Munger News : मुंगेर. सरकार सदर अस्पताल में आधारभूत संरचनाओं को बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. इस कारण मुंगेर मुख्यालय में बने सदर अस्पताल में आधारभूत संरचनाें भी बढ़ रही हैं. लेकिन इसके साथ ही मरीजों की परेशानी भी बढ़ती जा रही है. हाल यह है कि जर्जर भवनों में छत से बारिश का पानी टपक रहा है. ऐसे वार्ड में भी मरीज बेड के लिए तरस रहे हैं. वहीं लगभग 32 करोड़ की राशि से बने 100 बेड वाले प्री-फैब्रिकेटेड अस्पताल में ओपीडी का संचालन हो रहा है. अतिमहत्वपूर्ण आईसीयू वार्ड बिना वेंटिलेटर के संचालित हो रहा है. वहीं लगभग 17 लाख की लागत से बने 32 बेड के पीकू वार्ड में गंभीर मरीजों को जीवन देने वाला वेंटिलेटर धूल फांक रहा है.
100 बेड वाले प्री-फैब्रिकेटेड हॉस्पिटल में चल रहा ओपीडी
पिछले साल ही सदर अस्पताल में लगभग 32 करोड़ की लागत से बने 100 बेड के प्री-फैब्रिकेटेड अस्पताल का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा किया गया. लेकिन वर्तमान में इस 100 बेड के प्री-फैब्रिकेटेड अस्पताल में ओपीडी का संचालन किया जा रहा है. जबकि सदर अस्पताल के जर्जर भवन और छत से टपकते बारिश के पानी वाले वार्डों में मरीजों को इलाज के लिए भर्ती किया जा रहा है. जहां मरीजों की संख्या बढ़ने पर इलाज कराने आये मरीजों को बेड तक के लिए तरसना पड़ताहै. इतना ही नहीं महिला और पुरुष वार्ड के बरामदे पर भी मरीजों को इलाज के लिए भर्ती किया जाता है. जहां धूप, बारिश और ठंड के बीच मरीजों को अपना इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ताहै.
बिना वेंटिलेटर आईसीयू, पीकू वार्ड हैं बेकार पड़े
सदर अस्पताल में बदहाली का आलम यह है कि लगभग 16 लाख की जनसंख्या वाले मुंगेर जिले के सदर अस्पताल में बना आईसीयू वार्ड बिना वेंटिलेटर के चल रहा है. जहां अति गंभीर मरीजों को भर्ती किया जा रहा है. जबकि इन मरीजों के लिए आवश्यक करोड़ों रुपये के 10 वेंटिलेटर पिछले साल की नवजात बच्चों के लिए लगभग 17 लाख की लागत से बनाये गये पीकू वार्ड में धूल फांक रहे हैं. जो न तो सदर अस्पताल के आईसीयू वार्ड में भर्ती अति गंभीर मरीजों और न ही बीमार बच्चों के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं. हद तो यह है कि मई माह में ही अस्पताल के निरीक्षण के दौरान खुद सिविल सर्जन डॉ विनोद कुमार सिन्हा द्वारा आिसीयू वार्ड में वेंटिलेटर लगाने का निर्देश दिया गया था. लेकिन इसके बावजूद अबतक वार्ड में मरीजों के लिए वेंटिलेटर तक नहीं लग पाया है. जबकि सदर अस्पताल के आईसीयू वार्ड में 6 बेड लगे हैं. यहां विभिन्न बीमारियों के अति गंभीर मरीजों को भर्ती किया जाता है.
जांच के लिए मरीज लगाते हैं अस्पताल का चक्कर
जिला मुख्यालय में बने सदर अस्पताल में मरीजों को जांच के लिए भी अस्पताल का चक्कर लगाना पड़ताहै. अस्पताल प्रबंधन द्वारा जहां पैथोलॉजी जांच केंद्र का संचालन 100 बेड के प्री-फैब्रिकेटेड में किया जा रहा है. ऐसे में सदर अस्पताल के विभिन्न वार्डों में भर्ती मरीजों को दिन हो या रात अपना पैथोलॉजी जांच कराने प्री-फैब्रिकेटेड अस्पताल जाना पड़ताहै. जबकि एक्स-रे, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड जांच मुख्य अस्पताल में किया जाता है. ऐसे में प्रतिदिन ओपीडी में इलाज को आने वाले मरीजों को अपना एक्स-रे, सीटी स्कैन या अल्ट्रासाउंड जांच कराने प्री-फैब्रिकेटेड अस्पताल से सदर अस्पताल आना पड़ताहै. इस कारण मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ताहै. इसमें सबसे अधिक परेशानी गर्भवती, वृद्धों और बच्चों को उठानी पड़ती है, क्योंकि प्री-फैब्रिकेटेड अस्पताल से सदर अस्पताल आने या जाने के लिए मरीजों को लगभग 100 मीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़तीहै.
अस्पताल के अधिकांश भवनों में स्वास्थ्य विभाग का अतिक्रमण
मुंगेर सदर अस्पताल के अधिकांश भवनों में खुद स्वास्थ्य विभाग का अतिक्रमण है. जबकि भवनों की कमी के कारण मरीज परेशान हो रहे हैं. सदर अस्पताल के टीबी वार्ड में जहां जिला प्रतिरक्षण कार्यालय संचालित हो रहा है. वहीं लगभग 60 लाख की लागत से बने नये पोस्टमार्टम हाउस में डीआइईसी सेंटर और फूड डिपार्टमेंट संचालित किया जा रहा है. इतना ही नहीं, अब 100 बेड के प्री-फैब्रिकेटेड अस्पताल के कई कमरों में खुद स्वास्थ्य विभाग और जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा अपनी बैठक की जाती है.