अनुज शर्मा, मुजफ्फरपुर
Lok Sabha Elections: 20 मई को बिहार की जिन पांच लोकसभा सीटों पर मतदान होना है उनमें से मधुबनी वह सीट है जहां राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन ( इंडिया ) के उम्मीदवार पहली बार एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. मधुबनी में अशोक कुमार यादव (बीजेपी) निवर्तमान सांसद हैं और उनका मुकाबला राजद के अली अशरफ फातमी से है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अशोक कुमार यादव ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के बद्री कुमार पूर्वे को बड़े अंतर से हराया था.
2009 और 2014 में बीजेपी के हुकुमदेव नारायण यादव ने मधुबनी से चुनाव जीता था. इस सीट पर 2004 के बाद से लगातार जीतने के क्रम को भाजपा 2024 में भी बरकरार रखने को लड़ रही है. लेकिन, राजद उम्मीदवार हुकुमदेव के गढ़ में भाजपा के रथ को रोकने के लिए दल बल के साथ मैदान में डटे हुए हैं. दोनों को एक दूजे से मिल रही टक्कर से मौसम के साथ- साथ सियासी तापमान भी तेजी से बढ़ता जा रहा है.
ऑल इंडिया रेडियो से रिटायर्ड वरिष्ठ पत्रकार आनंद मोहन चुनाव का स्थानीय समीकरण विस्तार से समझाते हैं. उनका कहना है कि यहां चुनाव का परिणाम यादव वोटों के बिखराव पर निर्भर है. 2019 की तरह इस बार भी यादव वोटर में बिखराव हुआ, तो भाजपा जीत जायेगी. यदि बिखराव नहीं हुआ, तो फातिमी मजबूत होंगे. अतिपिछड़ा वोट की हवा एनडीए के पक्ष में बहती दिखाई दे रही है. मुसलमान वोट बिल्कुल डटा हुआ है. वह लालटेन जलाने की बात करता है. ” 2019 में डॉ शकील अहमद निर्दलीय लड़े. वह सवा लाख से अधिक वोट पाये थे. मुसलमानों ने उनको वोट किया था. इस कारण चुनाव हिन्दू- मुस्लिम हो गया था. इस कारण यादव वोटर बंट गया था ”आनंद मोहन बताते हैं. अभी तक के सीन में अशोक यादव 20 तो फातिमी 19 नजर आते हैं.
जाति के नीचे दब गये सब मुद्दे
प्रचार खत्म होने की तारीख आ गयी है. मतदान करानेवाली पोलिंग पार्टियों की रवानगी के लिए प्रशासन शामियाना लगा चुका है. लेकिन, मधुबनी लोकसभा सीट के पूरे चुनाव में कोई मुद्दा नहीं उभरा है. स्थानीय निवासी पवन कुमार बताते हैं कि बाढ़, रोजगार शिक्षा कई बड़े मुद्दे हैं. लेकिन, जातीय राजनीति में यह मुद्दा दब गये हैं. इन समस्याओं के लिए किसी ने गंभीरता से प्रयास तक नहीं किया. जातीय गुणा- गणित में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की समस्याएं गायब हैं.
यह नहीं जाना तो क्या जाना
दुनियाभर में कला-संस्कृति की पहचान बन चुके मधुबनी में लोकसभा चुनाव की सरगर्मी साफ दिखाई दे रही है. मशहूर लोक गायिका मैथिली ठाकुर को इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया ने अपना आइकॉन बनाया है. ऐसे में यहां की जनता पर अपने मत के अधिकार का प्रयोग करने दायित्व बढ़ गया है. विद्यापति का जन्म स्थान.कालिदास की ज्ञानस्थली रही इस मिट्टी ने पद्म पुरस्कार तो वोटरों ने देश को ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद ‘ दिया है. पद्म भूषण से सम्मानित, पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव मधुबनी से चार बार चुने गये हैं. भाजपा के इस खांटी नेता की विरासत को 2019 में उनके बेटे अशोक कुमार यादव ने संभाला.
जनता ने सभी दलों पर भरोसा को दिया मौका
मधुबनी की जनता ने करीब- करीब सभी दलों के उम्मीदवारों को संसद भेजा है. 1976 तक यह क्षेत्र जयनगर लोकसभा क्षेत्र में आता था. यहां भाजपा, कांग्रेस और वाम दल भी जीते हैं. सात बार कांग्रेस जीती. भाजपा – सीपीआई हैट्रिक लगा चुके हैं. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोकदल भी सफल रहे हैं.
