके पास गांव घर आने की छुट्टी तक नहीं है. जिस कारण वे सिद्धांत तक नहीं कराते. अंतर्जातीय विवाह का बढ़ रहा ग्राफ अंतर्जातीय विवाह का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. हाल के सालों में युवा वर्गों में अंतर्जातीय विवाह का क्रेज भी खूब हो गया है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 21-22 में 9 जोड़े अंतर्जातीय विवाह हुए, वहीं साल 22-23 में19 जोड़ी एवं 23-24 में 10 जोड़ी अंतर्जातीय विवाह हुए है. यह वे आंकड़े हैं जो सरकारी लाभ ले चुके हैं. जबकि कई आवेदन आये हैँ. गांव कस्बों से मिली जानकारी के अनुसार यह आंकड़ा इससे कहीं अधिक है. सिद्धांत की जगह ले रहा शगुन फलदान कोठाटोल निवासी पंजीकार पंडित प्रमोद मिश्र बताते हैं कि बीते एक दशक में सिद्धांत की जगह शगुन फलदान का प्रचलन बढ़ा है. एक दशक पहले तक नेपाल, सुपौल, सहरसा, बेतिया, दरभंगा सहित अन्य जिले के मैथिल ब्राह्मण सिद्धांत कराने पहुंचते थे. पर अब दक्षिण दिशा में सिद्धांत की जगह शगुन फलदान ने ले लिया है. खासकर नयी पीढ़ी एक दूसरे को दिखावा करने के कारण ताम झाम के साथ शगुन फलदान करने लगे हैं और सिद्धांत को छोड़ रहे हैं. चिंता का विषय सिद्धांत की अनदेखी चिंता का विषय है. यह न सिर्फ शादी विवाह और नये दंपति से उत्पन्न होने वाले संतान के मानसिक, शारीरिक व चारित्रिक विकास के लिये जरुरी है बल्कि इससे हमारी आने वाले पीढ़ी के लिये उनके वंशावली जानने के लिये भी जरुरी है. पंजीकार गोविंद मिश्र बताते हैं कि पंजीकारों के पास लिखित सिद्धांत ही किसी भी व्यक्ति की पहचान है. सरकार ने अब आधार कार्ड बनाया है पर हमारे पूर्वज पूर्व में ही हमें अपनी पहचान का आधार दे चुके हैं. पंजीकार के पास जब शादी से पूर्व सिद्धांत कराया जाता है तभी उनके पास लिखित में किसी के पुरखों की जानकारी संग्रहित हो सकता है. यदि इस सिद्धांत की अनदेखी हो रही है तो आने वाले पीढ़ी को अपना वंशावली ही नहीं मिल सकेगा.
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