प्रभात संवाद कार्यक्रम में भाग लेने प्रभात खबर कार्यालय पहुंचे बॉलीवुड अभिनेता मनोज बाजपेयी ने बिहार से निकलकर दिल्ली और फिर मुंबई तक के अपने सफर को बताया. उन्होंने बताया कि गांव से मिले संस्कार कैसे उनके अंदर जीवित रहे और उसका क्या फायदा मिला. निर्देशकों के साथ काम करने का अपना अनुभव और सिनेमा के दौर में आए बदलाव को लेकर भी बोले. उन्होंने और भी कई सवालों के जवाब दिए..
उत्तर : आपने जिन भी निर्देशकों का नाम लिया, उनके साथ सामंजस्य बिठाना काफी आसान था, क्योंकि हमलोग एक ही सोच के हैं. कहानी के डिमांड को एक ही तरीके से देखते हैं. तरीका भी कुछ अलग हो सकता है, पर नजरिया एक ही है. हर डायरेक्टर का अपना टेंपरामेंट होता है.
उत्तर : मेरी नजर में हम जो करना चाहते हैं, वही करें. मेन स्ट्रीम के सिनेमा में कहानियों पर ध्यान कम, स्टारडम पर ज्यादा होता है. पूरी फिल्म स्टार कास्ट पर निर्भर होती है और इनके आस पास ही बुनी जाती हैं. लेकिन थियेटर की परवरिश होने की वजह से मुझे यह सब बोर करती हैं. हम थियेटर वालों को कहानी का हिस्सा बनने और उसमें अपने आप को झोंक देने की आदत होती है. फिर भी अपने तरह की फिल्मों के लिए शक्ति पाने को कुछ मेन स्ट्रीम की फिल्में भी कर लेता हूं. रंगमंच का डिसिप्लीन बड़ा सख्त है और हम लोगों की उसकी आदत हो गयी है.
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उत्तर : सत्या के समय स्क्रिप्ट नाम की कोई चीज नहीं होती थी. पहले सेट पर महिलाओं की मौजूदगी भी कम होती थी. लेकिन, आज हर सेट पर 50 फीसदी तक महिलाओं की मौजूदगी होती है. गुलमोहर की शूटिंग के दौरान तो यह संख्या 70 फीसदी तक दिखी. बदलाव बहुत बड़ा हुआ है. अब बिना स्क्रिप्ट के कोई काम नहीं करता है. दूसरे आज कल ज्यादातर स्क्रिप्ट रोमन हिंदी में लिखी जाती है. ऐसा नये डायरेक्टरों के अंग्रेजी बैकग्राउंड होने की वजह से होता है. लेकिन, हम आज भी देवनागरी में स्क्रिप्ट की मांग करते हैं, ताकि उसके भाव को बेहतर ढंग से समझ सकें.
उत्तर : हमारी इंडस्ट्री बॉक्स ऑफिस से निर्धारित होती है. इंडस्ट्री पूछती है कि आपकी फिल्म ने कितनी कमाई की. यह नहीं देखती कि उसमें अभिनेता या निर्देशक ने कितनी मेहनत की.
उत्तर : इसका जवाब देना बहुत मुश्किल होगा. हर किरदार की अपनी चुनौतियां होती हैं. जिस किरदार से पहचान मिले, वह किरदार बेहतर होता है. सत्या से लेकर शूल और अब फैमिली मैन से लोग पहचानते हैं. सभी किरदार बेहतर रहे.
उत्तर : अच्छा हुआ कि पंडित जी ने बाबू जी को बचपन में ही बता दिया था. नेता तो कभी नहीं बनूंगा. हां, राजनीति को समझने में मेरी बहुत रूचि है. बचपन में घर से ही इसकी आदत पड़ी है. राजनीतिक समझ के चलते ही शायद राजनीति से जुड़ी मेरी फिल्में भी काफी हिट रही.
उत्तर : लोगों की शिकायत होती है कि अच्छी फिल्में आती नहीं हैं. लेकिन, अच्छी फिल्म आती है तो लेाग देखने जाते नहीं हैं. इसलिए कहूंगा कि एक बार टिकट लेकर हॉल में जाकर इस फिल्म को जरूर देखें और अच्छी लगे तो अपने आस-पास के लोगों को भी देखने को भेजें. इस फिल्म का कथानक आपको इसमें प्रवेश कराने के बाद फिल्म की समाप्ति और उसके बाद भी इससे बाहर नहीं निकलने देगा.
उत्तर : व्यस्त जरूर रहता हूं, पर तनाव नहीं लेता. यही फिटनेस का सबसे बड़ा राज है. किसी भी फिल्म में रहें, पर अनुशासन बना रहेगा तो सेहत ठीक रहेगी. रूटीन के साथ कोई समझौता नहीं करता.
उत्तर : नेटफिल्क्स के लिए एक सीरिज किलर शूट कर रहा हूं. कोंकणा सेन शर्मा के साथ यह सीरिज जनवरी तक आयेगी. इसके साथ ही जी फाइव के लिए साइलेंस टू पर काम चल रहा है. एक मेन स्ट्रीम की फिल्म भैय्या जी भी 24 मई तक आयेगी, जिसमें मैं भी निर्माता हूं. मार्च से फैमिली मैन थ्री की शूटिंग शुरू कर रहा हूं.