2009 के रोमांचकारी चुनाव में भाजपा ने 9927 वोटों से की वापसी
मधुबनी संसदीय क्षेत्र के इतिहास में 2009 का लोकसभा चुनाव सबसे रोमांचकारी चुनाव माना जा सकता है. 70 के दशक के बाद आया यह वह मौका था, जिसमें कांटे की त्रिकोणीय टक्कर थी. एक तरफ केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके तत्कालीन सांसद शकील अहमद थे. उनके सामने 2004 की हार का बदला लेने के लिए भाजपा ने फिर से हुकुमदेव नारायण को उतारा था. राष्ट्रीय जनता दल ने उम्मीदवार अब्दुल बारी सिद्दीकी पर भरोसा जताया था. भाजपा यहां मात्र 164094 यानि 11.74% फीसदी वोट हासिल कर सकी थी. हालांकि जीत गयी थी. अब्दुल बारी सिद्दीकी 9927 वोटों से हार गए थे. उनको कुल 154167 मत मिले थे. कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ शकील अहमद को 111423 (7.97%) वोट मिले थे.
2019 में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दिग्गज नेता हुकुमदेव नारायण यादव की जगह उनके बेटे और पूर्व विधायक अशोक कुमार यादव को टिकट दी. भाजपा उम्मीदवार के रूप में अशोक ने 4,54,940 मतों से जीत का रिकार्ड बनाया. उनको 595843 (61.76 फीसदी ) वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर रहे विकासशील इंसान पार्टी के बद्री कुमार पूर्वे को 140903 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ शकील अहमद रहे थे. कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले डॉ शकील को मात्र 131530 वोट मिले थे.
मोदी लहर में भी सिकुड़ गयी थी भाजपा की जीत
2014 में पूरे देश में मोदी लहर थी. यहां हुकुमदेव नारायण भाजपा के उम्मीदवार थे. वह मात्र 20535 वोटों से जीत हासिल कर सके थे. भाजपा को 21.99% फीसदी यानि 358040 वोट मिले थे. राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार अब्दुल बारी सिद्दीकी को 20.73% कुल 337505 मत मिले. जदयू के प्रोफेसर गुलाम गौस तीसरे नंबर पर रहे. उनको 56392 (3.46%)वोट मिले.
लोकसभा क्षेत्र में जातीय जनसंख्या
मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी संख्या ब्राह्मण वोटर की बताई जाती है. यह कुल वोटरों का करीब 35% हैं. 10 फीसदी संख्या निषाद वोटर है. वैश्य मतदाताओं की संख्या लगभग 6% है. एससी मतदाताओं की संख्या लगभग 237,182 है जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 12.7% है. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 449,753 है जो मतदाता सूची विश्लेषण के अनुसार लगभग 24.1% है. यादव 9.1%, ठाकुर 5.1%, पासवान 4.8% वोटर हैं. हालांकि यह रिकॉर्ड अनुमानित है.
विधानसभा सीटों पर दलगत स्थित
मधुबनी संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की छह सीट हैं. मधुबनी जिले में हरलाखी, बेनीपट्टी, मधुबनी, बिस्फी आती हैं. केवटी और जाले विधानसभा सीट दरभंगा जिला का हिस्सा हैं. हरलाखी से जेडीयू के सुधांशु शेखर, मधुबनी से समीर कुमार महासेठ (राजद) विधायक हैं. बाकी चार सीट भाजपा के खाते में हैं. जाले से पूर्व मंत्री जीवेश कुमार, केवटी से मुरारी मोहन झा , बिस्फी से हरिभूषण ठाकुर बचौल और बेनीपट्टी से विनोद नारायण झा विधायक हैं. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में राजद ने तीन सीटें जीती थीं. कांग्रेस, भाजपा और आरएलएसपी ने एक-एक सीट जीती थी.
इतनी है दोनों उम्मीदवारों की शिक्षा- संपत्ति
54 साल के भाजपा उम्मीदवार अशोक कुमार उच्च शिक्षित हैं. उनके पास डॉक्टरेट की उपाधि है. हलफनामा में घोषणा की है कि उनकी सालाना आमदनी 34.4 लाख है. कुल 5.9 करोड़ की संपत्ति है. करीब एक करोड़ रुपये की देयता हैं. दो आपराधिक मामले दर्ज हैं. राजद उम्मीदवार मोहम्मद अली अशरफ फातमी की शैक्षणिक योग्यता स्नातक है. पेशे से वह सामाजिक कार्यकर्ता हैं. चुनावी हलफनामे के अनुसार, फातमी की कुल संपत्ति ₹ 2.5 करोड़ है. वार्षिक आय 13.9 लाख रुपये घोषित की है. हलफनामा में घोषणा की है कि उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित नहीं है,
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